मो सम कौन कुटिल खल कामी मीनिंग Mo Sam Koun Kutil Khal Kami Meaning : Soordas Ke Pad
मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ ऐसौ नोनहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें सब पतितन में नामी।
सूर पतित कों ठौर कहां है सुनि श्रीपति स्वामी॥२३॥
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ ऐसौ नोनहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें सब पतितन में नामी।
सूर पतित कों ठौर कहां है सुनि श्रीपति स्वामी॥२३॥
इस पद में सूरदास जी स्वंय को नमक हराम घोषित कहकर सन्देश देते हैं की यदि कोई व्यक्ति जिसे इश्वर ने इस संसार में भेजा है हरी सुमिरन के लिए वह यदि भगवान् को भूलकर सांसारिक मायाजनित व्यवहार में लगा रहे तो उससे बड़ा नमक हराम कोई नहीं हो सकता है. वह माया जनित व्यवहार में ऐसे ही लगा रहता है जैसे की किसी गाँव में कोई सूअर अपने उदर पूर्ति के लिए भटकता रहता है.
हिंदी अर्थ : इस पद में सूरदास जी कहते हैं की इस संसार के मायाजनित व्यवहार में वे खल और कामी बन गए हैं, उनसे बड़ा अधमी कौन हो सकता है। वे कहते हैं कि उन्होंने जिस शरीर को भगवान ने उन्हें दिया है, उसे उन्होंने बिल्कुल भी नहीं याद रखा। वे केवल सांसारिक विषयों में ही लगे रहते हैं, जैसे कि गाँव में सूअर अपने खाने की वस्तुओं को ढूढने में ही लगा रहता है। वे भगवान् के भक्तों को छोड़कर, भगवान् से विमुख अन्य विषय विकार में लिप्त लोगों की गुलामी करते रहते हैं। इस पद में सूरदास जी अपनी आत्म-निंदा करते हुए अपनी हीनता का परिचय देते
हैं। वे कहते हैं कि वे एक बहुत ही नीच और पापी व्यक्ति हैं। वे भगवान् के
भक्तों को छोड़कर, भगवान् से विमुख लोगों की गुलामी करते हैं। वे कहते हैं
कि वे सभी पापियों में सबसे बड़े नामी हैं।
यह पद भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाता है। एक भक्त अपने आप को कितना भी नीच और पापी क्यों न समझे, वह हमेशा भगवान् की शरण में जाने के लिए तैयार रहता है। वह जानता है कि केवल भगवान् की कृपा से ही उसे मोक्ष मिल सकता है।शब्दार्थ कुटिल कपटी। विषय सांसारिक वासनां। ग्रामी सूकर गांव का सूर। श्रीपति श्रीकृष्ण से आशय है।
सूरदास जी कहते हैं कि उनसे बड़ा पापी कोई नहीं है। वे सभी पापियों में सबसे बड़े नामी हैं। वे कहते हैं कि पतितों को भगवान् की शरण में जाना चाहिए।
मो सम कौन कुटिल खल कामी- मेरे जैसा कोई और कुटिल, दुष्ट और कामुक नहीं है।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ- जिस शरीर को भगवान् ने हमें दिया है, उसे हमने बिल्कुल भी नहीं याद रखा, उसके महत्त्व को बिसरा दिया है, भुला दिया है।
ऐसौ नोनहरामी-ऐसा नीच आदमी, नमक हराम।
भरि भरि उदर विषय कों धावौं- जैसे सूकर गाँव में चारा ढूंढता है, वैसे ही मैं अपने पेट की पूर्ति के लिए सांसारिक विषयों में दौड़ता रहता हूँ।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी- भगवान् के भक्तों को छोड़कर, भगवान् से विमुख लोगों की गुलामी करता रहता हूँ।
पापी कौन बड़ो है मोतें- मुझसे बड़ा पापी कोई नहीं है।
सब पतितन में नामी- सभी पापियों में सबसे बड़े नामी।
पतित कों ठौर कहां है- पतितों को भगवान् की शरण में जाना चाहिए।
सुनि श्रीपति स्वामी- हे श्रीपति स्वामी, ध्यान दीजिये, कृपा कीजिये
यह पद भक्ति की पराकाष्ठा को दर्शाता है। एक भक्त अपने आप को कितना भी नीच और पापी क्यों न समझे, वह हमेशा भगवान् की शरण में जाने के लिए तैयार रहता है। वह जानता है कि केवल भगवान् की कृपा से ही उसे मोक्ष मिल सकता है।शब्दार्थ कुटिल कपटी। विषय सांसारिक वासनां। ग्रामी सूकर गांव का सूर। श्रीपति श्रीकृष्ण से आशय है।
सूरदास जी कहते हैं कि उनसे बड़ा पापी कोई नहीं है। वे सभी पापियों में सबसे बड़े नामी हैं। वे कहते हैं कि पतितों को भगवान् की शरण में जाना चाहिए।
मो सम कौन कुटिल खल कामी- मेरे जैसा कोई और कुटिल, दुष्ट और कामुक नहीं है।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ- जिस शरीर को भगवान् ने हमें दिया है, उसे हमने बिल्कुल भी नहीं याद रखा, उसके महत्त्व को बिसरा दिया है, भुला दिया है।
ऐसौ नोनहरामी-ऐसा नीच आदमी, नमक हराम।
भरि भरि उदर विषय कों धावौं- जैसे सूकर गाँव में चारा ढूंढता है, वैसे ही मैं अपने पेट की पूर्ति के लिए सांसारिक विषयों में दौड़ता रहता हूँ।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी- भगवान् के भक्तों को छोड़कर, भगवान् से विमुख लोगों की गुलामी करता रहता हूँ।
पापी कौन बड़ो है मोतें- मुझसे बड़ा पापी कोई नहीं है।
सब पतितन में नामी- सभी पापियों में सबसे बड़े नामी।
पतित कों ठौर कहां है- पतितों को भगवान् की शरण में जाना चाहिए।
सुनि श्रीपति स्वामी- हे श्रीपति स्वामी, ध्यान दीजिये, कृपा कीजिये
शब्दार्थ :- कुटिल = कपटी। विषय = सांसारिक वासनाएं। ग्रामी सूकर =गांव का सूअर। श्रीपति = श्रीकृष्ण से आशय है।
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