दुर्गा माता चालीसा पाठ के फायदे महत्त्व Durga Chalisa Mahatv Fayde

दुर्गा माता चालीसा पाठ के फायदे महत्त्व Durga Chalisa Mahatv Fayde

दुर्गा माता चालीसा पाठ के फायदे महत्त्व Durga Chalisa Mahatv Fayde

दुर्गा चालीसा महत्त्व Durga Chalisa Mahatv

नवरात्रि में माता दुर्गा का विशेष महत्व है। मां दुर्गा करुणा, कृपा और शक्ति का पुंज है। नवरात्र में मां दुर्गा का व्रत करके और पूजा के माध्यम से नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।आइये नवरात्रि में माता रानी की पूजा का महत्त्व जान लेते हैं-
  • दुर्गा माता चालीसा का पाठ करने से घर में सुख शांति का वास होता है।
  • घर की नकारात्मक ऊर्जा कम होती है तथा सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
  • दुर्गा माता चालीसा पाठ करने से गृह कलेश दूर होते हैं।
  • दुर्गा माता चालीसा का पाठ करने से घर में सुख, समृद्धि और संपन्नता का वास होता है।
  • समृद्धि प्राप्त करने के लिए और किसी कार्य की सफलता की कामना के लिए किया गया दुर्गा माता चालीसा का पाठ कार्य की सफलता को सुनिश्चित करता है।
  • दुर्गा माता चालीसा का पाठ करने से घर में खुशी और उल्लास का माहौल रहता है।
  • नवरात्र में दुर्गा मां चालीसा का पाठ करने से मातारानी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
  • दुर्गा माता के आशीर्वाद से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं और साधक को सौभाग्य वृद्धि होती है।

दुर्गा चालीसा के पाठ करने की सही विधि

दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए। इन नियमों का पालन करने से दुर्गा चालीसा का पाठ अधिक प्रभावी होता है और व्यक्ति को मां दुर्गा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

दुर्गा चालीसा का पाठ करने की सही विधि निम्नलिखित है:
  • दुर्गा चालीसा का पाठ करने से पहले स्नान करके साफ कपड़े पहन लें। इससे शरीर और मन शुद्ध होता है।
  • पूजा स्थल को साफ करके मां दुर्गा की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
  • मां दुर्गा को फूल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
  • दुर्गा चालीसा को ध्यानपूर्वक पढ़ें। ध्यानपूर्वक पढ़ने से पाठ का पूरा अर्थ समझ में आता है और व्यक्ति को मां दुर्गा की शक्ति का अनुभव होता है।
  • पाठ के अंत में मां दुर्गा की आरती करें।
दुर्गा चालीसा का पाठ करने के लिए कुछ विशेष नियम निम्नलिखित हैं:
  • दुर्गा चालीसा का पाठ किसी भी दिन, किसी भी समय किया जा सकता है। लेकिन नवरात्रि के दौरान इसका पाठ विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
  • दुर्गा चालीसा का पाठ किसी भी भाषा में किया जा सकता है। लेकिन हिंदी में इसका पाठ करना अधिक लाभकारी होता है।
  • दुर्गा चालीसा का पाठ एक बार में ही पूरा किया जाना चाहिए। बीच में पाठ को बाधित नहीं करना चाहिए।
  • दुर्गा चालीसा का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। इससे व्यक्ति को मां दुर्गा का अधिक आशीर्वाद प्राप्त होता है।


दुर्गा चालीसा लिरिक्स Durga Chalisa Lyrics

नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी।

निरंकार है ज्योति तुम्हारी,
तिहूं लोक फैली उजियारी।

शशि ललाट मुख महाविशाला,
नेत्र लाल भृकुटि विकराला।

रूप मातु को अधिक सुहावे,
दरश करत जन अति सुख पावे।

तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुन्दरी बाला।

प्रलयकाल सब नाशन हारी,
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।

रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा,
परगट भई फाड़कर खम्बा।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो,
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं,
श्री नारायण अंग समाहीं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा,
दयासिन्धु दीजै मन आसा।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी,
महिमा अमित न जात बखानी।

मातंगी अरु धूमावति माता,
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।

श्री भैरव तारा जग तारिणी,
छिन्न भाल भव दुख निवारिणी।

केहरि वाहन सोह भवानी,
लांगुर वीर चलत अगवानी।

कर में खप्पर खड्ग विराजै,
जाको देख काल डर भाजै।

सोहै अस्त्र और त्रिशूला,
जाते उठत शत्रु हिय शूला।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत,
तिहुंलोक में डंका बाजत।

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे,
रक्तबीज शंखन संहारे।

महिषासुर नृप अति अभिमानी,
जेहि अघ भार मही अकुलानी।

रूप कराल कालिका धारा,
सेन सहित तुम तिहि संहारा।

परी गाढ़ संतन पर जब जब,
भई सहाय मातु तुम तब तब।

अमरपुरी अरु बासव लोका,
तब महिमा सब रहें अशोका।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी,
तुम्हें सदा पूजें नर नारी।

प्रेम भक्ति से जो यश गावें,
दुख दारिद्र निकट नहिं आवें।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई,
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी,
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।

शंकर आचारज तप कीनो,
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को,
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।

शक्ति रूप का मरम न पायो,
शक्ति गई तब मन पछितायो।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी,
जय जय जय जगदम्ब भवानी।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा,
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।

मोको मातु कष्ट अति घेरो,
तुम बिन कौन हरै दुख मेरो।

आशा तृष्णा निपट सतावें,
रिपू मुरख मौही डरपावे।

शत्रु नाश कीजै महारानी,
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।

करो कृपा हे मातु दयाला,
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं,
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै,
सब सुख भोग परमपद पावै।

देवीदास शरण निज जानी,
करहु कृपा जगदम्ब भवानी।
 
इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण।
 

दुर्गा चालीसा क्या है What Is Durga Chalisa

दुर्गा चालीसा देवी दुर्गा की स्तुति है। दुर्गा चालीसा में देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का आव्हान है। दुर्गा चालीसा का महत्त्व नवरात्रि में और अधिक बढ़ जाता है। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से मन और आत्मा को शांति मिलती है। इससे तनाव और चिंता दूर होती है और व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूती मिलती है।

दुर्गा चालीसा का अर्थ Meaning Of Durga Chalisa

दुर्गा चालीसा में माता दुर्गा के रूप, गुणों और शक्तियों का वर्णन किया गया है। यह चालीसा नवरात्रि के दौरान माता दुर्गा की आराधना के लिए बहुत लोकप्रिय है। यहां दुर्गा चालीसा का अर्थ विस्तार से दिया गया है:

नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो अम्बे दुःख हरनी।
अर्थ: हे दुर्गा, आप सभी को सुख प्रदान करती हैं और सभी दुखों को हरती हैं। आप ही भक्तों के दुखों को दूर करती हैं.

निराकार है ज्योति तुम्हारी, तिहं लोक फैली उजियारी।
अर्थ: आपकी ज्योति निराकार और असीम है, जो तीनों लोकों को प्रकाशित करती है।

रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे।
अर्थ: आपका रूप अत्यंत सुंदर है, जिसे देखने से मनुष्य को अत्यंत आनंद होता है।

तुम संसार शक्ति लै कीना, पालन हेतु अन्न धन दीना।
अर्थ: आपने संसार की सारी शक्तियों को अपने अंदर समाहित कर लिया है और अपने भक्तों के लालन-पालन के लिए उन्हें धन और अन्न प्रदान करती हैं।

प्रलयकाल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिव शंकर प्यारी।
अर्थ: आप प्रलयकाल में भी सभी प्राणियों की रक्षा करती हैं। आप ही गौरी हैं, जो शिव की प्रिय हैं।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।
अर्थ: स्वयं शिव और उनके भक्त भी आपका गुणगान करते हैं और ब्रह्मा और विष्णु आपकी नियमित आराधना करते हैं।

रूप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि ॠषि मुनिन उबारा।
आप ही माँ सरस्वती का रूप हैं। आप ऋषि मुनियों को ज्ञान और बुद्धि प्रदान करती हैं। आपके आशीर्वाद से ऋषि मुनि ज्ञान के क्षेत्र में अग्रसर होते हैं और अपने जीवन को सफल बनाते हैं।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा । प्रकट भई फाडकर खम्बा।
आपने खम्भे को फाड़कर नरसिंह का रूप धारण किया था। आपने हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। आपने अपने ही पुत्र हिरण्यकश्यप को मारकर उसे दंड दिया था।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो, हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।
आपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करके अपने ही पुत्र हिरण्यकश्यप को मार दिया था। आपने हिरण्यकश्यप को दंड देकर धर्म की रक्षा की थी।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं।
आप ही जगत माता, लक्ष्मी का रूप हैं। आप संपूर्ण जगत का पालन करती हैं। आप भगवान विष्णु की पत्नी हैं और आप हमेशा उनके साथ रहती हैं।

क्षीरसिन्धु में करत विलासा, दयासिन्धु दीजै मन आसा।
आपका निवास क्षीर सागर में है। आप स्वयं दया की सागर हैं। आप अपने भक्तों की सभी आशाओं को पूर्ण करती हैं।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी।
आपका निवास हिंगलाज में भी है। आप की महिमा अपरंपार है। आपके गुणों और शक्तियों का वर्णन शब्दों में करना असंभव है।

मातंगी धूमावति माता, भुवनेश्वरि बगला सुखदाता।
आप विभिन्न रूपों में अपने भक्तों को सुख और समृद्धि प्रदान करती हैं। आप मातंगी के रूप में ज्ञान प्रदान करती हैं, धूमवती के रूप में भय को दूर करती हैं, भुवनेश्वरी के रूप में संसार का पालन करती हैं और बगलामुखी के रूप में शत्रुओं को पराजित करती हैं।

श्री भैरव तारा जग तारिणि, छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि।
आप भैरवी देवी के रूप में संसार की रक्षा करती हैं। आप छिन्नमस्ता के रूप में सांसारिक दुखों को हरती हैं।

केहरि वाहन सोह भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी।
आप सिंह की सवारी करती हैं। हनुमान आपके प्रिय भक्त हैं और वे आपकी सेवा में सदैव तत्पर रहते हैं।

कर में खप्पर खड्ग विराजे, जाको देख काल डर भागे।
आपके हाथों में यमराज का डर नहीं रहता है। आपके हाथों में खप्पड़ और खडग हैं, जो यमराज के लिए भी खतरा हैं।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शुला।
आपके हाथों में त्रिशूल और अस्त्र हैं, जो शत्रुओं के लिए भय का कारण हैं। आपके दर्शन मात्र से ही शत्रुओं का हृदय काँप उठता है।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत, तिहूं लोक में डंका बाजत।
नगरकोट हिमालय की गोद में स्थित एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। यहाँ देवी काली का एक भव्य मंदिर है। देवी काली को शक्ति का अवतार माना जाता है। वे दुष्टों का संहार करने वाली और भक्तों की रक्षा करने वाली हैं। इस पंक्ति में कहा गया है कि देवी काली नगरकोट में विराजमान हैं और उनकी शक्ति और महिमा तीनों लोकों में फैली हुई है।

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।
शुंभ-निशुंभ दो शक्तिशाली राक्षस थे जिन्होंने देवताओं पर आक्रमण किया था। देवी काली ने उनका वध कर देवताओं की रक्षा की। रक्तबीज एक प्रकार का दानव था जो अपने खून से नए दानवों को जन्म दे सकता था। देवी काली ने रक्तबीज का वध कर उसकी सेना का नाश किया। इस पंक्ति में कहा गया है कि देवी काली ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अनेकों दानवों का वध किया है।

महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी।
महिषासुर एक अभिमानी राजा था जिसने धरती पर आतंक फैला दिया था। उसने देवताओं को पराजित कर लिया था और धरती पर अपना राज स्थापित कर लिया था। देवी काली ने काली का रूप धारण कर उसका वध कर धरती को उसके आतंक से मुक्त कराया। इस पंक्ति में कहा गया है कि महिषासुर के पापों ने धरती को इतना बोझिल कर दिया था कि उसे देवी काली के द्वारा ही मुक्ति मिल सकी।

रूप कराल कालिका धारा, सैन्य सहित तुम तिहि संहारा।
देवी काली ने काली का रूप धारण कर महिषासुर से युद्ध किया। इस युद्ध में देवी काली ने महिषासुर और उसकी सेना का नाश कर दिया। इस पंक्ति में कहा गया है कि देवी काली ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए अपना विशाल रूप धारण कर महिषासुर का वध किया।

परी गाढं संतन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब।
देवी काली हमेशा अपने भक्तों और संतों की रक्षा करती हैं। जब-जब भक्तों और संतों पर संकट आया है, देवी काली ने उनकी सहायता की है। इस पंक्ति में कहा गया है कि देवी काली अपने भक्तों और संतों की हमेशा रक्षा करती हैं।
 
अमरपुरी अरू बासव लोका, तब महिमा रहें अशोका।
इस पंक्ति का अर्थ है कि अमरपुरी, अर्थात देवलोक, और बासव लोक, अर्थात मनुष्यलोक, आपकी महिमा से ही शोक से मुक्त रहते हैं। आपकी कृपा से ही इन दोनों लोकों में सुख और शांति का वास होता है।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर नारी।
इस पंक्ति का अर्थ है कि अग्नि में भी आपकी ज्योति विद्यमान है। सभी नर और नारी आपकी पूजा अर्चना करते हैं। आपकी कृपा से ही अग्नि जलती है और प्रकाश प्रदान करती है।

प्रेम भक्ति से जो यश गावे, दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे।
इस पंक्ति का अर्थ है कि जो भी आपकी यश की गाथा प्रेम और भक्ति के साथ गाते हैं, उनके पास दुःख और निर्धनता नहीं आती है। आपकी कृपा से ही वे सुख और समृद्धि प्राप्त करते हैं।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई, जन्म मरण ताको छुटि जाई।
इस पंक्ति का अर्थ है कि जो भी श्रद्धा भाव और मन से आपका ध्यान करता है, वह जन्म मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। आपकी कृपा से ही उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी,योग न हो बिन शक्ति तुम्हरी।
इस पंक्ति का अर्थ है कि समस्त देव, मुनि और योगी आपकी पुकार लगाते हुए कहते हैं कि आपकी शक्ति के बिना उनका योग नहीं हो सकता। आपकी कृपा से ही वे योग साधना कर सकते हैं।

शंकर आचारज तप कीनो, काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।
इस पंक्ति का अर्थ है कि शंकराचार्य ने तप कर काम और क्रोध दोनों पर विजय प्राप्त की।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को,काहु काल नहीं सुमिरो तुमको।
इस पंक्ति का अर्थ है कि उन्होनें प्रतिदिन शिव जी का ध्यान किया लेकिन आपका मनन कभी नहीं किया।

शक्ति रूप को मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछतायो।
इस पंक्ति का अर्थ है कि उन्होनें आपके शक्ति रूप की महिमा को नहीं समझा और जब उनकी शक्ति चली गयी तो उन्हें पछतावा हुआ। 

शरणागत हुई कीर्ति बखानी,जय जय जय जगदम्ब भवानी।
इस पंक्ति का अर्थ है कि शरण में आकर देवीदास ने आपकी यश का बखान किया। उन्होंने कहा कि आप सर्वशक्तिमान हैं और आप ही भक्तों की रक्षा करती हैं। उन्होंने आपकी जयकार की और आपसे प्रार्थना की कि आप उन्हें भी अपनी शरण में लें।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहिं कीन विलंबा।
इस पंक्ति का अर्थ है कि देवीदास की भक्ति से प्रसन्न होकर आपने उन्हें बिना देरी के शक्ति प्रदान की। आपने उन्हें अपने भक्तों का संरक्षक बनाया और उन्हें दुष्टों से बचाया।

मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।
इस पंक्ति का अर्थ है कि देवीदास को बहुत कष्ट हो रहा है। वह इस कष्ट को दूर करने के लिए केवल आपके पास ही आते हैं। उनका मानना है कि आपके अलावा कोई भी उनके दुखों को दूर नहीं कर सकता।

आशा तृष्णा निपट सतावें, मोह मदादिक सब विनशावें।
इस पंक्ति का अर्थ है कि देवीदास को आशा और तृष्णा सताती है। वह मोह और अभिमान से भी ग्रसित हैं। वह इन सबके कारण दुखी हैं और इनसे मुक्ति चाहते हैं।

शत्रु नाश कीजै महारानी, सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।
इस पंक्ति का अर्थ है कि देवीदास आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप उनके शत्रुओं का नाश करें। वह केवल आपका ध्यान करते हैं और आपसे ही सहायता की उम्मीद करते हैं।

करो कृपा हे मातु दयाला, ॠद्धि सिद्धि दे करहु निहाला।
इस पंक्ति का अर्थ है कि देवीदास आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप उन पर कृपा करें और उन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण करें। वह आपके दयालु होने का विश्वास करते हैं और आपसे अपनी भक्ति का फल प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं, तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।
इस पंक्ति का अर्थ है कि देवीदास आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप उन्हें सदैव अपनी कृपा से युक्त रखें। वह आपकी कृपा से सभी सुखों को प्राप्त करना चाहते हैं और आपकी यश गाथा हमेशा गाते रहना चाहते हैं।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै, सब सुख भोग परम पद पावै।
इस पंक्ति का अर्थ है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है और वह परम पद को प्राप्त करता है।
देवीदास शरण निज जानी, करहु कृपा जगदम्ब भवानी।
इस पंक्ति का अर्थ है कि देवीदास ने आपसे प्रार्थना की है कि आप उनकी शरण स्वीकार करें और उन पर कृपा करें। वह आपके भक्त हैं और आपसे अपनी भक्ति का फल प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं।

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