खाटूवाले कृपा कर दे लिरिक्स Khatuwale Kripa Kar De Lyrics
खाटूवाले कृपा कर दे लिरिक्स Khatuwale Kripa Kar De Lyrics
खिवैया नैया के कान्हा,तो नैया पार होती है,
भवर क्या ज़ोर दिखलाये,
कृपा पतवार होती है।
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे,
कृपा कर दे कृपा कर दे,
मोहन मुरली वाले कृपा कर दे,
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे।
तू ही सरकार मेरा,
तू ही सरताज मेरा,
तू ही अंजाम मेरा,
तू ही आगाज़ मेरा,
भक्तों के प्यारे कृपा करदे,
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे,
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे।
तू ही श्रृंगार मेरा,
तू ही रखवार मेरा,
तू ही आधार मेरा,
तू ही पतवार मेरा,
भक्तो के सहारे कृपा कर दे,
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे,
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे।
मैं तो नाचीज़ मोहन,
तू ही हमारा जीवन,
हर पल बढ़ता ही जाए,
मेरी निष्ठा का बंधन,
नंदू कुछ ना मांगे कृपा कर दे,
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे,
श्याम खाटूवाले कृपा कर दे।
खाटूवाले कृपा कर दे | Khatu Wale Kripa Kar De | श्याम बाबा का बेहद प्यारा भजन | Sanjay Nakra Sanju
बर्बरीक, जिन्हें खाटू श्याम जी के नाम से भी जाना जाता है, एक महान योद्धा थे, जिन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध में भाग लिया था। उनका जन्म राजस्थान के खाटू में हुआ था। उनके पिता का नाम हिडिम्बा और माता का नाम हिंडोला था। बर्बरीक बचपन से ही बहुत शक्तिशाली और निडर थे। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और उनसे एक दिव्य तलवार और धनुष प्राप्त किया।
कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, बर्बरीक ने कौरवों और पांडवों दोनों की सेनाओं को हराने का वादा किया था। भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया कि युद्ध में केवल एक ही विजेता हो सकता है, और अगर बर्बरीक ने युद्ध में भाग लिया, तो युद्ध में कोई विजेता नहीं होगा।
बर्बरीक ने भगवान कृष्ण के शब्दों को स्वीकार कर लिया और उन्होंने युद्ध में भाग लेने के बजाय अपने सिर को यज्ञ में अर्पित कर दिया। उनकी बलिदान के बाद, भगवान कृष्ण ने उन्हें अमरता का वरदान दिया और उन्हें खाटू श्याम जी के रूप में पूजनीय बनाया।
कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, बर्बरीक ने कौरवों और पांडवों दोनों की सेनाओं को हराने का वादा किया था। भगवान कृष्ण ने उन्हें बताया कि युद्ध में केवल एक ही विजेता हो सकता है, और अगर बर्बरीक ने युद्ध में भाग लिया, तो युद्ध में कोई विजेता नहीं होगा।
बर्बरीक ने भगवान कृष्ण के शब्दों को स्वीकार कर लिया और उन्होंने युद्ध में भाग लेने के बजाय अपने सिर को यज्ञ में अर्पित कर दिया। उनकी बलिदान के बाद, भगवान कृष्ण ने उन्हें अमरता का वरदान दिया और उन्हें खाटू श्याम जी के रूप में पूजनीय बनाया।