मन में श्याम बसा है लिरिक्स Man Me Shyam Basa hai Lyrics
मन में श्याम बसा है लिरिक्स Man Me Shyam Basa hai Lyrics
मन में श्याम बसा है,मन में श्याम बसेगा,
मैं हूँ श्याम दीवाना,
जय श्री श्याम कहूंगा।
खाटू की पावन गलियों में,
गूँज रहा जयकारा,
हारे का भक्तों हैं बाबा,
श्याम ही एक सहारा,
हाँ श्याम ही एक सहारा,
हम सब मिलके गायें,
श्याम धणी की कृपा,
मैं हूँ श्याम दीवाना,
जय श्री श्याम कहूंगा।
श्याम धणी की,
जय जय बोलो,
हर एक कष्ट मिटेगा,
तुम भी जय बाबा की बोलो,
मन को चैन मिलेगा,
हाँ मन को चैन मिलेगा,
तेरी महिमा न्यारी,
पूजे है नर नारी,
मैं हूँ श्याम दीवाना,
जय श्री श्याम कहूंगा।
श्याम नाम की मस्ती में,
है एक ऐसा जादू,
तेरे बारे में ही सोचू,
होता मन बेकाबू,
हाँ होता मन बेकाबू,
देव दिनेश के ऊपर,
तू ही कृपा करता,
मैं हूँ श्याम दीवाना,
जय श्री श्याम कहूंगा।
मन में श्याम बसा है | Man Mein Shyam Basa Hai | Khatu Shyam Beautiful Bhajan | Atul Srigiri
श्री खाटू श्याम जी, जिन्हें बर्बरीक के नाम से भी जाना जाता है, महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे घटोत्कच और मोरवी के पुत्र थे, जो स्वयं भी महाबली भीम के पुत्र थे। बर्बरीक बचपन से ही एक प्रतिभाशाली धनुर्धर थे। उन्होंने शिव जी की तपस्या करके तीन अमोघ बाण प्राप्त किए थे।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में, बर्बरीक ने अपने तीरों के बल पर दोनों सेनाओं को समाप्त करने की क्षमता दिखाई। हालांकि, भगवान कृष्ण ने उन्हें एक वरदान दिया कि वह अपने तीरों का उपयोग केवल एक बार ही कर सकते हैं। बर्बरीक ने यह वरदान पाकर फैसला किया कि वह उन बाणों का उपयोग उस पक्ष के लिए करेगा जो हार रहा होगा।
युद्ध के मैदान में, बर्बरीक ने दोनों पक्षों के बीच एक पीपल के पेड़ के नीचे अपना घोड़ा खड़ा किया और घोषणा की कि वह उस पक्ष के लिए लड़ेगा जो हार रहा होगा। भगवान कृष्ण ने बर्बरीक की क्षमता को समझा और उन्हें एक उपाय सुझाया। उन्होंने बर्बरीक को अपने शीश का बलिदान करने के लिए कहा, जिससे कि वह दोनों पक्षों को बचा सके।
बर्बरीक ने भगवान कृष्ण के आदेश का पालन किया और अपना शीश काट दिया। उनके शीश को भगवान कृष्ण ने अपने हाथों में उठा लिया और युद्ध के मैदान में रख दिया। बर्बरीक के शीश ने दोनों पक्षों को एक साथ लड़ने के लिए प्रेरित किया और अंततः पांडवों की जीत हुई।
बर्बरीक को उनके बलिदान के लिए भगवान कृष्ण ने मोक्ष प्रदान किया। उन्हें खाटू में एक मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया है, जहां उन्हें खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है।
कुरुक्षेत्र के युद्ध में, बर्बरीक ने अपने तीरों के बल पर दोनों सेनाओं को समाप्त करने की क्षमता दिखाई। हालांकि, भगवान कृष्ण ने उन्हें एक वरदान दिया कि वह अपने तीरों का उपयोग केवल एक बार ही कर सकते हैं। बर्बरीक ने यह वरदान पाकर फैसला किया कि वह उन बाणों का उपयोग उस पक्ष के लिए करेगा जो हार रहा होगा।
युद्ध के मैदान में, बर्बरीक ने दोनों पक्षों के बीच एक पीपल के पेड़ के नीचे अपना घोड़ा खड़ा किया और घोषणा की कि वह उस पक्ष के लिए लड़ेगा जो हार रहा होगा। भगवान कृष्ण ने बर्बरीक की क्षमता को समझा और उन्हें एक उपाय सुझाया। उन्होंने बर्बरीक को अपने शीश का बलिदान करने के लिए कहा, जिससे कि वह दोनों पक्षों को बचा सके।
बर्बरीक ने भगवान कृष्ण के आदेश का पालन किया और अपना शीश काट दिया। उनके शीश को भगवान कृष्ण ने अपने हाथों में उठा लिया और युद्ध के मैदान में रख दिया। बर्बरीक के शीश ने दोनों पक्षों को एक साथ लड़ने के लिए प्रेरित किया और अंततः पांडवों की जीत हुई।
बर्बरीक को उनके बलिदान के लिए भगवान कृष्ण ने मोक्ष प्रदान किया। उन्हें खाटू में एक मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया है, जहां उन्हें खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है।