हे री मैं तो प्रेम दिवानी भजन

हे री मैं तो प्रेम दिवानी भजन

हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय।
दरद की मारी बन बन डोलूं बैद मिल्यो नही कोई॥
ना मैं जानू आरती वन्दन, ना पूजा की रीत।
लिए री मैंने दो नैनो के दीपक लिए संजोये॥
 
घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय।
जौहरि की गति जौहरी जाणै की जिन जौहर होय॥

सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय।
गगन मंडल पर सेज पिया की, मिलणा किस बिध होय॥
दरद की मारी बन-बन डोलूं बैद मिल्या नहिं कोय।
मीरा की प्रभु पीर मिटेगी जद बैद सांवरिया होय॥

ऐ रे मैं तो प्रेम दीवानी
मेरा दर्द न जाने कोई
न मैं जानू आरती वंदन
ना पूजा की रीत
है अनजानी दरस दीवानी
मेरी पागल प्रीत


Ae Ri Main To Prem Deewani Mera dard na jaane koye - Narayan Swami - Gujarati Mi

मीरा की भक्ति : विरह वेदना और अनंत प्रेम की प्रतिक हैं कृष्णा। कृष्णा की प्रेम दीवानी है मीरा की भक्ति जो दैहिक नहीं आध्यात्मिक भक्ति है। मीरा ने अपने भजनों में कृष्ण को अपना पति तक मान लिया है। यह भक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा है। मीरा की यह भक्ति उनके बालयकाल से ही थी। मीरा की भक्ति कृष्ण की रंग में रंगी है। मीरा की भक्ति में नारी की पराधीनता की एक कसक है जो भक्ति के रंग में और गहरी हो गयी है। मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया और अपना मन और तन कृष्ण को समर्पित कर दिया। 
 
मीरा कहती हैं कि वह प्रेम में दीवानी होकर जंगल-जंगल भटकती हैं, पर उनके हृदय के दर्द को कोई नहीं समझता, क्योंकि यह प्रभु के मिलन की तड़प है। उन्हें पूजा-आरती की विधियाँ नहीं आतीं, बस अपने नयनों के दीपक लिए वह प्रभु को पुकारती हैं। वह कहती हैं कि घायल का दर्द वही जानता है जो घायल हो, और उनकी सेज सूली पर बिछी हो तो भी प्रियतम से मिलन की चाह बनी रहती है। अंत में, मीरा अपने सांवरिया को एकमात्र वैद्य मानती हैं, जो उनकी पीड़ा को मिटा सकता है। यह भजन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति हृदय की पुकार है, जो बिना दिखावे के प्रभु तक पहुँचती है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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