माँ दुर्गा क्षमा याचना पाठ अर्थ और महत्त्व

माँ दुर्गा क्षमा याचना पाठ अर्थ और महत्त्व

स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो,
भाषा छन्द शब्द की भूल मेरी,
अपराध क्षमा सरकार करो,
स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो।

मंत्र यंत्र का ज्ञाता नहीं,
आवाहन विसर्जन आता नहीं,
क्या भेंट धरूँ धन पास नहीं,
मंजूर मेरे उदगार करो,
स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो।

तेरे नाम धाम कई रूप वर्ण,
मैं तो जानूं माँ अनुसरन शरण,
करुणा सिंधु कल्याणी अम्बे,
जननी जन का उधार करो,
स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो।

हूँ नीच अधम अपना लो मुझे,
अपने आँचल में छुपा लो मुझे,
उलझा हूँ जगत की उलझन में,
मेरा बड़ा भंवर से पार करो,
स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो।

है पुत्र कुपुत्र हो जाता कहीं,
होती पर माता कुमाता नहीं,
भूला बिसरा मैं बालक हूँ,
मेरे मन मंदिर उजियार करो,
स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो।

यह दास मधुप की चाह माता,
रहे जन्म तुम संग नाता,
हो होंठों पे हरदम नाम तेरा,
इतना मुझ पर उपकार करो,
स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो।

भाषा छन्द शब्द की भूल मेरी,
अपराध क्षमा सरकार करो,
स्तुति पूजा पाठ कथा कीर्तन,
अरदास मेरी स्वीकार करो।
 
माँ दुर्गा की क्षमा याचना प्रार्थना भक्तों द्वारा देवी की पूजा के अंत में की जाती है, ताकि अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा प्राप्त की जा सके। यह प्रार्थना भक्त और देवी के बीच गहन संबंध को दर्शाती है, जिसमें भक्त अपनी सीमाओं और गलतियों को स्वीकार करते हुए देवी से दया और क्षमा की याचना करता है।

दुर्गा क्षमा प्रार्थना मंत्र:
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि॥२॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि। यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्। यां गतिं समवाप्नोति न तां ब्रह्मादयः सुराः॥४॥
सापराधोऽस्मि शरणं प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके। इदानीमनुकम्प्योऽहं यथेच्छसि तथा कुरु॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्। तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि॥६॥
कामेश्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे। गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरि॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्। सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरि॥८॥

मंत्र का अर्थ:
हे परमेश्वरी! मेरे द्वारा दिन-रात सहस्रों अपराध होते रहते हैं। मुझे अपना दास मानकर कृपापूर्वक उन अपराधों को क्षमा करें।
हे परमेश्वरी! मैं न आवाहन करना जानता हूँ, न विसर्जन, और न ही पूजा की विधि। कृपया मुझे क्षमा करें।
हे सुरेश्वरि! मैंने जो मंत्रहीन, क्रियाहीन और भक्तिहीन पूजा की है, वह आपकी कृपा से पूर्ण हो।
सैकड़ों अपराध करने के बाद भी जो 'जगदम्बे' कहकर पुकारता है, उसे वह गति प्राप्त होती है जो ब्रह्मादि देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
जगदम्बिके! मैं अपराधी हूँ, किंतु आपकी शरण में आया हूँ। अब मैं दया का पात्र हूँ; जैसा आप चाहें, वैसा करें।
अज्ञान, विस्मृति या भ्रम के कारण जो भी न्यूनता या अधिकता हुई हो, उसे क्षमा करें और प्रसन्न हों।
सच्चिदानंद स्वरूपिणी, जगन्माता कामेश्वरि! कृपया मेरी इस पूजा को प्रेमपूर्वक स्वीकार करें और प्रसन्न हों।
गोपनीय से भी गोपनीय रहस्यों की रक्षक, सुरेश्वरि! मेरे द्वारा किए गए इस जप को स्वीकार करें। आपकी कृपा से मुझे सिद्धि प्राप्त हो।

महत्त्व:
इस प्रार्थना का महत्त्व भक्त की विनम्रता और समर्पण में निहित है। यह स्वीकारोक्ति है कि मानव स्वभाव से ही त्रुटिपूर्ण है, और देवी की कृपा के बिना पूर्णता असंभव है। इस प्रार्थना के माध्यम से भक्त अपनी गलतियों को स्वीकारते हुए देवी से क्षमा और आशीर्वाद की याचना करता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।

दुर्गा सप्तशती के पाठ के उपरांत इस क्षमा प्रार्थना का उच्चारण विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया है, ताकि अनजाने में हुई त्रुटियों के लिए देवी से क्षमा प्राप्त की जा सके।



जय माता दी क्षमा याचना पाठलेखक: केवल कृष्ण "मधुप"अमृतसर गायन: संदीप "साधक" मोगा
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