जोगियाँ जोगियाँ रोम रोम में तू ही

जोगियाँ जोगियाँ रोम रोम में तू ही

शिरडी के साईं बाबा भारत की समृद्ध संत परंपरा में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। उनकी अधिकांश उत्पत्ति और जीवन अज्ञात है, लेकिन वह हिंदू और मुस्लिम दोनों भक्तों द्वारा आत्म-साक्षात्कार और पूर्णता के अवतार के रूप में साई को स्वीकारते हैं। भले ही साईं बाबा ने अपने व्यक्तिगत व्यवहार में मुस्लिम प्रार्थनाओं और प्रथाओं का पालन किया, लेकिन वे खुले तौर पर किसी भी धर्म के कट्टरपंथी व्यवहार से घृणा करते थे। इसके बजाय, प्रेम और न्याय के संदेशों के माध्यम से, वह मानव जाति के जागरण में विश्वास करते थे।

जोगियाँ जोगियाँ
रोम रोम में तू ही वसा है सांसो में खुश्बू तेरी,
तू ही मेरा अल्ल्हा साई तू ही मेरी बंदगी,
इश्क़ हो गया तेरे नाल ओ जोगियाँ,
जोगियाँ जोगियाँ ...


तेरे कारण जग ये छोड़ा तुझसे नाता जोड़ लिया,
क्या होगा अब मेरा बाबा जो तूने नाता तोड़ लिया,
इश्क़ हो गया तेरे नाल ओ जोगियाँ,
जोगियाँ जोगियाँ...

साई नाम का पिया है प्याला मैं तो हो गया रे मत वाला,
साई नाम की धुन है ऐसी साई नाम की जपु मैं माला,
इश्क़ हो गया तेरे नाल ओ जोगियाँ,
जोगियाँ जोगियाँ...

साई अजब है फ़कीर नराला,
इस में काबा इस में शिवाला,
हिन्दू मुस्लिम सब की माने इस ने पल में किया उजाला,
इश्क़ हो गया तेरे नाल ओ जोगियाँ,
जोगियाँ जोगियाँ...
 

श्री साई सच्चरित्र अध्याय 7(उनकी प्रक्रति,योगिक क्रियायां और पंढरपुर गमन )

Jogiyaan Jogiyaan
Rom Rom Mein Too Hee Vasa Hai Saanso Mein Khushboo Teree,
Too Hee Mera Allha Saee Too Hee Meree Bandagee,
Ishq Ho Gaya Tere Naal O Jogiyaan,
Jogiyaan Jogiyaan ...
 
साई का प्रेम ऐसा रंग चढ़ता है कि हर साँस में उनकी खुशबू बस जाती है। मन उनका हो जाता है, जैसे नदी सागर में समा जाए। दुनिया की हर चीज़ छोड़, बस उनके साथ एक अनछुआ रिश्ता जुड़ जाता है—वो डर भी नहीं, कि अगर वो साथ छोड़ दें तो क्या होगा, क्योंकि साई का प्रेम कभी टूटता नहीं। उनका नाम जपते ही मन मस्त हो उठता है, जैसे कोई प्याला पीकर झूम उठे। साई का जाप माला बन जाता है, हर धुन में बस वही गूँजता है। वो फकीर ऐसा कि काबा और शिवाला दोनों उनके आलम में समा जाएँ। हिंदू हो या मुस्लिम, सबके लिए वो एक—उनके एक इशारे से अंधेरा छँट जाता है, जैसे सुबह की किरण सब रोशन कर दे। साई के इश्क़ में डूबकर मन जोगी हो उठता है।
 
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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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