डारे रंग डारे कन्हैया रंग डारे भजन
डारे रंग डारे कन्हैया रंग डारे
खेलत फाग कुंवर कन्हाई,श्यामा जू के संग खेलें होली।
डारे रंग डारे कन्हैया रंग डारे,
कन्हैया रंग डारे श्याम रंग डारे।
डारे रंग डारत में मीठो मीठो बोले,
मोसे मीठो मीठो बोले,
नैनन में नैना डाले घुंघट कु खोले,
मेरे घुंघट को खोले,
मारे श्याम मारे पिचकारी भर मारे।
डार गयो रंग मोपे छैल छबीलो,
मोपे छैल छबीलो,
मानो नहीं गोविंद हट को हटीलो,
वो तो हट को हटीलो,
हारे नाय हारे श्याम नाय हारे।
डारे रंग डारे कन्हैया रंग डारे।
होली आई,
तोरी सूरतिया मन को भाए,
सुध बुध भूली में तो हाय,
आंखमिचौली खेले हाय।
कोरे कोरे हाथों से,
रंग डाले जो मेरे तन पे,
मन तुझमें खो जाए,
होली आई।
रंग रंग मोहे रंग दे तू रंग दे तू,
रंग रंग मोहे रंग दे तू रंग दे तू,
रंग रंग मोहे रंग दे तू रंग दे तू,
रंग रंग मोहे रंग दे तू रंग दे तू,
होली आई रे होली आई रे।
ब्रज में होली की रंगत ही निराली है। कन्हैया अपनी रंगों की छटा बिखेरते हुए सबको प्रेम के रंग में रंग रहे हैं। उनकी मीठी मीठी बातें सुनकर राधा शर्माती हैं और घूंघट से झांकती हैं। श्याम छेड़छाड़ भरे अंदाज में पिचकारी चलाते हैं, जिससे रंगों की बौछार राधा जी को भिगो देती है। राधा मनाने की कोशिश करती हैं पर गोविंद अपनी हठ पर अड़े रहते हैं और मुस्कुराते हुए फिर से रंग डाल देते हैं। चारों ओर हंसी ठिठोली, प्रेम और भक्ति का अद्भुत संगम है। यहां सब आनंद में झूम रहे हैं। जय श्री श्याम।
प्रेम और उल्लास का रंग बिखरता है, जहाँ कन्हैया और श्यामा होली के रंग में डूबे हैं। कन्हैया का रंग डालना केवल रंग नहीं, प्रेम की मिठास है, जो मन को उनके बोलों में बाँध लेता है। नैनों से नैन मिले, घूँघट खुल जाए, जैसे आत्मा का परदा हटकर प्रभु से एक हो जाए। पिचकारी की मार, छैल-छबीली अदा, सब मन को मोह लेती है। गोविंद का हठीला स्वभाव मन को और रिझाता है, हार-जीत का खेल प्रेम में विलीन हो जाता है। होली का आगमन कन्हैया की सूरत को और भाए, मन सुध-बुध खोकर उनकी आँखमिचौली में मगन हो। कोरे हाथों से रंग डालें, तो तन-मन सब उनके रंग में रंग जाए। यह होली का उत्सव है, जहाँ रंग, प्रेम और भक्ति का मिलन आत्मा को परमानंद में डुबो देता है।
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