श्री चन्द्र जी की आरती

श्री चन्द्र जी की आरती 

ॐ जय श्रीचन्द्र यती,
स्वामी जय श्रीचन्द्र यती |
अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |
सन्तन पथ प्रदर्शक भगतन सुखदाता,
अगम निगम प्रचारक कलिमहि भवत्राता |
कर्ण कुण्डल कर तुम्बा गलसेली साजे,
कंबलिया के साहिब चहुँ दीश के राजे |
अचल अडोल समाधि प्झासा
सोहेबालयती बनवासी देखत जग मोहे |
कटि कौपीन तन भस्मी जटा मुकुट धारी,
धर्म हत जग प्रगटे शंकर त्रिपुरारी |
बाल छबी अति सुन्दर निशदिन मुस्काते,
भ विशाल सुलोचन निजानन्दराते |
उदासीन आचार्य करूणा कर देवा,
प्रेम भगती वर दीजे और सन्तन सेवा |
मायातीत गुसाई तपसी निष्कामी,
पुरुशोत्तम परमात्म तुम हमारे स्वामी |
ऋषि मुनि ब्रह्मा ज्ञानी गुण गावत तेरे,
तुम शरणगत रक्षक तुम ठाकुर मेरे |
जो जन तुमको ध्यावे पावे परमगती,
श्रद्धानन्द को दीजे भगती बिमल मती |
अजर अमर अविनाशी योगी योगपती |
स्वामी जय श्रीचन्द्र यती

आरती-जय श्री चन्द्रयति। Swami Prem Vivekanand-Aarati-Jai Shri Chandrayati

सुन्दर भजन में श्रीचन्द्र यतीजी की योगमयी महिमा और उनकी दिव्यता का भाव प्रकाशित किया गया है। वे अजर, अमर और अविनाशी हैं—एक ऐसे तपस्वी जिन्होंने योग की अलौकिक शक्तियों से संतों और भक्तों को मार्गदर्शन प्रदान किया। उनका जीवन केवल साधना का परिचायक नहीं, बल्कि समर्पण और ज्ञान का सजीव स्वरूप है।

श्रीचन्द्रजी का तेज, उनकी साधना और उनकी करुणा साधकों को आध्यात्मिक यात्रा में सहारा देती है। उनकी अडोल तपस्या संपूर्ण सृष्टि को धर्म का संदेश देती है। वे मायातीत हैं, सांसारिक बंधनों से परे, जिन्होंने साधना के माध्यम से आत्मज्ञान की ऊंचाई प्राप्त की। उनके चरणों में श्रद्धा से झुकने से भक्त के भीतर दिव्यता और भक्ति का संचार होता है।

भजन का भाव यही बताता है कि श्रीचन्द्रजी केवल एक तपस्वी नहीं, बल्कि भक्तों के लिए आध्यात्मिक संरक्षक हैं। उनकी कृपा से श्रद्धा और तप की गहराइयाँ प्राप्त होती हैं। वे सच्चे योगी, अचल समाधि में स्थित, जिन्होंने अपनी शक्ति से धर्म के मार्ग को प्रकाशित किया और भक्तों को वास्तविक आध्यात्मिक सुख प्रदान किया।

श्रीचन्द्रजी की उपासना से आत्मा का कल्याण संभव है। जो भी श्रद्धा और प्रेम से उनकी आराधना करता है, उसे आध्यात्मिक शांति और भक्ति की उच्च अवस्था प्राप्त होती है। उनकी साधना का संदेश यही है कि जीवन में तपस्या, प्रेम और सेवा से ही वास्तविक मोक्ष प्राप्त होता है। यही उनकी योगमयी कृपा का दिव्य स्वरूप है, जो साधक को धर्म और सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। उनकी कृपा से ही भक्त के भीतर निर्मल भक्ति और सच्ची श्रद्धा जाग्रत होती है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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