जो मैंने स्वर्ग से बढ़ कर यो खाटू का चमन

जो मैंने स्वर्ग से बढ़ कर यो खाटू का चमन

जो मैंने स्वर्ग से बढ़ कर यो खाटू का चमन देखा तो,
हां जन्नत छोड़ दी मैंने।

ना सोने की रही चाहत न चांदी से रही चाहत,
ना हीरे की ना मोती की ना दौलत की रही चाहत,
भखारी बन के ठाकुर का मुझे ऐसा मजा आया के,
हकूमत छोड़ दी मैंने।

महोब्बत सांवरे की देख लो क्या रंग लाइ है,
लगा कर सांवरे से दिल समझ में बात आई है,
सबक ऐसा पढ़ाया श्याम बाबा ने महोब्बत का के,
शिकायत छोड़ दी मैंने।

पढ़े गीता जब उपदेश तो इस राज को जाना,
महोब्बत चीज क्या है इस हकीकत को भी पहचाना,
मिली तालीम गीता से मुझे ऐसी जहां वालो के,
बग़ावत छोड़ दी मैंने। 

सुन्दर भजन में श्रीश्यामजी के प्रति अनन्य प्रेम, समर्पण और आध्यात्मिक जागरण का भाव प्रकट किया गया है। यह केवल बाह्य भक्ति का स्वरूप नहीं, बल्कि आत्मा की गहन अनुभूति है, जहाँ सांसारिक मोह-माया को त्यागकर भक्त श्रीश्यामजी के प्रेम में पूरी तरह लीन हो जाता है।

भजन का संदेश यही है कि जब भक्त सच्चे मन से श्याम बाबा की शरण में आता है, तब उसे यह अनुभव होता है कि सोना, चाँदी, हीरे-मोती और सांसारिक ऐश्वर्य का कोई महत्व नहीं। श्रीश्यामजी की भक्ति में जो आनंद प्राप्त होता है, वह सभी लौकिक सुखों से कहीं अधिक अनमोल है। उनकी कृपा से मनुष्य को सच्ची शांति और आत्मिक संतोष प्राप्त होता है।

श्यामजी का प्रेम केवल बाहरी उपासना तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह जीवन का मार्गदर्शन करता है। उनकी भक्ति से मनुष्य यह समझता है कि वास्तविक सुख सांसारिक प्राप्तियों में नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रेम में समाहित है। गीता के उपदेशों के माध्यम से भक्त यह स्वीकार करता है कि प्रेम, भक्ति और समर्पण ही जीवन का सच्चा उद्देश्य है।

यह भजन श्रीश्यामजी की कृपा और भक्ति की शक्ति को दर्शाता है। जब कोई श्रद्धा से उनका स्मरण करता है, तब वह अपने समस्त मानसिक द्वंद्व और अस्थिरता को समाप्त कर देता है और उसकी आत्मा प्रेम और शांति से भर जाती है। यही इस भजन का दिव्य सार है—श्रीश्यामजी की भक्ति से जीवन में वास्तविक सुख, संतोष और मोक्ष प्राप्त होता है। उनका प्रेम आत्मा को पवित्र करके सच्चे आनंद की अनुभूति कराता है।
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