भक्ति बिगाड़ी कामिया इंद्री केरै स्वादि मीनिंग Bhagati Bigadi Kamiya Meaning Bhavarth


भक्ति बिगाड़ी कामिया इंद्री केरै स्वादि मीनिंग Bhagati Bigadi Kamiya Meaning Bhavarth

भक्ति बिगाड़ी कामिया इंद्रिन केरे स्वाद ।
हीरा खोया हाथ सों, जनम गँवाया बाद ॥
or
भगति बिगाड़ी काँमियाँ, इंद्री केरै स्वादि।
हीरा खोया हाथ थैं, जनम गँवाया बादि॥
Bhagti Bigadi Kamiya, Indri Kere Swadi,
Heera Khoya Hath The, Janam Ganvaaya Baadi.
 
भक्ति बिगाड़ी कामिया इंद्री केरै स्वादि मीनिंग Bhagati Bigadi Kamiya Meaning Bhavarth

 

कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ Kabir Doha Hindi Word Meaning (Hindi Shabdarth/Arth)

  • भगति बिगाड़ी काँमियाँ (काम वासना के कारण भक्ति बिगड़ गई है) / Devotion is spoiled by desires and lust.
  • इंद्री केरै स्वादि (इन्द्रियों के स्वाद के कारण) / Due to the gratification of the senses.
  • हीरा खोया हाथ थैं (हाथ से हीरा गवा दिया है) / The precious gem (divine knowledge) is lost from one's hands.
  • जनम गँवाया बादि (व्यर्थ में ही जन्म को गंवा दिया है) / The birth is wasted in vain.
  • भगति (भक्ति) / Devotion.
  • बिगाड़ी (बिगाड़ दिया है, नष्ट कर दिया है) / Spoiled, destroyed.
  • काँमियाँ (कामी पुरुष ने) / Desires, lust.
  • इंद्री (इन्द्रियां) / Senses.
  • केरै स्वादि (के स्वाद के कारण) / Due to their gratification.
  • हीरा (हीरा, अनमोल मानव जीवन) / Precious gem, divine knowledge.
  • खोया (नष्ट कर दिया है) / Lost.
  • हाथ थैं (स्वंय से) / From one's own hands.
  • जनम गँवाया (जन्म को व्यर्थ में ही बर्बाद कर दिया है) / Wasted, lost birth.
  • बादि (बाद में, वर्थ में. अहम् के चलते, जिद्द) / In vain. (Due to ego, stubbornness)

भक्ति बिगाड़ी कामिया हिंदी अर्थ भावार्थ/मीनिंग Bhakti Bigadi Kamiya Meaning in Hindi/Arth

इन्द्रियों के स्वाद में पड़कर व्यक्ति अपनी भक्ति को बिगाड़ देता है, भक्ति से विमुख हो जाता है. अतः काम और वासना भक्ति मार्ग में बाधा पँहुचाते हैं। मानव जीवन रूपी अमूल्य हीरा व्यर्थ में ही बाद (अहम्) के कारण नष्ट कर दिया, जीवन को निर्थक बना लिया। 
 
कामी पुरुष ने इन्द्रियों के रस के स्वाद में पड़कर अपनी भक्ति को बिगाड़ दिया है. इन्द्रियों में उलझकर उसने अपनी भक्ति को विकृत रूप दे दिया है. मनुष्य के हाथ में मानव जीवन रूपी हीरा था जो उसने व्यर्थ में ही गवां दिया है. मानव जीवन अमूल्य है जैसे की हीरा होता है. भाव है की यह मानव जीवन हरी के गुणगान करने, इश्वर की भक्ति करने के उपरान्त करोड़ों योनियों में भटकने के बाद मिला है. ऐसे में यदि व्यक्ति इश्वर का सुमिरन नहीं करता है और काम वासना में ही लिप्त रहता है तो वह अवश्य ही विनाश को प्राप्त होता है. प्रस्तुत साखी में कबीर साहेब ने रूपक और रुपकातिश्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.

Kabir Saheb Other Dohe with Meaning कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाया।
मैं भी भूखा न रहूं, साधू ना भूखा जाय॥
(अर्थ: हे साईं, इतना दीजिए कि मैं और मेरा परिवार संतुष्ट रहें। मैं भी भूखा न रहूँ और साधू भी भूखा न जाए॥)
जो तोहि ब्रह्मा नाहीं, ब्रह्मा न तोहि कोइ।
जो तोहि बिष्नू नाहीं, तोहि विष्नू कोइ॥
(अर्थ: जो तू ब्रह्मा नहीं है, वह ब्रह्मा कौन है? जो तू विष्णु नहीं है, वह विष्णु कौन है?)

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥
(अर्थ: गुरु और गोविंद दोनों खड़े हैं, किसके पाँव में नमन करूँ ? मैं गुरु की बलिहारी हूँ, क्योंकि गुरु ने मुझे गोविंद से मिला दिया॥)
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

(अर्थ: पुस्तकें पढ़-पढ़कर जग तो मर गया, परंतु कोई पंडित नहीं डरा। प्रेम के ढाई आखरी अक्षर को पढ़ने वाला ही पंडित होता है॥)
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥
(अर्थ: बड़ा होने से क्या हुआ, जैसे खजूर का पेड़। पंथी को उसकी छाया नहीं मिलती, फल बड़े दूर तक मिलता है॥)

जो अब तक न पंख पाया, तो कैसे भइयो उड़ाई।
चिंगारिया खाय संपति, सो तन जाने भइयो॥
अर्थ: जो अब तक पंख नहीं पा सका, उसे कैसे उड़ाएँगे? सोने के चिंगारे खाने से क्या फायदा, जब तन ही नहीं बचेगा तो संपत्ति का क्या फायदा॥
अब कैसे छूटो रे मना, राम नाम बिना।
जीवन ताके दुरित भजे, सो यों न भविष्य कइना॥
अर्थ: अब कैसे छूटेगा, ओ मन! बिना राम नाम के। जीवन भर दुरितों से बचने के लिए राम का भजन कर, तो फिर तुझे भविष्य में दुखों का सामना नहीं करना पड़ेगा॥
गुरु कुम्हार शिष्य कुम्भ है, राम रहीम उद्धार।
ईश्वर अकबर बुध जाने, सब बाटे बात न्यार॥
अर्थ: गुरु को मूर्तिकार और शिष्य को मिट्टी के बर्तन के समान देखते हैं, जैसे चारों तरफ समान होते हैं। परंतु राम और रहीम जैसे दूरदर्शी महात्माएँ जानते हैं कि ईश्वर सबको समान रूप से देखते हैं, और सबके मन की बातें जानते हैं॥
ज्यों कांच की मूरति बनाई, सिंदूर रचि दिवाय।
जोगी मुरली नाचे, तासु धरे मुनियाँ॥
अर्थ: जैसे कांच की मूर्ति बनाकर उसमें सिंदूर रचते हैं, जैसे जोगी नाचते हैं और तासु धारण करते हैं, वैसे ही मनुष्य भगवान की पूजा और तप करते हैं॥
दुविधा में रहते ज्ञानी, दिखाए तो तन धर।
छोड़ि दिखावा दुनियादारी, कहाँ यह कोऊ चर॥
अर्थ: ज्ञानी व्यक्ति दुविधा में रहते हैं, परंतु जब उन्हें बोलने का समय आता है, तो वे शरीर धारण कर देते हैं। वे दुनियादारी के छोड़कर किसी को भी चर्चा करने में अनुमति नहीं देते॥
 

कबीरदास जी का संक्षिप्त परिचय Kabir Dasa Ji Ka Parichay

कबीरदास भारतीय संस्कृति में एक अद्भुत रहस्यवादी कवि और संत हैं। उनका जन्म 15वीं सदी में वाराणसी (काशी) के पास एक छोटे से गांव में हुआ था। इनके माता-पिता मुस्लिम थे, लेकिन इनके जन्म और मातापिता के विषय में मतभेद हैं। कबीरदास जी ने हिन्दू धर्म के वैदिक ज्ञान और इस्लामी धर्म के सूफी तत्वों को सरल भाषा में लोगों को समझाया।

कबीरदास के दोहे और पद कई भाषाओं में प्रसिद्ध हैं और उनके संदेश भारतीय संस्कृति के हृदय में बसे हैं। उनकी रचनाएँ निर्गुण भक्ति की एक उच्च अभिव्यक्ति हैं, जो विश्व में सबके समानता और प्रेम के मार्ग की प्रेरणा प्रदान करती हैं।

कबीरदास ने अपनी रचनाओं में समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों, और कर्मकांड के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने सभी धर्मों के एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास करने का संदेश दिया। उनके दोहे सिखों के गुरु ग्रंथ साहिब में भी सम्मिलित हैं।

कबीरदास के दोहे और पद सरल भाषा में लिखे गए हैं, जिससे उनके संदेश को आम लोगों तक पहुंचने में आसानी होती है। उन्होंने समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्याय, और असामाजिक बुराइयों की निंदा की, जिससे लोगों को समाज में सुधार के लिए प्रेरित किया।

कबीरदास की रचनाओं में स्वयं का व्यक्तित्व प्रकट होता है और उन्होंने अपने दोहों में जीवन के विभिन्न पहलुओं को समावेश किया है। उनके दोहे में ज्ञान, प्रेम, भक्ति, धर्म, नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारियों के मुद्दे प्रवृत्ति की एक अद्भुत छवि प्रस्तुत करते हैं।

कबीरदास की रचनाएँ आध्यात्मिकता के ऊंचे स्तर को छूती हैं और उन्होंने धर्म, जीवन, समाज, और संसार के उद्देश्य पर गहरा विचार किया। उनकी रचनाएँ आज भी हमारे जीवन में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं और हमें सभी मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पित होने का संदेश देती हैं।
 
कबीर दास, एक महान संत और साहित्यिक व्यक्ति थे, जिन्होंने प्राचीन काल में ज्ञान के प्रसार के लिए अपनी अद्भुत दोहों को संजोया था। वे शिक्षित नहीं थे, इसलिए उनके दोहे उनके शिष्यों द्वारा ही लिखे या संग्रहित किए गए थे। भागोदास और धर्मदास जैसे उनके शिष्यों ने उनकी साहित्यिक विरासत को धारण किया और उनके अनमोल दोहों को सार्थकता से प्रदर्शित किया।
कबीर के छंद और उपदेशों को धार्मिक ग्रंथ "श्री गुरुग्रन्थ साहिब" में भी शामिल किया गया है। यह ग्रंथ सिख धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक है और इसमें संत कबीर के 226 दोहे शामिल हैं। श्री गुरुग्रन्थ साहिब में सभी भक्तों और संतों के मुख्य भाग्यशाली उपदेशों में संत कबीर के दोहे शामिल होने की अधिकता है।
विद्वान क्षितिमोहन सेन ने संत कबीर के दोहों को काशी सहित देश के अन्य संतों से एकत्र किया था। इससे न सिर्फ उनके दोहे का संग्रह हुआ, बल्कि इससे उनके संदेश का व्यापक प्रसार हुआ। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने इन दोहों का अंग्रेजी अनुवाद करके संत कबीर की वाणी को विश्वभर में प्रसिद्ध किया।
हिंदी में बाबू श्यामसुन्दर दास, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, हजारीप्रसाद द्विवेदी और अन्य विद्वानों ने संत कबीर के जीवन और साहित्यिक साधना पर ग्रंथ लिखकर उनके महत्वपूर्ण योगदान को समर्थन किया। इससे संत कबीर की संदेशों का विस्तार और समृद्धि संभव हुई।
 
कबीर दास, एक महान संत और कवि थे, जिनके अनमोल शब्द एवं उपदेश से संत और साधक अपने अंतर्मन की गहराईयों तक पहुंच सकते थे। उनकी साहित्यिक विरासत को अभिव्यक्ति देने के लिए विभिन्न ग्रंथों का संग्रह किया गया, जिनमें से कुछ प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित हैं:-

कबीर शब्दावली: यह ग्रंथ मुख्य रूप से कबीर साहेब जी के शब्दों का संग्रह है, जिनमें वे आत्मा और परमात्मा के संबंध को अपने अद्भुत विचारों के माध्यम से व्यक्त करते हैं। इस ग्रंथ में उनके अनमोल शब्दों के माध्यम से आत्मिक ज्ञान और भक्ति के संदेश को प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में संक्षेप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है।
कबीर दोहवाली: इस ग्रंथ में मुख्य रूप से कबीर साहेब जी के दोहे संम्मिलित हैं। ये दोहे अत्यंत सरल भाषा में होते हैं, लेकिन उनमें गहरे आर्थिक और धार्मिक संदेश छिपे होते हैं। यह ग्रंथ उनके उपदेश को सरलता से समझने का अच्छा माध्यम है।
कबीर ग्रंथावली: इस ग्रंथ में कबीर साहेब जी के पद और दोहे सम्मिलित किए गए हैं। इन ग्रंथों में वे अपने दर्शनीय अनुभव, जीवन के विचार, और सम्बन्धों की अद्भुत रूपरेखा को संदर्भित करते हैं।
कबीर सागर: यह सूक्ष्म वेद है जिसमें परमात्मा के विस्तृत ज्ञान की विवेचना है। यह ग्रंथ उनके सम्पूर्ण दर्शन, सिद्धांत, और आध्यात्मिक संदेश को एक समग्र रूप में प्रस्तुत करता है।
कबीर साहेब जी की यह ग्रंथगत विरासत आज भी मानवता को आत्मज्ञान, धर्मिक सामर्थ्य, और सच्चे प्रेम के मार्ग पर प्रेरित करती है। इन ग्रंथों के माध्यम से उनका संदेश सदा से समय तक चिरंतन रहेगा।
 
कबीरदास जी एक महान संत और कवि थे, जिनकी रचनाएँ अत्यंत सरल भाषा में लिखी गई थीं। उन्होंने अपने दोहों और पदों के माध्यम से आध्यात्मिकता, मानवता और सच्चे प्रेम के संदेश को सार्थकता से प्रस्तुत किया। उनके दोहे आज भी लोगों के दिलों में बसे हैं और उनकी सीख हर युग में मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत रहती है।

कबीरदास जी ने अपनी रचनाएँ विभिन्न भाषाओं में लिखीं, जैसे कि पंजाबी, राजस्थानी, बगेली, ब्रजभाषा, खड़ीबोली, भोजपुरी, अरबी, फारसी, सिन्धी, गुजराती, बांग्ला और मैथिली। इस विशेषता के कारण, उनकी भाषा को 'सधुक्कड़ी अन्नकूट' के नाम से विश्वास किया जाता है। इस भाषा में लिंग, वचन, कारक आदि का कोई नियम नहीं होता, जिससे उन्हें अनेक भाषाओं के शब्द और पद-विन्यास को सुलझाने में सुविधा मिलती है। यह भाषा साधुओं के भ्रमण के कारण स्थान परिवर्तन करती रहती है, इससे उनके दोहे और पद विभिन्न क्षेत्रों के भाषाओं के शब्दों से युक्त होते हैं।

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