तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे
तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे
तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे॥अहो मे असर होगा घर बेठे बुला लेंगे॥
तुम कहते है मोहन हमें मधुवन प्यारा है,॥
इक वार तो आ जाओ मघुवन ही बना देंगे॥
तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे।
तुम कहते हो मोहन हमें माखन प्यारा है॥
इक बार तो आ जाओ माखन ही खिला देंगे॥
तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे।
तुम कहते हो मोहन कहा बिठाओ गये॥
तो इस दिल मै आ जाओ पलकों पे बिठा देंगे॥
तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे।
तुम हमको ना चाहो इस की हमें परवाह नही॥
हम बात के पके है तुम्हे अपना बना लेंगे॥
तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे।
लगी आग जो सिहने में तेरी प्रेम जुदाई थी॥
हम प्रेम की धरा से लगी दिल की बुजा लेंगे
तुम रूठे रहो मोहन हम तुम्हे मना लेंगे।
सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रेम का वह अनमोल भाव प्रकट किया गया है, जिसमें भक्त अपनी श्रद्धा और समर्पण से उन्हें मनाने का संकल्प करता है। प्रेम के इस दिव्य स्वरूप में केवल एक पुकार नहीं, बल्कि आत्मा की गहराइयों से उठने वाली सच्ची भक्ति की अनुभूति होती है। जब श्रीकृष्णजी रूठते हैं, तब भक्त का हृदय उनकी विरह वेदना में तड़प उठता है और प्रेममयी भक्ति के मार्ग से उन्हें वापस बुलाने का प्रयास करता है।
भजन में वह भाव जाग्रत होता है जिसमें प्रेम के सबसे मधुर रूप की अभिव्यक्ति होती है। मधुवन, माखन, और कृष्णलीला केवल बाहरी प्रतीक नहीं, बल्कि ये आत्मा के गहन प्रेम और भक्त की अपार श्रद्धा को दर्शाते हैं। यह संदेश देता है कि श्रीकृष्णजी की कृपा प्राप्त करने के लिए केवल बाह्य साधन पर्याप्त नहीं, बल्कि हृदय की निर्मलता, प्रेम की गहराई, और भक्ति का सच्चा स्वरूप आवश्यक है।
जब प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचता है, तब वह स्वयं त्याग और समर्पण का रूप ले लेता है। यह भजन दर्शाता है कि भक्त किसी भी परिस्थिति में श्रीकृष्णजी के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को कम नहीं होने देता। वह अपने संकल्प और श्रद्धा से उन्हें मनाने का प्रयास करता है, क्योंकि वह जानता है कि उनकी कृपा से ही जीवन में सच्ची शांति और आनंद संभव है।
श्रीकृष्णजी का प्रेम केवल बाह्य भक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि यह आत्मा को आनंद, माधुर्य और दिव्यता की अनुभूति कराता है। जब भक्त सच्चे प्रेम से श्रीकृष्णजी का स्मरण करता है, तब उसकी आत्मा स्वयं भक्ति की गहराइयों में निमग्न हो जाती है। यही इस भजन का दिव्य सार है—श्रद्धा, प्रेम और भक्ति से श्रीकृष्णजी को बुलाने का सजीव प्रयास, जिससे आत्मा को परम आनंद और शांति प्राप्त होती है।
भजन में वह भाव जाग्रत होता है जिसमें प्रेम के सबसे मधुर रूप की अभिव्यक्ति होती है। मधुवन, माखन, और कृष्णलीला केवल बाहरी प्रतीक नहीं, बल्कि ये आत्मा के गहन प्रेम और भक्त की अपार श्रद्धा को दर्शाते हैं। यह संदेश देता है कि श्रीकृष्णजी की कृपा प्राप्त करने के लिए केवल बाह्य साधन पर्याप्त नहीं, बल्कि हृदय की निर्मलता, प्रेम की गहराई, और भक्ति का सच्चा स्वरूप आवश्यक है।
जब प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचता है, तब वह स्वयं त्याग और समर्पण का रूप ले लेता है। यह भजन दर्शाता है कि भक्त किसी भी परिस्थिति में श्रीकृष्णजी के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को कम नहीं होने देता। वह अपने संकल्प और श्रद्धा से उन्हें मनाने का प्रयास करता है, क्योंकि वह जानता है कि उनकी कृपा से ही जीवन में सच्ची शांति और आनंद संभव है।
श्रीकृष्णजी का प्रेम केवल बाह्य भक्ति तक सीमित नहीं, बल्कि यह आत्मा को आनंद, माधुर्य और दिव्यता की अनुभूति कराता है। जब भक्त सच्चे प्रेम से श्रीकृष्णजी का स्मरण करता है, तब उसकी आत्मा स्वयं भक्ति की गहराइयों में निमग्न हो जाती है। यही इस भजन का दिव्य सार है—श्रद्धा, प्रेम और भक्ति से श्रीकृष्णजी को बुलाने का सजीव प्रयास, जिससे आत्मा को परम आनंद और शांति प्राप्त होती है।