मैंने सपनो देखो रात लंका पर कुदशा चढ़

मैंने सपनो देखो रात लंका पर कुदशा चढ़ आई

मैंने सपनो देखो रात लंका पर,
कुदशा चढ़ आई,
कुदशा चढ़ आई,
लव पर होनी गहराई,
मैंने सपनो देखो रात लंका पर,
कुदशा चढ़ आई।

चौंक पड़ी सपने में सोती,
टूट गयो और नथनी का मोती,
बिखरे कर के केश बहन,
मेरी बिंदिया ना पाई,
मैंने सपनो देखो रात लंका पर,
कुदशा चढ़ आई।

सपना के हाल में तो कह दूं सारे,
रात पति लक्ष्मण ने मारे,
धड़ से शीश पड़े हैं,
नारे भुज महल आई,
मैंने सपनो देखो रात लंका पर,
कुदशा चढ़ आई।

एक तो मैं पीहर की मारी,
दूजे विपत राम ने डारी,
तीजे पति लक्ष्मण ने मारे,
चौथे गोद खाली,
मैंने सपनो देखो रात लंका पर,
कुदशा चढ़ आई।

आम पके महुआ गदरारे,
खट्टे नींबुआ रस भर लाए,
जब अनार सुरखी पर आए,
टूट गई डाली,
मैंने सपनो देखो रात लंका पर,
कुदशा चढ़ आई।

माली होता बाग लगाता,
रौस रौस पर कुआं खुदवाता,
घड़ी घड़ी मेरा दिल बहलातो,
छोड़ गयो माली,
मैंने सपनो देखो रात लंका पर,
कुदशा चढ़ आई।
 



SAPNE KE HAL MAI KEH DU SARE, RAT PATI LAKSHMAN NE MARE
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