नन्द रानी कन्हैया जबर भयो रे

नन्द रानी कन्हैया जबर भयो रे

नन्द रानी कन्हैया, जबर भयो रे
मेरी मटकी उलट के, पलट गयो रे
।। अन्तरा।।
मुस्कान इसकी, लगे प्यारी प्यारी
दीवानी हुई इसकी, सारी ब्रजनारी
ऐकी बंशी में जियरो, अटक गयो रे।।
मेरी मटकी उलट…………….।।1।।
पनघट पे आके, करै जोरा जोरा जोरी
चुपके से आके, करै चीर चोरी
मैया हल्लो मच्यो तो, सटक गयो रे।।
मेरी मटकी उलट…………….।।2।।
घर घर में जाके, यो माखन चुरावे
खावै सो खावै, जमीं पै गैरावे
मैया रोकनो हमारो, खटक गयो रे।।
मेरी मटकी उलट…………….।।3।।
मैं तो दुखारी, गरीबी की मारी
नहीं जोर चालयो, तो दिन्ही मैं गारी
नन्दू बैयाँ कन्हैया, झटक गयो रे।।
मेरी मटकी उलट…………….।।4।।
 

सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी की बाल लीला और उनकी मधुर शरारतों का भाव व्यक्त किया गया है। उनकी सरलता और मोहक मुस्कान से समस्त ब्रज का वातावरण उल्लासमय हो जाता है। माखन चोरी और उनकी चंचलता केवल बाहरी क्रीड़ा नहीं, बल्कि यह भक्ति और प्रेम की गहराई को दर्शाने वाला दिव्य संकेत है।

श्रीकृष्णजी का बालस्वरूप भक्तों के मन को चंचलता और माधुर्य से भर देता है। उनकी मधुर बाँसुरी की ध्वनि सुनकर ब्रज की नारियाँ प्रेममयी हो जाती हैं और उनके नाम का स्मरण करने से ही आत्मा आनंदित हो जाती है। उनका हर कार्य केवल क्रीड़ा नहीं, बल्कि भक्ति और प्रेम की आधारशिला है, जिससे भक्त अपने समर्पण को पूर्णता प्रदान करता है।

भजन का भाव यह दर्शाता है कि श्रीकृष्णजी का प्रेम केवल एक रासलीला तक सीमित नहीं, बल्कि यह समस्त सृष्टि में माधुर्य और करुणा का प्रवाह है। उनकी शरारतों में भी ईश्वरीय प्रेम की गहन अनुभूति होती है। ब्रजवासियों के लिए उनका हर कार्य एक लीला थी, जिससे भक्ति और श्रद्धा का अद्वितीय भाव जाग्रत होता था।

श्रीकृष्णजी की बाल लीलाएँ भक्तों के मन में आनंद और प्रेम का संचार करती हैं। उनकी कृपा से ही जीवन में माधुर्य और प्रेम की गहराई प्राप्त होती है। जब भक्त उनकी भक्ति में रमता है, तब उसकी आत्मा स्नेह और आनन्द से भर जाती है। यही इस भजन का दिव्य सार है—श्रीकृष्णजी की मधुरता, प्रेम और शरारतों में भक्ति की अपार गहराई को अनुभूत करना।
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