रामचंद्र कह गए सिया से भजन लिरिक्स

रामचंद्र कह गए सिया से भजन Ram Chandra Kah Gaye Siya Se Bhajan

 
Ram Chandra Kah Gaye Siya Se Bhajan

हे जी रे
हे रामचंद्र कह गए सिया से
रामचंद्र कह गए सिया से
ऐसा  कलयुग आएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खाएगा
हे जी रे
सिया ने पूछा 'भगवन!
कलयुग में धर्म - कर्म को
कोई नहीं मानेगा?'
तो प्रभु बोले
'धर्म भी होगा कर्म भी होगा,
परंतु शर्म नहीं होगी
बात बात में मात-पिता को
बेटा आँख दिखाएगा'

हे रामचंद्र कह गए सिया से
राजा और प्रजा दोनों में
होगी निसिदिन खेचातानी,
कदम कदम पर करेंगे दोनों
अपनी अपनी मनमानी,

हे जिसके हाथ में होगी लाठी
जिसके हाथ में होगी लाठी
भैंस वही ले जाएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खाएगा
हे रामचंद्र कह गए सिया से
सुनो सिया कलयुग में
काला धन और काले मन होंगे
काले मन होंगे
चोर उच्चक्के नगर सेठ,
और प्रभु भक्त निर्धन होंगे
निर्धन होंगे
हे जो होगा लोभी और भोगी
जो होगा लोभी और भोगी
वो जोगी कहलाएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खरग
हे रामचंद्र कह गए सिया से
मंदिर सूना सूना होगा
भरी रहेंगी मधुशाला,
मधुशाला
पिता के संग संग भरी सभा में
नाचेंगी घर की बाला, घर
की बाला
हे केसा कन्यादान पिता ही
केसा कन्यादान पिता ही
कन्या का धन खाएगा
हंस चुगेगा दाना तुन का
कौआ मोती खाएगा हे जी रे
हे मूरख की प्रीत बुरी
जुए की जीत बुरी
बुरे संग बैठ ते भागे ही
भागे, भागे ही भागे
हे काजल की कोठरी में
कैसे ही जतन करो
काजल का दाग भाई लागे ही
लागे रे भाई
काजल का दाग भाई लागे ही लागे
हे जी रे
हे कितना जती को कोई
कितना सती हो कोई
कामनी के संग काम जागे
ही जागे, जागे ही जागे
ऐ सुनो कहे गोपीराम
जिसका है नाम काम
उसका तो फंद गले लागे ही
लागे रे भाई

उसका तो फंद गले लागे ही लागे
हे जी रे



Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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