जापर दीनानाथ ढरै हिंदी मीनिंग Japar Dinanath Dhare Meaning Soordas Ke Pad

जापर दीनानाथ ढरै हिंदी मीनिंग Japar Dinanath Dhare Meaning Soordas Ke Pad

 
जापर दीनानाथ ढरै हिंदी मीनिंग Japar Dinanath Dhare Meaning Soordas Ke Pad

जापर दीनानाथ ढरै।
सो कुलीन बड़ो सुन्दर सी जिहिं पर कृपा करै॥
राजा कौन बड़ो रावन तें गर्वहिं गर्व गरै।
कौन विभीषन रंक निसाचर हरि हंसि छत्र धरै॥
रंकव कौन सुदामाहू तें आपु समान करै।
अधम कौन है अजामील तें जम तहं जात डरै॥
कौन बिरक्त अधिक नारद तें निसि दिन भ्रमत फिरै।
अधिक कुरूप कौन कुबिजा तें हरि पति पा तरै॥
अधिक सुरूप कौन सीता तें जनम वियोग भरै।
जोगी कौन बड़ो संकर तें ताकों काम छरै॥
यह गति मति जानै नहिं को किहिं रस रसिक ढरै।
सूरदास भगवन्त भजन बिनु फिरि-फिरि जठर जरै॥२४॥
 
इस पद में सूरदास जी भगवान् की लीलाओं की अद्भुतता और रहस्यमयता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान् की कृपा का कोई सिद्धान्त नहीं है। वे कभी भी किसी भी व्यक्ति पर कृपा कर सकते हैं। सूरदास जी कहते हैं कि भगवान् की लीलाओं में बड़े-बड़े विरोधाभास देखने को मिलते हैं। उदाहरण के लिए, रावण एक बड़ा राजा था, लेकिन वह अहंकारी था। भगवान् ने उसका अहंकार नष्ट कर दिया और विभीषण को, जो एक निम्न कुल का निसाचर था, पर कृपा करके उसे अपना छत्रधारी बना दिया।

सुदामा एक गरीब भिखारी थे, लेकिन भगवान् ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी बराबरी का बना दिया। अजामील एक बहुत ही अधम व्यक्ति था, लेकिन भगवान् ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें मुक्ति प्रदान की। नारद एक बहुत बड़े विरक्त थे, लेकिन वे भगवान् की भक्ति के बिना भटकते रहते थे। कुब्जा एक बहुत ही कुरूप स्त्री थी, लेकिन भगवान् ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपना पति बना लिया।

सीता एक बहुत ही सुंदर स्त्री थीं, लेकिन उन्हें अपने पति श्रीराम से वियोग सहना पड़ा। शंकर एक बहुत ही बड़े योगी थे, लेकिन उन्हें कामदेव ने छल करके मारा था। सूरदास जी कहते हैं कि इन सभी विरोधाभासों को समझना बहुत मुश्किल है। भगवान् की लीलाओं की गति को कोई नहीं समझ सकता। भगवान् किस साधन से प्रसन्न होते हैं, यह भी किसी को नहीं पता।

सूरदास जी का मानना है कि भगवान् की कृपा पाने का एक ही उपाय है और वह है भगवान् की भक्ति। जो व्यक्ति भगवान् की भक्ति करता है, उसे भगवान् की कृपा अवश्य मिलती है।

इस पद में सूरदास जी भगवान् की लीलाओं की अद्भुतता और रहस्यमयता को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान् की लीलाओं में कोई नियम नहीं है। वे कभी भी किसी भी व्यक्ति पर कृपा कर सकते हैं। सूरदास जी का मानना है कि भगवान् की कृपा पाने का सबसे अच्छा उपाय है भगवान् की भक्ति। जो व्यक्ति भगवान् की भक्ति करता है, उसे भगवान् की कृपा अवश्य मिलती है।

जापर दीनानाथ ढरै।
सो कुलीन बड़ो सुन्दर सी जिहिं पर कृपा करै।

सूरदास जी कहते हैं कि भगवान् दयालु हैं और वे हमेशा दीन-दुखियों पर कृपा करते हैं। इसलिए, जो व्यक्ति दीन है, वह भगवान् की कृपा से कुलीन और सुंदर बन सकता है। जिस पर भी श्री कृष्ण जी की कृपा होती है वह अत्यंत ही कुलीन और सुन्दर बन जाता है.

राजा कौन बड़ो रावन तें गर्वहिं गर्व गरै।
कौन विभीषन रंक निसाचर हरि हंसि छत्र धरै।

सूरदास जी एक उदाहरण देते हैं कि रावण एक बड़ा राजा था, लेकिन वह अहंकारी था। भगवान् ने उसका अहंकार नष्ट कर दिया और विभीषण को, जो एक निम्न कुल का निसाचर था, पर कृपा करके उसे अपना छत्रधारी बना दिया।

रंकव कौन सुदामाहू तें आपु समान करै।
अधम कौन है अजामील तें जम तहं जात डरै।

सूरदास जी कहते हैं कि सुदामा एक गरीब भिखारी थे, लेकिन भगवान् ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी बराबरी का बना दिया। अजामील एक बहुत ही अधम व्यक्ति था, लेकिन भगवान् ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे मुक्ति प्रदान की।

कौन बिरक्त अधिक नारद तें निसि दिन भ्रमत फिरै।
अधिक कुरूप कौन कुबिजा तें हरि पति पा तरै।

सूरदास जी कहते हैं कि नारद एक बहुत बड़े विरक्त थे, लेकिन वे भगवान् की भक्ति के बिना भटकते रहते थे। कुब्जा एक बहुत ही कुरूप स्त्री थी, लेकिन भगवान् ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपना पति बना लिया।

अधिक सुरूप कौन सीता तें जनम वियोग भरै।
जोगी कौन बड़ो संकर तें ताकों काम छरै।

सूरदास जी कहते हैं कि सीता एक बहुत ही सुंदर स्त्री थीं, लेकिन उन्हें अपने पति श्रीराम से वियोग सहना पड़ा। शंकर एक बहुत ही बड़े योगी थे, लेकिन उन्हें कामदेव ने छल करके मारा था।

यह गति मति जानै नहिं को किहिं रस रसिक ढरै।
सूरदास भगवन्त भजन बिनु फिरि-फिरि जठर जरै।

सूरदास जी कहते हैं कि भगवान् की लीलाओं की गति को कोई नहीं समझ सकता। भगवान् किस साधन से प्रसन्न होते हैं, यह भी किसी को नहीं पता। सूरदास कहते हैं कि भगवान् की भक्ति के बिना मनुष्य का मन हमेशा दुखी रहता है।

इस पद में सूरदास जी भगवान् की लीलाओं की अद्भुतता और रहस्यमयता का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि भगवान् के कृपा का कोई सिद्धान्त नहीं है। वे कभी भी किसी भी व्यक्ति पर कृपा कर सकते हैं।

सूरदास जी का मानना है कि भगवान् की कृपा पाने का एक ही उपाय है और वह है भगवान् की भक्ति। जो व्यक्ति भगवान् की भक्ति करता है, उसे भगवान् की कृपा अवश्य मिलती है।
 
शब्दार्थ :- ढरे =प्रसन्न हो जाय। गर्व हि गर्व गरै = अहंकार ही अहंकार में गल कर नष्ट हो जाता है। छत्र = राजछत्र। छरे = छलता है। किहिं रस रसिक ढरै= किस साधन से भगवान् रीझ जाते हैं। जठर जरै = गर्भवास का दुःख भोगता रहेगा।  

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