माया का मारीच चला मायापति को भटकाने

माया का मारीच चला मायापति को भटकाने


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  कंचन मृग बनकर आया,
सिय का अपहरण कराने,
माया का मारीच चला,
मायापति को भटकाने।

सीता बोली वो देखे,
स्वामी जी मृग कंचन का,
चर्म मार कर लायें यह,
होगा निशान इस वन का,
सिय माया की माया का मृग,
लगे राम मुसकाने,
माया का मारीच चला,
मायापति को भटकाने।

माया सोना है,
उसके आगे यह जग है खिलौना,
कितने लोगों को जीवन भर,
सोने दिया ना सोना,
राम चले सोने के पीछे,
दर दर ठोकर खाने,
माया का मारीच चला,
मायापति को भटकाने।

मायापति को भी वन में,
दर दर भटकाई माया,
इसीलिए जीवन में पड़े न,
माया की कहीं छाया,
राही नचा रहा जो जग को,
उसे माया चली नचाने,
माया का मारीच चला,
मायापति को भटकाने।
 

 


माया का मारीच चला मायापति को भटकाने | Maya Ka Marich | प्रकाश गाँधी | New Ram Bhajan 2023 |
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