गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः


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गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः,
गुरुर्देवो महेश्वरः,
गुरुर्साक्षात्परब्रह्म,
तस्मै श्रीगुरवे नमः।

ध्यानमूलं गुरोर्मूतिः,
पूजामूलम गुरो पदम्,
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं,
मोक्षमूलं गुरोः कृपा।

अखण्डमण्डलाकारं,
व्याप्तं येन चराचरम्,
तत्पदं दर्शितं येन,
तस्मै श्रीगुरवे नमः।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देव देव।

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं,
केवलं ज्ञानमूर्तिं,
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं,
तत्त्वमस्यादिलक्ष्यम्।

एकं नित्यं विमलमचलं,
सर्वधीसाक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं,
सदगुरुं तं नमामि।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु र्गुरुर्देवो महेश्वरः | गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: ||


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