राधारानी बृज की रानी तुम हो गई
राधारानी बृज की रानी तुम हो गई हो प्राण हमारी
राधारानी बृज की रानी,तुम हो गई हो प्राण हमारी,
हे प्यारी वृषभानु दुलारी,
तुम हो गई हो प्राण हमारी,
हर पल संजो के रखी,
हृदय में तेरी छवि।
राधारानी श्री वृन्दावनेश्वरी,
ओ राधारानी श्री वृन्दावनेश्वरी।
सबसे है ऊंची प्रीत तुम्हारी,
प्रेम का दूजा नाम हो तुम,
करुणा भरी मूरत है तुम्हारी,
सारे जगत का सार हो तुम।
एक पल तुम्हारे बिन दिल नहीं लगता,
राधा ही राधा नाम मन मेरा रटता,
आएगी कब वो घड़ी,
सामने तुम होगी खड़ी।
राधारानी श्री वृन्दावनेश्वरी,
ओ राधारानी श्री वृन्दावनेश्वरी।
वृन्दावन में है राधे जो कोई आया,
राधा राधा है रट के आपको पाया,
वृन्दावन में है राधे जो कोई आया,
राधा राधा है रट के आपको पाया,
वृन्दावन में है राधे जो कोई आया,
राधा राधा है रट के आपको पाया।
जय श्री राधे।
Vrindavaneshwari | Radharani Bhajan | Vaibhav Rawal | Shashank | Lotus Feet Music | New Bhajan
सुन्दर भजन में श्रीराधारानी की दिव्य महिमा और उनकी प्रेममयी कृपा का भाव प्रकट किया गया है। वे केवल श्रीकृष्णजी की प्राणप्रिय नहीं, बल्कि समस्त भक्तों के हृदय में श्रद्धा और भक्ति का अमृत संचार करने वाली हैं। उनके प्रेम का स्वरूप अद्वितीय है—निष्कलंक, निर्मल और अनन्त। यह केवल लौकिक स्नेह नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन की दिव्य अनुभूति है।
श्रीराधारानी का प्रेम समस्त भौतिक सीमाओं से परे है। यह प्रेम भक्ति का चरम रूप है, जिसमें समर्पण और माधुर्य का अनंत प्रवाह है। वृन्दावन की रानी होकर भी वे अत्यंत सरल, कोमल और करुणामयी हैं। जो भी प्रेमपूर्वक उनका स्मरण करता है, वह श्रीकृष्णजी के कृपा-सिन्धु में सहज रूप से प्रवेश करता है। उनकी कृपा से मन शुद्ध और पावन होता है, जिससे आत्मा को परम आनंद की अनुभूति होती है।
भजन का भाव यही दर्शाता है कि श्रीराधारानी की आराधना केवल वाणी का कार्य नहीं, बल्कि यह हृदय की सच्ची पुकार है। उनके नाम का स्मरण करते ही भक्त का मन समस्त सांसारिक विकारों से मुक्त हो जाता है और आत्मा स्नेह, भक्ति और माधुर्य में निमग्न हो जाती है। वृन्दावन में जो कोई भी श्रद्धा और प्रेम से आता है, वह श्रीराधारानी की कृपा से आत्मिक शांति प्राप्त करता है।
श्रीराधारानी का प्रेम अपने भीतर अपार करुणा और माधुर्य समाहित किए हुए है। यह केवल श्रीकृष्णजी से प्रेम करने का संदेश नहीं देता, बल्कि समस्त सृष्टि के प्रति स्नेह और समर्पण की अनुभूति जाग्रत करता है। जब भक्त सच्चे हृदय से उनकी आराधना करता है, तब उसे परमात्मा की निकटता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यही भजन का दिव्य सार है—श्रीराधारानी के प्रेम में डूबकर आत्मा को परम शांति और आनंद की प्राप्ति होती है।