तारणहार है नाम हरि का
तारणहार है नाम हरि का
तारणहार है नाम हरि का,वो ही पार लगाते है,
भजले तू श्री मन नारायण,
वो ही साथ निभाते है,
तारणहार है नाम हरि का।
इसी नाम का सुमिरन कर,
प्रह्लाद हरि को पाया था,
अपने भगत की रक्षा को वो,
फाड़ लोह खम्ब को आया था,
नाश किया हिरण्याकश्यप का,
प्रह्लाद को गोद बिठाते है,
भजले तू श्री मन नारायण।
अपना आप लुटा नरसी ने,
तार प्रभु संग जोड़ लिया,
छोड़ दिया घर बार सभी कुछ,
सब उसपे ही छोड़ दिया,
बनकर बेटा भात भरन को,
संग रुक्मण वो आते हैं,
भजले तू श्री मन नारायण।
प्रीत लगी जोहरि संग मीरा,
अपना मीत बनाया था,
गिरधर की खातिर सब छोड़ा,
सारा जग ठुकराया था,
हँस के पिया जो विष का प्याला,
अमृत उसे बनाते हैं,
भजले तू श्री मन नारायण।
कितने नाम गिनाऊ जिन्होंने,
भज के हरि को पाया है,
तन मन अर्पण करके प्रभु,
भाव से सदा रिझाया है,
भाव के भूखे है नारायण,
भाव मे दौड़े आते हैं,
भजले तू श्री मन नारायण,
वो ही साथ निभाते हैं,
श्री मन नारायण नारायण,
हरि हरि,
श्री मन नारायण नारायण,
हरि हरि।
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