हे री माई मेरा खाटू वाला राखे सबकी लाज

हे री माई मेरा खाटू वाला राखे सबकी लाज

हे री माई, मेरा खाटू वाला,
राखे सबकी लाज,
बैर करे ना कभी किसी से,
बिगड़े बनाये काम,
हे री माई, मेरा खाटू वाला,
राखे सबकी लाज।

जिस दिन से मैं हुआ श्याम कारी,
बदले है दिन रात मेरे,
हर पल यही मांगू दुआ करता,
रहा दर के फेरे,
यूँ ही सजे रहे श्याम की धुन में,
मेरे कल और आज,
बैर करे ना कभी किसी से,
बिगड़े बनाये काम,
हे री माई, मेरा खाटू वाला,
राखे सबकी लाज।

चलके जरा तू देख तो माँ,
एक बारी मेरे कहे से,
खाली नहीं लौटा कोई भी,
आके बाबा जी के दर से,
भक्ति भाव की बात जरा सी,
दुनिया समझे राज,
बैर करे ना कभी किसी से,
बिगड़े बनाये काम,
हे री माई, मेरा खाटू वाला,
राखे सबकी लाज।

जब भी कभी दुखयारी दिल की,
आहें दे मुझे सुनाई,
उस पर मुझे माँ बाबा की सूरत,
देती वहां पे दिखाई,
कहे बलजीत ये बाबा मेरे,
सिर का हो गया ताज,
बैर करे ना कभी किसी से,
बिगड़े बनाये काम,
हे री माई, मेरा खाटू वाला,
राखे सबकी लाज।



हे री माई मेरा खाटू वाला राखे सबकी लाज

यह सुन्दर भजन श्रीश्यामजी के प्रति अखंड श्रद्धा और उनकी कृपा की अनुभूति को प्रकट करता है। जब भक्त पूर्ण विश्वास से उनकी शरण में आता है, तब वह न केवल स्वयं को सुरक्षित अनुभव करता है, बल्कि उसके समर्पण का भाव और गहरा हो जाता है। यह भाव केवल एक निवेदन नहीं, बल्कि उस प्रेम की अभिव्यक्ति है, जहां भक्त को यह दृढ़ विश्वास रहता है कि श्रीश्यामजी हर परिस्थिति में साथ हैं।

उनकी कृपा किसी एक भक्त के लिए नहीं, बल्कि समस्त संसार के लिए है। जब कोई श्रद्धा से उनके दरबार में आता है, तब वह खाली हाथ नहीं लौटता। जीवन के हर उतार-चढ़ाव में उनकी उपस्थिति बनी रहती है, और हर कठिनाई उनके आशीर्वाद से सहज ही समाप्त हो जाती है।

भक्ति का यह प्रवाह केवल बाहरी उपासना तक सीमित नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों में उतरने वाला अनुभव है। जब कोई व्यक्ति भक्ति में रम जाता है, तब उसका कल और आज दोनों ही इस दिव्यता से आलोकित हो जाते हैं। यह भाव बताता है कि जब कोई प्रेम से उनकी आराधना करता है, तब वह अपने भीतर शांति और आनंद की पराकाष्ठा को प्राप्त करता है।

यह अनुभूति हमें यह सिखाती है कि जब श्रद्धा अडिग होती है, तब कोई भी परिस्थिति भक्त को विचलित नहीं कर सकती। श्रीश्यामजी का प्रेम हर विपदा में संबल बनता है—यही वह भाव है जहां भक्ति केवल शब्दों में नहीं, जीवन की गहराई में प्रतिध्वनित होती है। यही वह पावन अनुभूति है, जहां साधक स्वयं को प्रभु के चरणों में संपूर्ण रूप से अर्पित कर देता है और उनकी कृपा से पूर्णता प्राप्त करता है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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