पकड़ लो हाथ बनवारी भजन Pakad Lo Hath Banwari Lyrics : Krishna Bhajan
पकड़ लो हाथ बनवारी,नहीं तो डूब जाएंगे,
हमारा कुछ ना बिगड़ेगा,
तुम्हारी लाज जाएगी,
पकड़ लो हाथ बनवारी,
नहीं तो डूब जायेंगे।
धरी है पाप की गठरी,
हमारे सर पे ये भारी,
वजन पापो का है भारी,
इसे कैसे उठाऐंगे,
पकड़ लो हाथ बनवारी,
नहीं तो डूब जायेंगे।
तुम्हारे ही भरोसे पर,
जमाना छोड़ बैठे है,
जमाने की तरफ देखो,
इसे कैसे निभाएंगे,
पकड़ लो हाथ बनवारी,
नहीं तो डूब जायेंगे।
दर्दे दिल की कहे किससे,
सहारा ना कोई देगा,
सुनोगे आप ही मोहन,
और किसको सुनाऐंगे,
पकड़ लो हाथ बनवारी,
नहीं तो डूब जायेंगे।
फसी है भवँर में नैया,
प्रभु अब डूब जाएगी,
खिवैया आप बन जाओ,
तो बेड़ा पार हो जाये,
पकड़ लो हाथ बनवारी,
नहीं तो डूब जायेंगे।
पकड़ लो हाथ बनवारी,
नहीं तो डूब जाएंगे,
हमारा कुछ ना बिगड़ेगा,
तुम्हारी लाज जाएगी,
पकड़ लो हाथ बनवारी,
नहीं तो डूब जायेंगे।
Pakad Lo Haath Banwaari Nahi To Doob Jaayenge.
श्री कृष्णा को बनवारी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे एक वनवासी थे। उन्होंने अपना बचपन गोकुल में गोपियों के साथ बिताया था, और वे अक्सर वन में खेलते और घूमते थे। वे वन की मिट्टी, वन के फूलों और वन के वृक्षों से बहुत प्यार करते थे।
"बनवारी" शब्द का अर्थ है "वन का स्वामी"। यह शब्द भगवान कृष्ण के वनवासी जीवन और उनके वन के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
इसके अलावा, "बनवारी" शब्द का अर्थ "वन के राजा" भी है। यह शब्द भगवान कृष्ण के पराक्रम और शक्ति को भी दर्शाता है। वे एक महान योद्धा थे, और उन्होंने कई राक्षसों का वध किया था।
कुछ लोगों का मानना है कि "बनवारी" शब्द का अर्थ "वन के निवासी" भी है। यह शब्द भगवान कृष्ण की विनम्रता और सरलता को भी दर्शाता है। वे एक साधारण वनवासी के रूप में रहते थे, और उन्होंने कभी भी अपने स्वरूप या शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया।
कुल मिलाकर, "बनवारी" शब्द एक बहुआयामी शब्द है जिसका अर्थ भगवान कृष्ण के कई गुणों को दर्शाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नंदगाँव में हुआ था। वे बचपन से ही बहुत ही चतुर और शक्तिशाली थे। वे गोप बालों के साथ यमुना नदी के किनारे खेलते थे। एक दिन, वे कालीदह में गेंद खेल रहे थे। कालीदह में कालिया नाग रहता था। कालिया नाग बहुत ही विषैला था। उसका ज़हर इतना शक्तिशाली था कि वह यमुना नदी के पानी को भी विषाक्त कर देता था।
गोप बालों को पता था कि कालिया नाग बहुत ही खतरनाक है। वे कृष्ण को कालीदह में जाने से रोकना चाहते थे। लेकिन कृष्ण ने उनकी बात नहीं मानी। वे कालीदह में कूद पड़े।
कालिया नाग ने कृष्ण को देखते ही उन पर हमला कर दिया। दोनों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। अंत में, कृष्ण ने कालिया नाग को हराया। कालिया नाग कृष्ण के सामने हार मान गया। उसने कृष्ण से क्षमा मांगी।
कृष्ण ने कालिया नाग को क्षमा कर दिया। लेकिन कालिया नाग को कालीदह में रहने की अनुमति नहीं दी। कृष्ण ने कालिया नाग को कहा कि वह यमुना नदी के दूसरी ओर जाकर रह सकेगा। इस तरह, कालिया नाग ने कृष्ण की आज्ञा मानी और यमुना नदी के दूसरी ओर जाकर रहने लगा।
कालिया नाग के विष के कारण, कृष्ण का श्याम वर्ण नीले रंग में बदल गया। यह एक अद्भुत चमत्कार था। कृष्ण के नीले रंग के रूप को देखकर सभी गोप बाल बहुत ही खुश हुए। वे कृष्ण को "श्यामसुंदर" और "नीलकंठ" कहकर पुकारने लगे।
कृष्ण का नीला वर्ण उनकी अलौकिक शक्तियों का प्रतीक है। यह वर्ण हमें यह बताता है कि कृष्ण एक महान देवता हैं। वे भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।
"बनवारी" शब्द का अर्थ है "वन का स्वामी"। यह शब्द भगवान कृष्ण के वनवासी जीवन और उनके वन के प्रति प्रेम को दर्शाता है।
इसके अलावा, "बनवारी" शब्द का अर्थ "वन के राजा" भी है। यह शब्द भगवान कृष्ण के पराक्रम और शक्ति को भी दर्शाता है। वे एक महान योद्धा थे, और उन्होंने कई राक्षसों का वध किया था।
कुछ लोगों का मानना है कि "बनवारी" शब्द का अर्थ "वन के निवासी" भी है। यह शब्द भगवान कृष्ण की विनम्रता और सरलता को भी दर्शाता है। वे एक साधारण वनवासी के रूप में रहते थे, और उन्होंने कभी भी अपने स्वरूप या शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया।
कुल मिलाकर, "बनवारी" शब्द एक बहुआयामी शब्द है जिसका अर्थ भगवान कृष्ण के कई गुणों को दर्शाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म नंदगाँव में हुआ था। वे बचपन से ही बहुत ही चतुर और शक्तिशाली थे। वे गोप बालों के साथ यमुना नदी के किनारे खेलते थे। एक दिन, वे कालीदह में गेंद खेल रहे थे। कालीदह में कालिया नाग रहता था। कालिया नाग बहुत ही विषैला था। उसका ज़हर इतना शक्तिशाली था कि वह यमुना नदी के पानी को भी विषाक्त कर देता था।
गोप बालों को पता था कि कालिया नाग बहुत ही खतरनाक है। वे कृष्ण को कालीदह में जाने से रोकना चाहते थे। लेकिन कृष्ण ने उनकी बात नहीं मानी। वे कालीदह में कूद पड़े।
कालिया नाग ने कृष्ण को देखते ही उन पर हमला कर दिया। दोनों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ। अंत में, कृष्ण ने कालिया नाग को हराया। कालिया नाग कृष्ण के सामने हार मान गया। उसने कृष्ण से क्षमा मांगी।
कृष्ण ने कालिया नाग को क्षमा कर दिया। लेकिन कालिया नाग को कालीदह में रहने की अनुमति नहीं दी। कृष्ण ने कालिया नाग को कहा कि वह यमुना नदी के दूसरी ओर जाकर रह सकेगा। इस तरह, कालिया नाग ने कृष्ण की आज्ञा मानी और यमुना नदी के दूसरी ओर जाकर रहने लगा।
कालिया नाग के विष के कारण, कृष्ण का श्याम वर्ण नीले रंग में बदल गया। यह एक अद्भुत चमत्कार था। कृष्ण के नीले रंग के रूप को देखकर सभी गोप बाल बहुत ही खुश हुए। वे कृष्ण को "श्यामसुंदर" और "नीलकंठ" कहकर पुकारने लगे।
कृष्ण का नीला वर्ण उनकी अलौकिक शक्तियों का प्रतीक है। यह वर्ण हमें यह बताता है कि कृष्ण एक महान देवता हैं। वे भक्तों के कष्टों को दूर करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।