बोल पड़ी मंदिर की देवी
बोल पड़ी मंदिर की देवी
बोल पड़ी मंदिर की देवी,क्यों मंदिर में आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।
मेरी कढ़ाई देसी घी की,
मां ने सूखी रोटी रे,
घर में मां का साझा कोन्या,
क्यों तेरी किस्मत फूटी रे,
नजर मिलाना छोड़ दिया तने,
नजर का टीका लाया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया,
बोल पड़ी मंदिर की देवी,
क्यों मंदिर में आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।
जगमग जगमग ज्योत जगावे,
मां के पास अंधेरा रे,
वह भी मां से मैं भी मां सू,
के तने ना बेरा रे,
अपनी मां ने तो दमड़ी ना देता,
मुझसे मांगने आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया,
बोल पड़ी मंदिर की देवी,
क्यों मंदिर में आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।
कड़वे कड़वे वचन बोलकर,
नरम कलेजा छोलया रे,
एक सुनू ना तेरी रे बेटा,
कौन से मुख से बोला रे,
मां ममता की मूरत होवे,
नहीं समझ में आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया,
बोल पड़ी मंदिर की देवी,
क्यों मंदिर में आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।
सुन लो भक्तो मां की वाणी,
माता सभी के पास है,
जो भी मां की सेवा करता,
मिलता उसे सुख सात है,
तीर बाण की ठोकर लगी,
फेर समझ में आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया,
बोल पड़ी मंदिर की देवी,
क्यों मंदिर में आया रे,
घर बैठी तेरी जननी माता,
क्यों ना भोग लगाया रे।
45-बोल पड़ी मन्दिर की देवी क्यूँ मन्दिर मै आया रे, घर भूखी बैठी तेरी जननी माता क्यूँ ना भोग लगाया रे