सदगुरु मेरा शूरमा करे शब्द की चोट

सदगुरु मेरा शूरमा करे शब्द की चोट


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सदगुरु मेरा शूरमा,
करे शब्द की चोट,
मारे गोला प्रेम का,
हरे भरम की कोट।

देखा अपने आपको,
मेरा दिल दीवाना हो गया,
ना छेड़ो मुझे यारों,
मैं खुद पे मस्ताना हो गया हो।

चतुराई चूल्हे पड़ी,
पूर पड़यो आचार,
तुलसी हरि के भजन बिन,
चारों वर्ण चमार।

एक घड़ी आधी घड़ी,
आधी में पुनि आध,
तुलसी संगत साधु की,
हरे कोटि अपराध।

सत्संग सेवा साधना,
सत्पुरुषों का संग,
ये चारों करते तुरंत,
मोह निशा का भंग।

यह तन विष की बेलड़ी,
गुरु अमृत की खान,
शिर दीजै सदगुरु मिले,
तो भी सस्ता जान।

कबीरा यह तन जात है,
राख सके तो राख,
खाली हाथों वे गये,
जिन्हें करोड़ों और लाख।

सब घट मेरा सांईया,
खाली घट ना कोय,
बलिहारी वा घट की,
जा घट प्रकट होय।

कबीरा कुआँ एक है,
पनिहारी अनेक,
न्यारे न्यारे बर्तनों में,
पानी एक का एक।

तुलसी जग में यूं रहो,
ज्यों रसना मुख मांही,
खाती घी और तेल नित,
तो भी चिकनी नांही।

पानी केरा बुलबुला,
यह मानव की जात,
देखत ही छुप जात है,
ज्यों तारा प्रभात।

चिंता ऐसी डाकिनी,
काटि कलेजा खाय,
वैद्य बिचारा क्या करे,
कहाँ तक दवा खिलाय।

एक भूला दूजा भूला,
भूला सब संसार,
बिन भूला एक गोरखा,
जिसको गुरु का आधार।

सतगुरु मेरा सूरमा, करें शब्द की चोट ।मारे गोला प्रेम का, हरे भरम की कोट ।।#satloktv24


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