ले चले हम राष्ट्र नौका को भंवर से पार कर


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ले चले हम राष्ट्र नौका को भंवर से पार कर

ले चले हम राष्ट्र नौका को,
भंवर से पार कर,
केसरी बाना सजायें,
वीर का श्रृंगार कर।

डर नही तूफ़ान बादल का,
अँधेरी रात का,
डर नही है धूर्त दुनिया के,
कपट के घात का,
नयन में ध्रुव ध्येय के,
अनुरूप ही दृढ़ भाव भर।

है भरा मन में तपस्वी,
मुनिवरों का त्याग है,
और हृदयों में हमारे,
वीरता की आग है,
हाथ है उद्योग में रत,
राष्ट्र सेवा धार कर।

सिन्धु से आसाम तक,
योगी शिला से मानसर,
गूंजते हैं विश्व जननी,
प्रार्थना के उच्च स्वर,
सुप्त भावों को जगा,
उत्साह का संचार कर।

स्वार्थ का लवलेश सत्ता,
की हमें चिंता नही,
प्रान्त भाषा वर्ग का कटु,
भेद भी छूता नही,
एक हैं हम एक आशा,
योजना साकार कर।

शपथ लेकर पूर्वजों की,
आशा हम पूरी करें,
मस्त हो कर कार्य रत हो,
ध्येयमय जीवन धरें,
दे रहे युग की चुनौती,
आज हम ललकार कर।
 


ले चले हम राष्ट्र नौका को भंवर से पार कर।। देशभक्ति गीत।।
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