मिलना है मिलना क्या मिलना हमारा
मिलना है मिलना क्या मिलना हमारा
पल दो पल का क्या मिलना हमारा,
याचक है दर के तुम्हारें,
ओ श्याम रहता लबों पे तुम्हारा ही नाम,
दर्शन सुर्दसन चाहे हर पल तुम्हारा,
पल दो पल का क्या मिलना हमारा,
बैठे है पलके बिछाए ओ श्याम,
राहों में तेरे बिछ जाए ओ श्याम,
बंधन अभिनन्द स्वीकारो हमारा,
पल दो पल का क्या मिलना हमारा,
बेहाली का आलम कसक दिल की श्याम,
बना दे दीवाना तेरा हमें श्याम ,
मिलता रहे प्रीतम सत्संगी तुम्हरा,
पल दो पल का कया मिलना हमारा,
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के दर्शन की उत्कट अभिलाषा और उनके प्रेम में डूबी आत्मा की व्याकुलता प्रदर्शित की गई है। यह भाव बताता है कि जब भक्त अपने आराध्य के प्रति संपूर्ण समर्पण कर देता है, तब सांसारिक समय और परिस्थितियाँ महत्वहीन हो जाती हैं—उसकी एकमात्र चाह प्रभु की निकटता होती है।
श्रद्धा की यह गहराई दर्शाती है कि जब प्रेम सच्चा होता है, तब उसे किसी बाहरी सीमा की आवश्यकता नहीं होती। ईश्वर के प्रति अनुराग केवल क्षणिक नहीं, बल्कि अनंतकाल तक रहने वाला होता है। यह अनुभूति आत्मा की पुकार को दर्शाती है, जहाँ प्रत्येक क्षण श्रीकृष्णजी की छवि के दर्शन की आकांक्षा बनी रहती है।
भक्ति का यह स्वरूप बताता है कि जब मनुष्य श्रीकृष्णजी की राहों में स्वयं को समर्पित कर देता है, तब वह सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर केवल प्रभु की कृपा का पात्र बन जाता है। उनकी भक्ति में प्रतीक्षा भी मधुर हो जाती है, क्योंकि हर क्षण उनकी छवि को देखने का प्रेम बढ़ता रहता है।