श्री गीता जी की आरती
श्री गीता जी की आरती
श्री गीता जी की आरती ||जग की तारन हार त्रिवेणी,स्वर्गधाम की सुगम नसेनी |
अपरम्पार शक्ति की देनी,जय हो सदा पुनीता की ||
ज्ञानदीन की दिव्य-ज्योती मां,सकल जगत की तुम विभूती मां |
महा निशातीत प्रभा पूर्णिमा,प्रबल शक्ति भय भीता की || करो०
अर्जुन की तुम सदा दुलारी,सखा कृष्ण की प्राण प्यारी |
षोडश कला पूर्ण विस्तारी,छाया नम्र विनीता की || करो० ||
श्याम का हित करने वाली,मन का सब मल हरने वाली |
नव उमंग नित भरने वाली,परम प्रेरिका कान्हा की || करो० ||
जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
कर्म-सुमर्म-प्रकाशिनि,
कामासक्तिहरा ।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि,
विद्या ब्रह्म परा ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
निश्चल-भक्ति-विधायिनि,
निर्मल मलहारी ।
शरण-सहस्य-प्रदायिनि,
सब विधि सुखकारी ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
राग-द्वेष-विदारिणि,
कारिणि मोद सदा ।
भव-भय-हारिणि,
तारिणि परमानन्दप्रदा ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
आसुर-भाव-विनाशिनि,
नाशिनि तम रजनी ।
दैवी सद् गुणदायिनि,
हरि-रसिका सजनी ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
समता, त्याग सिखावनि,
हरि-मुख की बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,
श्रुतियों की रानी ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
दया-सुधा बरसावनि,
मातु! कृपा कीजै ।
हरिपद-प्रेम दान कर,
अपनो कर लीजै ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
कर्म-सुमर्म-प्रकाशिनि,
कामासक्तिहरा ।
तत्त्वज्ञान-विकाशिनि,
विद्या ब्रह्म परा ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
निश्चल-भक्ति-विधायिनि,
निर्मल मलहारी ।
शरण-सहस्य-प्रदायिनि,
सब विधि सुखकारी ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
राग-द्वेष-विदारिणि,
कारिणि मोद सदा ।
भव-भय-हारिणि,
तारिणि परमानन्दप्रदा ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
आसुर-भाव-विनाशिनि,
नाशिनि तम रजनी ।
दैवी सद् गुणदायिनि,
हरि-रसिका सजनी ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
समता, त्याग सिखावनि,
हरि-मुख की बानी ।
सकल शास्त्र की स्वामिनी,
श्रुतियों की रानी ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
दया-सुधा बरसावनि,
मातु! कृपा कीजै ।
हरिपद-प्रेम दान कर,
अपनो कर लीजै ॥
॥ जय भगवद् गीते...॥
जय भगवद् गीते,
जय भगवद् गीते ।
हरि-हिय-कमल-विहारिणि,
सुन्दर सुपुनीते ॥
सुन्दर भजन में श्रीमद्भगवद्गीता की दिव्य महिमा और उसकी अनंत कृपा का भाव प्रकट किया गया है। यह ग्रंथ केवल उपदेश का स्रोत नहीं, बल्कि समस्त जगत का मार्गदर्शन करने वाला अमृत है। इसके माध्यम से परमात्मा ने जीवन के रहस्यों को उद्घाटित किया, जिससे प्रत्येक साधक धर्म, कर्म और भक्ति की सच्ची अनुभूति प्राप्त कर सकता है।
भगवद्गीता का ज्ञान केवल अर्जुन के लिए नहीं था, बल्कि यह समस्त मानव जाति के लिए एक दिव्य अनुग्रह है। यह जीवन के प्रत्येक संघर्ष को शांति और विवेक से हल करने की दिशा प्रदान करता है। जब मनुष्य मोह, द्वेष और अज्ञान में उलझता है, तब गीता का प्रकाश उसे आत्मिक उत्थान की ओर ले जाता है। यह ग्रंथ सत्य, त्याग और समता का संदेश देता है, जिससे साधक अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।
भजन का भाव यह स्पष्ट करता है कि गीता केवल एक पवित्र ग्रंथ नहीं, बल्कि मोक्ष का द्वार है। जब साधक इसके संदेश को आत्मसात करता है, तब उसके भीतर का अज्ञान समाप्त होता है और ईश्वरीय प्रेम की अनुभूति होती है। यह आत्मा को निर्मल बनाकर परम सत्य से जोड़ता है, जिससे व्यक्ति जीवन के वास्तविक लक्ष्य को समझ सकता है।
भगवद्गीता की वाणी हर पल साधक के साथ रहती है। यह कर्म की महिमा को स्पष्ट करती है और बताती है कि सच्ची श्रद्धा और आत्मज्ञान से ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है। जब साधक इस दिव्य संदेश को अपने हृदय में धारण करता है, तब उसे परम आनंद और शाश्वत शांति की अनुभूति होती है। यही इस भजन का सार है—सत्य, भक्ति और कर्म के मार्ग पर चलते हुए आत्मा को मुक्त करने का संदेश। गीता की कृपा से ही जीवन में वास्तविक ज्ञान और शांति प्राप्त होती है। यही भगवद्गीता का दिव्य स्वरूप है।