भगवान श्रीकृष्ण को बांसुरी बजाने का बहुत शौक था। वे अक्सर बांसुरी बजाते हुए गोपियों के साथ नृत्य करते थे। बांसुरी की मधुर धुन से गोपियाएं मंत्रमुग्ध हो जाती थीं। कहा जाता है कि कृष्णा को बांसुरी बजाना भगवान शिव ने सिखाया था। जब कृष्णा छोटे थे, तो एक दिन वे नदी किनारे खेल रहे थे। तभी वहां शिव जी आए। शिव जी ने कृष्णा को अपनी बांसुरी दी और उसे बजाने के लिए कहा। कृष्णा ने बांसुरी बजाई और उनकी मधुर धुन सुनकर शिव जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कृष्णा को आशीर्वाद दिया कि वे बांसुरी बजाने में निपुण हो जाएंगे। कृष्णा बांसुरी बजाने में बहुत निपुण थे। उनकी बांसुरी की मधुर धुन से मनुष्य, पशु-पक्षी और देवता भी मंत्रमुग्ध हो जाते थे। कृष्णा और बांसुरी का संबंध हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। इसे प्रेम, सौंदर्य और आनंद का प्रतीक माना जाता है।
बाँस की बाँसुरिया पे घणों इतरावे भजन लिरिक्स Bans Ki Bansuriya Lyrics : Krishna Bhajan
बाँस की बाँसुरिया पे घणों इतरावे,कोई सोना की जो होती,
हीरा मोत्या की जो होती,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।
जैल में जनम लेके घणो इतरावे,
कोई महला में जो होतो,
कोई अंगना में जो होतो,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।
देवकी रे जनम लेके घणो इतरावे,
कोई यशोदा के होतो,
माँ यशोदा के जो होतो,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।
गाय को ग्वालो होके घणो इतरावे,
कोई गुरुकुल में जो होतो
कोई विद्यालय जो होतो,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।
गूज़रया की छोरियां पे घणो इतरावे,
ब्राह्मण बाणिया की जो होती,
ब्राह्मण बाणिया की जो होती,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।
साँवली सुरतिया पे घणो इतरावे,
कोई गोरो सो जो होतो,
कोई सोणो सो जो होतो,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।
माखन मिश्री पे कान्हा घणो इतरावे,
छप्पन भोग जो होतो,
मावा मिश्री जो होतो,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।
बाँस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे,
कोई सोना की जो होती,
हीरा मोत्या की जो होती,
जाणे काई करतो, काई करतो,
बांस की बाँसुरिया पे घणो इतरावे।