मुझे खाटू बुला लेना भजन
मुझे खाटू बुला लेना भजन
मुझे ओ सँवारे करुणा की गंगा में बहा लेना,मैं जब लू आखरी सांसे, मुझे खाटू बुला लेना।
भुजे जब दीप नैनो के छवि इनमे तुम्हारी हो,
ना हो मेला ज़माने का प्रभु हो और पुजारी हो,
निभाई आज तक जैसे बस इसे ही निभा लेना,
मैं जब लू आखरी सांसे, मुझे खाटू बुला लेना।
पिता तुम हो तुम्ही माता तुम्ही बेहना भाई हो,
ओ सांवरिया तुम्ही पेहली तुम्ही अंतिम कमाई हो,
तुम्हे मैं चाहता हु अपने हिर्दय में छुपा लेना,
मैं जब लू आखरी सांसे, मुझे खाटू बुला लेना।
गवा दी ज़िंदगी मैंने ज़माने से निभाने में,
कभी हसने हँसाने में कभी रोने रुलाने में,
बचे बाकि जो पल चाहु मैं तेरे संग वीता लेना,
मैं जब लू आखरी सांसे,मुझे खाटू बुला लेना,
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श्रीकृष्णजी भक्त के लिए माता, पिता, भाई और अंतिम कमाई हैं, जिन्हें वह हृदय में संजोना चाहता है। उसने जीवन सांसारिक रिश्तों को निभाने, हँसने-हँसाने और रोने-रुलाने में गँवा दिया, पर अब बचे पलों को वह श्याम के संग बिताना चाहता है। यह प्रार्थना कि अंतिम क्षणों में खाटू बुलाया जाए, उनकी कृपा पर अटूट विश्वास को दर्शाती है। जैसे एक नदी अंत में समुद्र में मिलती है, वैसे ही भक्त जीवन के अंत में श्रीकृष्णजी के चरणों में लीन होना चाहता है। यह भाव प्रदर्शित करता है कि प्रभु का प्रेम ही जीवन का सार है, जो अंत तक साथ देता है।