जैसे सूरज की गर्मी से जलते सोंग

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को सोंग

जैसे सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को
मिल जाये तरुवर कि छाया
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है
मैं जबसे शरण तेरी आया, मेरे राम

भटका हुआ मेरा मन था कोई
मिल ना रहा था सहारा
लहरों से लड़ती हुई नाव को
जैसे मिल ना रहा हो किनारा,
मिल ना रहा हो किनारा
उस लड़खड़ाती हुई नाव को जो
किसी ने किनारा दिखाया
ऐसा ही सुख ...

शीतल बने आग चंदन के जैसी
राघव कृपा हो जो तेरी
उजियाली पूनम की हो जाएं रातें
जो थीं अमावस अंधेरी,
जो थीं अमावस अंधेरी
युग युग से प्यासी मरुभूमि ने
जैसे सावन का संदेस पाया
ऐसा ही सुख ...

जिस राह की मंज़िल तेरा मिलन हो
उस पर कदम मैं बढ़ाऊं
फूलों में खारों में, पतझड़ बहारों में
मैं न कभी डगमगाऊं,
मैं न कभी डगमगाऊं
पानी के प्यासे को तक़दीर ने
जैसे जी भर के अमृत पिलाया
ऐसा ही सुख ...



Jaise Suraj Ki Garmi Se Jalte Huye Tan Ko

Jaise Sooraj Kee Garmee Se Jalate Hue Tan Ko
Mil Jaaye Taruvar Ki Chhaaya
Aisa Hee Sukh Mere Man Ko Mila Hai
Main Jabase Sharan Teree Aaya, Mere Raam

यह भजन राम के प्रति अटूट भक्ति और उनकी शरण का सुख गाता है। जैसे सूरज की तपिश में तपते तन को वृक्ष की छाया सुकून दे, वैसे ही राम की शरण में भटका मन ठिकाना पाता है। जीवन की लहरों में डोलती नाव को जब किनारा न मिले, तब राम ही कृपा का किनारा दिखाते हैं, जैसे अंधेरे में दीया जले।

उनकी कृपा से अग्नि चंदन-सी शीतल हो जाती है, अमावस की रात पूनम-सी उज्ज्वल। प्यासी मरुभूमि को सावन का संदेश मिले, वही सुख राम की भक्ति देती है। जिस राह पर राम का मिलन हो, उस पर फूल हों या काँटे, भक्त कभी नहीं डगमगाता। उनकी शरण में तकदीर अमृत पिलाती है, हर दुख को सुख में बदल देती है। सच्चे मन से राम को पुकारो, वे सदा शरण देते हैं, जीवन को मंगलमय बनाते हैं।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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