व्रज गोपियों से ना निंदिया चुराना गोपी विरह गीत
व्रज गोपियों से ना निंदिया चुराना गोपी विरह गीत
गोपी विरह गीत :
व्रज गोपियों से ना निंदिया चुराना ।
ब्रज गोपियों से ना निंदिया चुराना ।
ब्रज गोपियों का है प्रेम पुराना ।।
आज से सूनीं गलियाँ राहें ।
पनघट पे भरना है आहें ।।
छोड़के हमको ना तुम जाना ।।
ब्रज गोपियों से........
मैया बाबा को ना छोड़ो ।
प्रेम के रिश्तों को ना तोड़ो ।।
याद करो वो माखन चुराना ।।
ब्रज गोपियों.......
कुंज-निकुंज का मिलना सपना ।
कैसे कहें कान्हा था अपना ।।
कान्त विरह में है आँसू बहाना ।।
ब्रज गोपियों से.......
व्रज गोपियों से ना निंदिया चुराना ।
ब्रज गोपियों से ना निंदिया चुराना ।
ब्रज गोपियों का है प्रेम पुराना ।।
आज से सूनीं गलियाँ राहें ।
पनघट पे भरना है आहें ।।
छोड़के हमको ना तुम जाना ।।
ब्रज गोपियों से........
मैया बाबा को ना छोड़ो ।
प्रेम के रिश्तों को ना तोड़ो ।।
याद करो वो माखन चुराना ।।
ब्रज गोपियों.......
कुंज-निकुंज का मिलना सपना ।
कैसे कहें कान्हा था अपना ।।
कान्त विरह में है आँसू बहाना ।।
ब्रज गोपियों से.......
Brij Gopiyo Se Na Nindiya Churana Bhajan गोपी विरह : ब्रज गोपियों से ना निंदिया चुराना/रचना : दासानुदास श्रीकान्त दास जी महाराज/स्वर:आलोक जी
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गोपियों का प्रेम वह पवित्र बंधन है, जो न तो समय की सीमा मानता है, न ही सांसारिक बंधनों में बँधता है। यह प्रेम अनंत है, जैसे नदी जो सदा अपने सागर की ओर बहती है। गोपियों की पुकार में वह तड़प है, जो कृष्ण के बिना अधूरी है, जैसे कोई दीया बिना बाती के जल नहीं सकता।
गलियाँ और पनघट सूने पड़ गए हैं, क्योंकि कृष्ण की रासलीला और माखन चोरी की स्मृतियाँ अब केवल आहों में बसी हैं। यह विरह सिखाता है कि सच्चा प्रेम त्याग और समर्पण माँगता है, पर वह कभी कम नहीं होता। गोपियाँ कृष्ण से कहती हैं कि वे माता-पिता के समान प्यारे हैं, और यह रिश्ता टूटना नहीं चाहिए। यह भाव बताता है कि प्रेम में विश्वास और निःस्वार्थता ही आधार होती है। कुंज-निकुंज की स्मृतियाँ अब सपने-सी लगती हैं, पर गोपियों का मन कृष्ण को कभी भूल नहीं पाता।
गलियाँ और पनघट सूने पड़ गए हैं, क्योंकि कृष्ण की रासलीला और माखन चोरी की स्मृतियाँ अब केवल आहों में बसी हैं। यह विरह सिखाता है कि सच्चा प्रेम त्याग और समर्पण माँगता है, पर वह कभी कम नहीं होता। गोपियाँ कृष्ण से कहती हैं कि वे माता-पिता के समान प्यारे हैं, और यह रिश्ता टूटना नहीं चाहिए। यह भाव बताता है कि प्रेम में विश्वास और निःस्वार्थता ही आधार होती है। कुंज-निकुंज की स्मृतियाँ अब सपने-सी लगती हैं, पर गोपियों का मन कृष्ण को कभी भूल नहीं पाता।
गौशाला का पता :-श्री रासेश्वरी रसिक ठाकुर गौशाला,
कूँड़ी धाम,अर्जुनपुर, खंडेहा, मऊ, चित्रकूट
(उत्तर प्रदेश),भारत, पिन कोड:-210209
परम पूज्य,दासानुदास, श्री श्रीकांत दास जी महाराज
से श्रीमद भागवत कथा, श्री राम कथा, श्री गौमाता महिमा कथा एवं श्री भक्त-चरित्र कथा करवाने हेतु सम्पर्क-सूत्र :- फोन/वाट्स अप ~ ९ ३ २ ४ ३ ५ २ १ २ १
ई-मेल :- smartraju23@yahoo.com
कूँड़ी धाम,अर्जुनपुर, खंडेहा, मऊ, चित्रकूट
(उत्तर प्रदेश),भारत, पिन कोड:-210209
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Author - Saroj Jangir
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