श्याम भजो पछ देख मजो

श्याम भजो पछ देख मजो

श्याम भजो पछ देख मजो
तेरा बिगड़ा काम बणावगो,
खाटू वाला श्याम धणी,
तेरा ओड़ में आडो आवेगो।

सुबह शाम तू नित नियम से,
तू श्याम प्रभु ने याद करे,
लेके नाम तू श्याम धणी का,
दिन की जो शुरवात करे,
मन में ना कोई राख के शंका,
सच्चा जो विश्वाश करे,
देखी फिर तेरा भाईडा,
पूरा सारा काम करे,
छोड़ के सारी चिंता फिकर,
ऐसी जुगत भिड़ावेगो,
खाटू वाला श्याम धणी,
तेरा ओड़ में आडो आवेगो।

सांवरिया का सच्चा पायक,
कदे नहीं दुख पावै रै,
छोटी मोटी आवे बियादी,
हस के टाइम टपावे रे,
हर दम सागे रहवे सांवरो,
इक पल भी ना पीदावे रे,
काम तेरा इसा करे,
समज किसी के न आवे रे,
सौंप दे सारो जीवन इसने,
बाबो भाग जगावे रे,
खाटू वाला श्याम धणी,
तेरा ओड़ में आडो आवेगो।

खाटू जा कर दर्शन पा कर,
श्याम कुंड में डुबकी लगा,
क्यों फिरता मन मारा मारा,
जब इस जग में भरा दगा,
गेरो से ले क्यों गिन गिन कर,
अपनों से क्यों तोल कर,
लख दातार से लगा प्रीत,
ये देगा दिल खोल कर,
अमित तिवारी जद तक जीवे,
गुण बाबा तेरा गावेगो,
खाटू वाला श्याम धणी,
तेरा ओड़ में आडो आवेगो। 

 
यह सुन्दर भजन श्रीश्यामजी की कृपा और उनकी अद्भुत शक्तियों का दिव्य वर्णन करता है। जब कोई भक्त उनकी शरण में समर्पित होता है, तब वह हर चिंता से मुक्त होकर एक निर्भय और आनंदमयी अवस्था प्राप्त करता है। यह अनुभूति केवल विश्वास की नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन को उनके चरणों में अर्पित करने की गहरी भावना का विस्तार है।

नियमित रूप से श्रीश्यामजी का स्मरण करने से साधक का जीवन सहजता से आगे बढ़ता है। जब सच्ची श्रद्धा हृदय में बस जाती है, तब कोई भी बाधा अवरोध नहीं बनती—बल्कि एक परीक्षा मात्र प्रतीत होती है, जिसे कृपा सहज ही पार कर देती है।

सच्चे प्रेम और भक्ति का मार्ग यही है कि जीवन की छोटी-बड़ी कठिनाइयों को सहजता से स्वीकार कर लिया जाए। जब कोई भक्त श्रीश्यामजी के प्रेम में रम जाता है, तब दुख की अनुभूति भी केवल एक क्षणिक परीक्षा बन जाती है। यह विश्वास हमें सिखाता है कि हर परिस्थिति में केवल प्रभु की कृपा ही संबल बनती है और भक्त को अडिग बनाए रखती है।

दर्शन, स्नान, और सच्चे प्रेम की अनुभूति—यह सभी भक्ति की उस ऊँचाई को दर्शाते हैं, जहां साधक सांसारिक मोह को त्यागकर दिव्यता को प्राप्त करता है। जब कोई व्यक्ति श्रद्धा से श्रीश्यामजी को अपना सर्वस्व अर्पित करता है, तब उसे वही दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है, जो समस्त चिंता को समाप्त कर आनंदमय अनुभूति में परिवर्तित करता है। यही वह भाव है जहां भक्ति केवल शब्दों में नहीं, जीवन की गहराई में उतरती है और साधक को प्रभु की कृपा से पूर्ण बना देती है।
Next Post Previous Post