हम परदेसी पंछी रे साधु भाई भजन


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हम परदेसी पंछी रे साधु भाई भजन

साखी - एजी सरवर तरवर संत जना ,और चौथा बरसे मेघ
अरे परमारथ के कारणे, गुरु चारो धारी देह
भजन - हम परदेसी पंछी रे साधु भाई ,इनि देश का नाई
इनि देश रा लोग अचेता पल पल परले में जाई
म्हारा साधु भाई इनि देश रा नाई
1. मुख बिना बोलना ने पग बिना चलना, बिना पंखो से उड़ जाई
हा इन सुरत की या लोई हमारी, अनहद में रम जाई

म्हारा साधु भाई इनि देश रा नाई...
2. छाया में बेठू तो अग्नि सी लागे, धूप अधिक शितलाइ |
छाया धूप से मोरे सतगुरु न्यारा, मैं सतगुरु के रमाई |

म्हारा साधु भाई इनि देश रा नाई...
3. आठो पहाड़ अड़ा रहे आसन , कबहू न उतरेगा साईं |
ज्ञानी रे ध्यानी वा पच पच मार गया ,इनी देश के रमाई |
म्हारा साधु भाई इनि देश रा नाई...
4. निर्गुण रूपी है मेरे दाता, सिरगुण नाम धराया |
मन पवन दोनो नहीं पाहुचे, इनी देश के रमाई |
म्हारा साधु भाई इनि देश रा नाई...
5. नख शीख नैन शरीर हमारा, सतगुरु अमर कराई।
कहे कबीर मिलो निर्गुण से, अजर अमर हो जाई



हम परदेसी पंछी | Hum pardesi panchhi | Geeta Parag | Kabir Bhajan
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