तुम इतनी रहमत करना तेरा नाम जपता रहूं भजन
तुम इतनी रहमत करना तेरा नाम जपता रहूं भजन
तुम इतनी रहमत करना,तेरा नाम जपता रहूँ,
तेरा साथ छूटे ना,
ये बंधन टूटे ना,
चाहे धूप मैं तपता रहूँ,
तुम इतनी किरपा करना,
तेरा नाम जपता रहूँ।
तेरा गुणगान करूँ,
मैं सुबह शाम करूँ,
तेरे नाम से ही बाबा,
अपने हर काम करूँ,
तू थाम ले उंगली मेरी,
तेरे संग मैं चलता रहूँ,
तुम इतनी किरपा करना,
तेरा नाम जपता रहूँ।
तू है जो साथ मेरे,
किसी और का क्या करना,
तेरी हो छतर छाया,
फिर क्यूँ मुझे डरना,
बिना डर के जियुं मैं,
बस तुमसे डरता रहूँ,
तुम इतनी किरपा करना,
तेरा नाम जपता रहूं।।
चरणों को दास बनू,
माँ बाप की सेवा करूँ,
सत्य की ओर चलूं,
तन मन से कर्म करूँ,
तू ऐसा वर दे बाबा,
शुभ काम करता रहूँ,
तुम इतनी किरपा करना,
तेरा नाम जपता रहूं।।
राहुल है दास तेरा,
चरणों में जगह देना,
कृपा की एक नजर,
सब भक्तों पे करना,
सबको गले से लगाके,
श्री श्याम कहता रहूँ,
तुम इतनी किरपा करना,
तेरा नाम जपता रहूं।।
तुम इतनी रहमत करना,
तेरा नाम जपता रहूँ,
तेरा साथ छूटे ना,
ये बंधन टूटे ना,
चाहे धूप मैं तपता रहूँ,
तुम इतनी किरपा करना,
तेरा नाम जपता रहूँ।
यह सुन्दर भजन आत्मसमर्पण, भक्ति और अटूट विश्वास की गहराई को प्रकट करता है। जब साधक अपने प्रभु के प्रति प्रेम और निष्ठा में पूर्ण रूप से डूब जाता है, तब यह भाव जन्म लेता है कि हर परिस्थिति में केवल प्रभु का नाम ही ओषधि बन जाए। यह एक प्रार्थना है, जिसमें अनुरोध है कि कृपा का वह अनमोल प्रवाह कभी रुके नहीं।
जप और स्मरण का महत्व अत्यधिक है। जब मनुष्य यह संकल्प लेता है कि चाहे सुख के उजाले हों या कठिनाइयों की तपिश, वह हर परिस्थिति में ईश्वर का नाम लेता रहेगा, तब उसका समर्पण और श्रद्धा दिव्यता को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर होते हैं। यह भाव केवल शब्दों में नहीं, बल्कि जीवन की प्रत्येक क्रिया में प्रतिबिंबित होने योग्य है।
भक्त यह अनुभूति करता है कि उसके सभी कार्य प्रभु के नाम से प्रारंभ हों, और उनकी कृपा से ही पूरे हों। यह आत्मिक सहारा वह शक्ति देता है जिससे अज्ञात राहों में भी कोई भय नहीं रहता। जब यह भरोसा दृढ़ होता है, तब मनुष्य सांसारिक भय से मुक्त हो जाता है और केवल ईश्वरीय प्रेम में डूब जाता है।
निष्ठा का यह प्रवाह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज में सत्कर्मों को फैलाने का भी प्रेरक है। सेवा, सत्य और कर्मयोग को अपनाना, यही वास्तविक श्रद्धा की अभिव्यक्ति है। जब यह भावना हृदय में बस जाती है, तब जीवन केवल बाह्य कर्तव्यों का निर्वाह नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन और दिव्य प्रेम का विस्तार बन जाता है।
यह भाव प्रभु की कृपा की याचना मात्र नहीं, बल्कि एक दृढ़ संकल्प है कि भक्ति का प्रवाह निरंतर बना रहे, चाहे जीवन में कैसी भी परिस्थितियाँ आएं। यही वह शक्ति है जो साधक को हर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है।
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भक्त यह अनुभूति करता है कि उसके सभी कार्य प्रभु के नाम से प्रारंभ हों, और उनकी कृपा से ही पूरे हों। यह आत्मिक सहारा वह शक्ति देता है जिससे अज्ञात राहों में भी कोई भय नहीं रहता। जब यह भरोसा दृढ़ होता है, तब मनुष्य सांसारिक भय से मुक्त हो जाता है और केवल ईश्वरीय प्रेम में डूब जाता है।
निष्ठा का यह प्रवाह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज में सत्कर्मों को फैलाने का भी प्रेरक है। सेवा, सत्य और कर्मयोग को अपनाना, यही वास्तविक श्रद्धा की अभिव्यक्ति है। जब यह भावना हृदय में बस जाती है, तब जीवन केवल बाह्य कर्तव्यों का निर्वाह नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन और दिव्य प्रेम का विस्तार बन जाता है।
यह भाव प्रभु की कृपा की याचना मात्र नहीं, बल्कि एक दृढ़ संकल्प है कि भक्ति का प्रवाह निरंतर बना रहे, चाहे जीवन में कैसी भी परिस्थितियाँ आएं। यही वह शक्ति है जो साधक को हर अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है।
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Author - Saroj Jangir
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