म्हारी झुँझन वाली माँ पधारो कीर्तन में भजन

म्हारी झुँझन वाली माँ पधारो कीर्तन में भजन

मुखड़ा:
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में,
कीर्तन में माँ, कीर्तन में,
भक्तां के घर-आँगन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में।।
अंतरा 1:

चाव चढ़्यो है भारी मन में,
इब ना देर करो आवन में,
थारी कद से उडीका बाट,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में।।
अंतरा 2:

थारी पावन ज्योत जगाकर,
थारे आगे शीश नवाकर,
म्हे जोड़ के बैठ्या हाथ,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में।।
अंतरा 3:

थारो कीर्तन राख्यो भारी,
जी में आई दुनिया सारी,
भगता री राखो लाज,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में।।
अंतरा 4:

'सोनू' थारा ध्यान लगावे,
मीठा-मीठा भजन सुनावे,
म्हारी सुन लो थारी अरदास,
पधारो कीर्तन में,
म्हारी झुँझण वाली माँ,
पधारो कीर्तन में।।


Mhari Jhunjhnuwali Maa Padharo Kirtan Me || RaniSati Dadi Bhajan By Saurabh Madhukar

सुन्दर भजन में झुंझन वाली माँ के प्रति भक्तों की गहरी श्रद्धा और उनके कीर्तन में पधारने की उत्कट प्रार्थना का हृदयस्पर्शी चित्रण है। माँ का आह्वान भक्तों के घर-आँगन को पवित्र करने की भावना से भरा है, जहाँ उनका आगमन कीर्तन को आलोकित करता है। भक्तों का मन माँ के दर्शन की तीव्र चाह से भरा है, और वे बेसब्री से उनकी प्रतीक्षा करते हैं, जैसे एक बालक माता की गोद में आने को व्याकुल रहता है। यह उद्गार सिखाता है कि सच्ची भक्ति में माँ के प्रति प्रेम और समर्पण ही हृदय को शुद्ध करता है।

माँ की पावन ज्योत जगाकर और उनके चरणों में शीश नवाकर भक्त अपनी अरदास जोड़ते हैं। कीर्तन में माँ की उपस्थिति से भक्तों की लाज रखने और सारी दुनिया को प्रेम से जोड़ने की कामना है। ‘सोनू’ का मीठा भजन गाना और माँ का ध्यान लगाना उनकी कृपा पाने का मार्ग है। जैसे वर्षा धरती को हरा-भरा करती है, वैसे ही माँ का पधारना भक्तों के जीवन को सुख और शांति से भर देता है। यह भाव दर्शाता है कि माँ की भक्ति से मन का अंधेरा मिटता है और जीवन प्रेम व आनंद से परिपूर्ण होता है।

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