पवन सुत तुम कहाते हो हनुमान भजन

पवन सुत तुम कहाते हो हनुमान भजन

पवन सुत तुम कहाते हो हवा के संग चलते हो
नहीं तुम सा यहां दूजा गज़ब के काम करते हो
समन्दर लंघ के भगवन जला डाला था लंका को
बलायें दूर करके सब सभी के दु:ख हरते हो.

राम के भक्त ओ हनुमत सिया के तुम दुलारे हो
उन्ही का काज करने को जमीं पर आ पधारे हो
तुम्हीं नें चीर कर सीना दिखा डाला जमाने को
बसे सिय राम दिल में हैं उन्हीं के तुम सहारे हो

शरण अम्बरीष तेरे है हमें आशीष दे देना
बुराई के सदा भगवन दसों तुम शीश ले लेना
चरण गहकर तुम्हारी वन्दना हम करते सदियों से
प्रभु अपना हमें लेना भुजायें बीस ले लेना
रचयिता ,
कमल सिंह यादव (इलाहाबादी)

पवन सुत तुम कहाते हो Hey Pawan Sut Humko Pawan Sut Tum Kahate Ho

Pavan Sut Tum Kahaate Ho Hava Ke Sang Chalate Ho
Nahin Tum Sa Yahaan Duja Gazab Ke Kaam Karate Ho
Samandar Langh Ke Bhagavan Jala Daala Tha Lanka Ko
Balaayen Dur Karake Sab Sabhi Ke Du:kh Harate Ho.

यह भजन हनुमान जी की महिमा और भक्ति का गीत है। पवनसुत, वायु के संग चलने वाले, अनुपम बल और करुणा के स्वामी, समंदर लाँघकर लंका जलाने वाले, हर बला को दूर करते हैं। राम और सीता के प्रिय, उनके काज के लिए धरती पर आए हनुमान, सीना चीरकर सिया-राम की भक्ति को जगजाहिर करते हैं, जैसे सूरज अपनी रौशनी बिखेरे।

भक्त अम्बरीष की तरह उनकी शरण में आता है, आशीष माँगता है। हनुमान बुराई के दस सिर काटने वाले, भक्तों के दुख हरने वाले हैं। सदियों से उनके चरणों में वंदना होती है, भक्त यही पुकारता है—हमें अपनी भुजाओं में थाम लो। यह भजन सिखाता है कि हनुमान जी की भक्ति साहस और समर्पण देती है। सच्चे मन से उनकी शरण लो, वे सदा रक्षा करते हैं, हर संकट में साथ देते हैं।
 
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