विधान खूही मुंध इकेली ना को साथी ना को बेली हिंदी मीनिंग Vidhan Khuhi Mundh Ekali Meaning

विधान खूही मुंध इकेली ना को साथी ना को बेली हिंदी मीनिंग Vidhan Khuhi Mundh Ekali Meaning

विधान खूही मुंध इकेली, ना को साथी ना को बेली,
करि किरपा प्रभि साध संग मेली, जा फिरि देखा तो मेरा अलहु बेली.

विधान खूही मुंध इकेली ना को साथी ना को बेली हिंदी मीनिंग Vidhan Khuhi Mundh Ekali Meaning


-बाबा शैख़ फरीद

हिंदी अर्थ : बाबा शेख फरीद ने इस जगत की दुर्दशा का चित्रण किया है की इस दुनिया/संसार की हालात एक ऐसी स्त्री के समान है जो कुए में गिरी हुई है।
वह अकेली है और उसका दोस्त भी कोई नहीं है, नाही उसका कोई सहायक है और यही उसकी दुर्दशा है। लेकिन जब ऐसी अवस्था में यदि हम पर इश्वर की कृपा हो जाती है/ हम इश्वर की कृपा को प्राप्त कर लेते हैं तो इश्वर ही हमारा सच्चा मित्र बन जाता है। 
 
बाबा शेख फरीद जी ने विश्व की स्थिति का चित्रण किया है, जिसे एक कुएँ में गिरी हुई स्त्री के समान दिखाया गया है। उस स्त्री का कोई साथी नहीं है, न कोई सहायक और न कोई संबंधी। वह अकेली खड़ी है और उसकी हालत बहुत दुर्दशा है। लेकिन जब उसके ऊपर परमात्मा की दया बरसती है और वह परमात्मा से मिलती है, तो उसकी यात्रा बदल जाती है। उसे अपने अल्लाह बेली मिल जाता है, जिससे वह अपने सभी दुखों का सामना कर सकती है और उसे आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है। इस संदेश से हमें यह समझने को मिलता है कि जब हम अपने मार्गदर्शक, गुरु या परमात्मा के साथ संबंध स्थापित करते हैं, तो हमारी आत्मा को समस्त संसारिक विकटताओं से राहत मिलती है और हम अपने जीवन में सच्ची सुख-शांति को प्राप्त करते हैं।
 
 
श्री गुरु ग्रंथ साहिब सटीक (१२४ ) (अंग ७६४)
१ऑ सतिगुर प्रसादि। राग सूही बाणी सेख फरीद जी की ॥
तपि तपि लुहि लुहि हाथ मरोरउ ॥ बावलि होई सो सहु लोरउ ॥ 
तै सहि मन महि कीआ रोसु ॥ 
मुझ अवगन सह नाही दोसु ॥ १ ॥ 
तै साहिब की मै सार न जानी ॥ 
जोबनु खोड पाछे पछुतानी ॥ १ ॥ रहाउ ॥ 
काली कोइल तू कित गुन काली ॥ 
अपने प्रीतम के हउ बिरहै जाली ॥ 
पिरहि बिहून कतहि सुखु पाए ॥ 
जा होइ क्रिपालु ता प्रभू मिलाए ॥ २ ॥ 
विधण खूही मुंध इकेली ॥ ना की साथी ना को बेली ॥ 
करि किरपा प्रभि साधसंगि मेली ॥ 
जा फिरि देखा ता मेरा अलहु बेली ॥ ३ ॥ 
वाट हमारी खरी उडीणी ॥ 
खंनिअहु तिखी बहुतु पिईणी ॥ 
उसु ऊपरि है मारगु मेरा ॥ 
सेख फरीदा पंथु सम्हारि सवेरा ॥ ४ ॥ १ ॥ 
 
यह शब्दों में विवरण करता है कि भक्त कैसे विरह के अग्नि में जल रहा है, उसके हाथ मरोड़ रहा है, और प्रभु से मिलने की आशा रख रहा है। भक्त कहता है कि हे प्रभु! तुमने मुझसे मन में गुस्सा किया है, लेकिन यह तुम्हारा दोष नहीं है, मेरे ही अनेक दोष हैं।

भक्त कहता है कि तुम मेरे मालिक हो, परंतु मैंने तुम्हारा महत्व नहीं समझा। अब मैं अपनी जवानी गंवा कर पछता रही हूँ।

काली कोयल से भक्त पूछता है कि तुम क्यों काली हो गई हो? कोयल कहती है कि उसे उसके प्रियतम से विभाजन की आग ने काला कर दिया है। वह अपने प्रियतम से विभाजित होकर सुख कैसे पा सकती है। प्रभु कृपालु होने पर, वह जीव-स्त्री को स्वयं ही अपने साथ मिला लेता है।

भक्त कहता है कि वह जीव-स्त्री अकेली ही इस भयानक संसार रूपी कुएं में गिर गई है। यहाँ उसका कोई साथी नहीं है और न कोई सहायक बेली है। प्रभु ने उसे साधु-संगत में मिला दिया है। जब फिर उसने देखा तो वह बेली के रूप में खड़ा था, जिसका नाम अल्लाह था।

भक्ति का मार्ग बहुत ही उदास करने वाला और कठिन है। यह तलवार की धारा से तीखा और नुकीला है। उसके ऊपर मेरा मार्ग है। हे शेख फरीद! अपने जीवन की सुबह से ही अपना पथ संवार लो॥

बेड़ा बंधि न सकिओ बंधन की वेला ॥
भरि सखरु जब ऊछले तब तरणु दुहेला ॥ १ ॥
हथु न लाइ कसुंभड़े जलि जासी ढोला ॥ १ ॥ रहाउ ॥ इक आपीन्है पतली सह केरे बोला ॥
दुधा थणी न आवई फिरि होइ न मेला ॥ २ ॥
कहै फरीदु सहेलीहो सहु अलाएसी ॥
हंसु चलसी डुंमणा
अहि तनु ढेरी थीसी ॥ ३ ॥ २ ॥  
जब जीवन रूपी बेड़ा बाँधने का समय था, तब तू बेड़ा बाँध नहीं सका। अब जब समुद्र उछल कर लहरें मार रहा है, तो उस में से पार होना मुश्किल हो गया है। जब प्रभु सिमरन का समय - अर्थात्‌ जवानी थी, तो तूने सिमरन नहीं किया। अब बुढ़ापे में जब विकार समुद्र में भर गए हैं और अपना जोर दिखा रहे हैं, तो इन पर काबू पाना मुश्किल हो गया है॥ १॥

हे प्रियवर! कुसुंभ फूल के रंग जैसी माया रूपी आग को अपना हाथ मत लगाना, तेरा हाथ जल जाएगा॥ १॥ रुको!॥

हे जीव-स्त्री! माया के मुकाबले में तू अपने आप में बहुत निर्बल हो बैठी है। तुझे मालिक की डांट पड़ेगी। थन से निकला दूध जैसे थन में वापस नहीं जाता, वैसे ही तेरे यौवन का फिर नहीं आएगा और दोबारा तुझे उस पति-प्रभु से मिलाप नहीं होगा॥ २॥

हे सहेलियों! जब मालिक-प्रभु बुलाएगा, तो यह शरीर मिट्टी का ढेर हो जाएगा और जीवात्मा रूपी हंस उदास होकर यहाँ से चला जाएगा॥ ३॥


Meaning in English : The verse by Baba Sheikh Farid depicts the portrayal of the world's condition as that of a woman fallen into a well. She is all alone, with no companion or helper. However, when she receives the grace of the Divine, she meets her true friend, the Almighty.
Baba Sheikh Farid is illustrating that the world is like a woman in distress, feeling abandoned and helpless like someone trapped in a well. But when we are blessed with the grace of the Divine, the Supreme Being becomes our true friend and companion. In times of difficulty and solitude, the connection with the Divine provides solace and support.

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