श्री कुंतनाथ चालीसा चालीसा लिरिक्स Kuntnath Chalisa Lyrics Kunt Nath Chalisa | Jain Stotra |Jinvani Gyan| Tirthankar Chalisa
दयासिन्धु कुन्थु जिनराज, भवसिन्धु तिरने को जहाज ।
कामदेव, चक्री महाराज, दया करो हम पर भी आज ।
जय श्री कुन्युनाथ गुणखान, परम यशस्वी महिमावान ।
हस्तिनापुर नगरी के भूपति, शूरसेन कुरुवंशी अधिपति ।
महारानी थी श्रीमति उनकी, वर्षा होती थी रतनन की ।
प्रतिपदा बैसाख उजियारी, जन्मे तीर्थकर बलधारी ।
गहन भक्ति अपने उर धारे, हस्तिनापुर आए सुर सारे ।
इन्द्र प्रभु को गोद में लेकर, गए सुमेरु हर्षित होकर ।
न्हवन करें निर्मल जल लेकर, ताण्डव नृत्य करे भक्वि- भर 1
कुन्थुनाथ नाम शुभ देकर, इन्द्र करें स्तवन मनोहर ।
दिव्य-वस्त्र- भूषण पहनाए, वापिस हस्तिनापुर को आए ।
कम-क्रम से बढे बालेन्दु सम, यौवन शोभा धारे हितकार ।
धनु पैंतालीस उन्नत प्रभु- तन, उत्तम शोभा धारें अनुपम ।
आयु पिंचानवे वर्ष हजार, लक्षण ‘अज’ धारे हितकार ।
राज्याभिषेक हुआ विधिपूर्वक, शासन करें सुनीति पूर्वक ।
चक्ररत्तन शुभ प्राप्त हुआ जब, चक्रवर्ती कहलाए प्रभु तब ।
एक दिन गए प्रभु उपवन मेँ, शान्त मुनि इक देखे मग में ।
इंगिन किया तभी अंगुलिसे, “देखो मुनिको’ -कहा मंत्री से ।
मंत्री ने पूछा जब कारण, “किया मोक्षहित मुनिपद धारण’ ।
कारण करें और स्पष्ट, “मुनिपद से ही कर्म हों नष्ट’ ।
मंत्रो का तो हुआ बहाना, किया वस्तुतः निज कल्याणा ।
चिन विरक्त हुआ विषयों से, तत्व चिन्तन करते भावों से ।
निज सुत को सौंपा सब राज, गए सहेतुक वन जिनराज ।
पंचमुष्टि से कैशलौंचकर, धार लिया पद नगन दिगम्बर ।
तीन दिन बाद गए गजपुर को, धर्ममित्र पड़गाहें प्रभु को ।
मौन रहे सोलह वर्षों तक, सहे शीत-वर्षा और आतप ।
स्थिर हुए तिलक तरु- जल में, मगन हुए निज ध्यान अटल में ।
आतम ने बढ़ गई विशुद्धि, कैवलज्ञान की हो गई सिद्धि ।
सूर्यप्रभा सम सोहें आप्त, दिग्मण्डल शोभा हुई व्याप्त ।
समोशरण रचना सुखकार, ज्ञाननृपित बैठे नर- नार ।
विषय-भोग महा विषमय है, मन को कर देते तन्मय हैं ।
विष से मरते एक जनम में, भोग विषाक्त मरें भव- भव में ।
क्षण भंगुर मानब का जीवन, विद्युतवन विनसे अगले क्षण ।
सान्ध्य ललिमा के सदृश्य ही, यौवन हो जाता अदृश्य ही ।
जब तक आतम बुद्धि नही हो, तब तक दरश विशुद्धि नहीं हौं ।
पहले विजित करो पंचेन्द्रिय, आत्तमबल से बनो जितेन्द्रिय ।
भव्य भारती प्रभु की सुनकर, श्रावकजन आनन्दित को कर ।
श्रद्धा से व्रत धारण करते, शुभ भावों का अर्जन करते ।
शुभायु एक मास रही जब, शैल सम्मेद पे वास किया तब ।
धारा प्रतिमा रोग वहॉ पर, काटा क्रर्मबन्ध्र सब प्रभुवर ।
मोक्षकल्याणक करते सुरगण, कूट ज्ञानधर करते पूजन ।
चक्री… कामदेव… तीर्थंकर, कुंन्धुनाथ थे परम हितंकर ।
चालीसा जो पढे भाव से, स्वयंसिद्ध हों निज स्वभाव से ।
धर्म चक्र के लिए प्रभु ने, चक्र सुदर्शन तज डाला ।
इसी भावना ने अरुणा को, किया ज्ञान में मतवाला ।
जाप: – ॐ ह्रीं अर्हं श्री कुन्थनाथाय नमः
प्रार्थना
शुर राजा और श्रीदेवी के लाडले कुन्थुनाथजी है
चक्रवर्ती की आज्ञा सारी दुनिया झुक के मानती हैl
धर्मतीर्थ के सारथि जिनवर ! भवसागर में नैया से !
जीवननैया पार लगेगी, प्रभुजी है खेवैया-से।।
प्रार्थना
शुर राजा और श्रीदेवी के लाडले कुन्थुनाथजी है
चक्रवर्ती की आज्ञा सारी दुनिया झुक के मानती हैl
धर्मतीर्थ के सारथि जिनवर ! भवसागर में नैया से !
जीवननैया पार लगेगी, प्रभुजी है खेवैया-से।।
श्री कुंथूनाथ भगवंत परिचय
- माता का नाम – श्रीरानी
- पिता का नाम – शुर राजा
- च्यवन कल्याणक – श्रावक कृष्णा ९/ हस्तिनापुर
- जन्म कल्याणक – वैशाख कृष्णा १४/ हस्तिनापुर
- दीक्षा कल्याणक – वैशाख कृष्णा ५/ हस्तिनापुर
- केवलज्ञान कल्याणक – चैत्र शुक्ला ३/ हस्तिनापुर
- निर्वाण कल्याणक – वैशाख कृष्णा १/ सम्मेतशिखर
- गणधर – संख्या ३५ प्रमुख सांब
- साधू – संख्या ६० हजार प्रमुख सांब
- साध्वी – संख्या ६० हजार ६ सौ प्रमुख दामिनी
- श्रावक – संख्या १ लाख ७६ हजार
- श्राविका – संख्या ३ लाख ८१ हजार
- ज्ञानवृक्ष – तिलक
- यक्ष (अधिष्ठायक देव) – गंधर्व
- यक्षिणी (अधिष्ठायिका देवी) – अच्युता
- आयुष्य – ६५ हजार वर्ष
- लंछन (चिन्ह) – बकरा
- च्यवन किस देवलोक से? – सर्वार्थसिद्ध (अनुत्तर)
- तीर्थंकर नामकर्म उपार्जन – सिंहावह के भव में
- पुर्वभव कितने ? – ३
- छद्मस्थ अवस्था – १६ वर्ष
- गृहस्थ अवस्था – ७१हजार २५० वर्ष
- शरीर-वर्ण (आभा) – सुवर्ण
- दीक्षा दिन की शिबिका का नाम – विजया
- नाम-अर्थ – स्वप्न में माँ ने जमींन में रहे हुए रत्न स्तूप को देखा।