अर्जी कर दी सांवरिया इ पर छाप भजन
अर्जी कर दी सांवरिया इ पर छाप भजन
(मुखड़ा)
अर्जी कर दी सांवरिया, इस पर छाप लगा दयो जी।
छाप लगादो, छाप लगादो, छाप लगा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
घट-घट की जानो हो सारी, अरज़ी लोक दिखाओ जी।
सोच-समझ के बेगा, सोच-समझ के बेगा,
अपने आप लगा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
श्याम धनी बिन नाही गुज़ारो, नज़रा दर पर लागी जी।
सुंदर श्याम बिहारी सोया, सुंदर श्याम बिहारी सोया,
भाग्य जगा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
कहने को म्हारो ज़ोर कन्हैया, आगे मर्ज़ी थारी जी।
भवजल माई नाव पर, बेगा पहुंचा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
दृष्टि कृपा की रखो जद, नाको चौकस पि जासी जी।
मस्ती की दो घूंट पिलाकर, बेगा पिया दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
श्याम बहादुर थारे आगे, खोल कहूं शिव सारी जी।
हूं चरणां को चेरो, सतमार्ग दिखा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(पुनरावृत्ति)
अर्जी कर दी सांवरिया, इस पर छाप लगा दयो जी।।
अर्जी कर दी सांवरिया, इस पर छाप लगा दयो जी।
छाप लगादो, छाप लगादो, छाप लगा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
घट-घट की जानो हो सारी, अरज़ी लोक दिखाओ जी।
सोच-समझ के बेगा, सोच-समझ के बेगा,
अपने आप लगा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
श्याम धनी बिन नाही गुज़ारो, नज़रा दर पर लागी जी।
सुंदर श्याम बिहारी सोया, सुंदर श्याम बिहारी सोया,
भाग्य जगा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
कहने को म्हारो ज़ोर कन्हैया, आगे मर्ज़ी थारी जी।
भवजल माई नाव पर, बेगा पहुंचा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
दृष्टि कृपा की रखो जद, नाको चौकस पि जासी जी।
मस्ती की दो घूंट पिलाकर, बेगा पिया दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(अंतरा)
श्याम बहादुर थारे आगे, खोल कहूं शिव सारी जी।
हूं चरणां को चेरो, सतमार्ग दिखा दयो जी।
अर्जी कर दी।।
(पुनरावृत्ति)
अर्जी कर दी सांवरिया, इस पर छाप लगा दयो जी।।
यह सुन्दर भजन पूर्ण समर्पण और श्रीश्यामजी की असीम कृपा की याचना का भाव दर्शाता है। जब कोई भक्त अपने हृदय की गहराई से प्रार्थना करता है, तब यह केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि आत्मा की पुकार बन जाता है। यह निवेदन केवल एक साधारण याचना नहीं, बल्कि यह उस विश्वास की अभिव्यक्ति है, जहां कोई संदेह नहीं रहता—केवल श्रद्धा और प्रेम का प्रवाह होता है।
हर जीव के अंतर्मन में प्रभु विराजमान हैं, और जब साधक उनकी शरण में आता है, तब उसका भाग्य स्वयं प्रकाशित होने लगता है। यह भाव इस अनुभूति को सशक्त करता है कि बिना उनकी कृपा के जीवन अधूरा है। उनके दरबार में दृष्टि स्थिर हो जाने पर भक्त को सच्चा मार्ग प्राप्त होता है, जहां सांसारिक उलझनों से मुक्ति मिलती है और जीवन सहजता से आगे बढ़ता है।
भवसागर की यात्रा में जब नैया डगमगाने लगती है, तब यह दिव्य कृपा ही साधक को सुरक्षित किनारे तक पहुंचाने की शक्ति प्रदान करती है। जब भक्त यह अनुभव करता है कि उसकी शक्ति सीमित है और प्रभु की कृपा ही एकमात्र आधार है, तब यह भाव और भी गहन हो जाता है।
अंततः यह समर्पण भक्ति की सच्ची पराकाष्ठा है—जहां इच्छाएँ नहीं, केवल उनका आशीर्वाद ही जीवन की दिशा निर्धारित करता है। यही वह मार्ग है जहां संतुलन, शांति और आत्मिक उन्नति का अनुभव होता है, और साधक हर क्षण प्रभु के चरणों में रम जाता है। यही सच्ची श्रद्धा की अभिव्यक्ति है, जहां भक्ति केवल शब्दों में नहीं, हृदय की गहराइयों में प्रतिध्वनित होती है।
हर जीव के अंतर्मन में प्रभु विराजमान हैं, और जब साधक उनकी शरण में आता है, तब उसका भाग्य स्वयं प्रकाशित होने लगता है। यह भाव इस अनुभूति को सशक्त करता है कि बिना उनकी कृपा के जीवन अधूरा है। उनके दरबार में दृष्टि स्थिर हो जाने पर भक्त को सच्चा मार्ग प्राप्त होता है, जहां सांसारिक उलझनों से मुक्ति मिलती है और जीवन सहजता से आगे बढ़ता है।
भवसागर की यात्रा में जब नैया डगमगाने लगती है, तब यह दिव्य कृपा ही साधक को सुरक्षित किनारे तक पहुंचाने की शक्ति प्रदान करती है। जब भक्त यह अनुभव करता है कि उसकी शक्ति सीमित है और प्रभु की कृपा ही एकमात्र आधार है, तब यह भाव और भी गहन हो जाता है।
अंततः यह समर्पण भक्ति की सच्ची पराकाष्ठा है—जहां इच्छाएँ नहीं, केवल उनका आशीर्वाद ही जीवन की दिशा निर्धारित करता है। यही वह मार्ग है जहां संतुलन, शांति और आत्मिक उन्नति का अनुभव होता है, और साधक हर क्षण प्रभु के चरणों में रम जाता है। यही सच्ची श्रद्धा की अभिव्यक्ति है, जहां भक्ति केवल शब्दों में नहीं, हृदय की गहराइयों में प्रतिध्वनित होती है।
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Author - Saroj Jangir
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