मोती समंदरा कबीर भजन

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मोती समंदरा कबीर भजन

साखी —मैं मर्जिवा समुद्र का, और डुबकी मारी एक।
अरे मुट्ठी लाया ज्ञान कि, तो वा में वस्तु अनेक।

1. डुबकी मारी समुद्र मे औ,र जा निकसाया आकाश।
गगन मंडल में घर किया, जहा हीरा पाया दास।
भजन —मोती समंदरा मोती रे चल उड़ हंसवा देश।
1.चल हंसवा देस निराला ,बीना सत भाण होत उजियारा
उना देस में, जले जगा मग जोती रे चल उड़ हंसवा देश...।

2 . काला पीला रंग बिरंगा, माला में मणिया बहु रंगा।
ऊनी माला के पेरे सुहागन सुरती रे, चल उड़ हंसवा देश..l

3. उना देस में वेद नही हैं, ऊंच नीच का भेद नहीं हैं।
उना देस में, सागो मिले ना कोई गोती रे, चल उड़ हंसवा देश.।

4. जाई करो समंद मे वासा, फेर नही आवन की आशा।
हंस अकेला जाई हंसनी रोती रे चल उड़ हंसवा देश...।
5. जुगा जुगा से सोयो म्हारो हंसो, सतगुरू आय जगायो है जीव को।

कहे कबीर धरम दास अमर घर वासा रे, चल उड़ हंसवा देश..।
 



मोती समंदरा | Moti samandra | Geeta Parag | Kabir bhajan
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