खाटू श्याम हमारा है हारे का सहारा है

खाटू श्याम हमारा है हारे का सहारा है

खाटू श्याम हमारा है,
हारे का सहारा है,
सदा ही सुमिरन तुम्हरा गाएं,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
तेरी शरण से न दूर जाए,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
खाटू श्याम हमारा है।

तेरे उजाले अँधेरे तेरे,
तेरे है कांटे है फूल तेरे,
जो हम को बक्शो हम वो ही पाये,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
खाटू श्याम हमारा है।

ना राह है ऐसी चुने जो राहें,
गुनाह तलक जो हमको लेके जाए,
सदा गुनाह ऐसे हमे बचाये,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
खाटू श्याम हमारा है।

भरोसा तुम पर रखे सदा ही,
कभी भरोसा ना डगमगाए,
जो मन में भरम हो उसे मिटाये,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
खाटू श्याम हमारा है।

तुम्हारी मर्जी से चलता है सब,
तुम्हारे वश में है सांसे सब की,
मिटा दो कर्मो की सब भलाये,
मिटा दो कर्मो की सब भलाये,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
खाटू श्याम हमारा है।

खाटू श्याम हमारा है,
हारे का सहारा है,
सदा ही सुमिरन तुम्हरा गाएं,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
तेरी शरण से न दूर जाए,
कभी भी हम न तुम्हे भुलाये,
खाटू श्याम हमारा है।

 
यह सुन्दर भजन अटूट विश्वास, निष्ठा और आत्मसमर्पण का अद्भुत प्रकाश है। जब जीवन विपरीत परिस्थितियों से घिर जाता है, जब मनुष्य स्वयं को असहाय महसूस करता है, तब यह दिव्य आश्रय संबल बन जाता है। यह अनुभूति किसी बाहरी प्रमाण की नहीं, बल्कि अंतरात्मा की पुकार की है, जो अनवरत श्रीश्यामजी के चरणों में स्थान पाती है।

यह भाव बताता है कि संसार का हर प्रकाश और हर अंधकार, हर सुख और हर पीड़ा, प्रत्येक अनुभव अंततः उन्हीं की देन है। जीवन की राह में पुष्प और कांटे दोनों आते हैं, परंतु शरण में रहने वाला साधक सदैव संतुलन में रहता है। जो कुछ भी मिलता है, वह उनकी कृपा से ही प्राप्त होता है, इसलिए संतोष और श्रद्धा का भाव जन्म लेता है।

दुष्कर्मों से बचना, सही मार्ग पर चलना, और जीवन को शुद्धता की ओर ले जाना—यह भी इसी दिव्य अनुभूति का विस्तार है। जब कोई भ्रम या संशय मन को घेरता है, तब यह दृढ़ विश्वास उसे मिटा देता है और व्यक्ति सच्ची अनुभूति की ओर बढ़ता है।

यह भाव बताता है कि सांसों का प्रवाह भी परम कृपा से संचालित होता है। यह चेतना देती है कि कर्मों की अशुद्धता भी उसी दया से मिट सकती है, जब शरण में समर्पण पूर्ण हो जाता है। भक्ति का यह प्रवाह संकल्प को अडिग बनाता है और साधक को उस मार्ग पर ले जाता है, जहां सच्चा सुख और आत्मिक शांति विद्यमान होती है।

जहां यह अनवरत स्मरण बना रहता है, वहां भक्ति की पूर्णता होती है—जहां समर्पण अहंकार को विसर्जित कर देता है, और प्रेम आत्मा की वास्तविक अभिव्यक्ति बन जाता है।

Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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