मन चंचल चल राम शरण में हे राम

मन चंचल चल राम शरण में हे राम

 माया मरी ना मन मरा, मर-मर गया शरीर,
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।।

माया है दो भांति की, देखो होकर बजाई,
एक मिलावे राम सों, एक नरक लेई जाए।।

मन चंचल चल राम शरण में,
हे राम, हे राम, हे राम, हे राम।।

राम ही तेरा जीवन साथी,
मित्र, हितैषी, सब दिन राती।।
दो दिन के हैं यह जग वाले,
हरी संग हम हैं जनम मरण में।।

तूने जग में प्यार बढ़ाया,
कितना सिर पर भार उठाया।।
पग-पग मुश्किल होगी रे पगले,
भाव सागर के पार तरण में।।

कितने दिन हंस खेल लिया है,
सुख पाया, दुख झेल लिया है।।
मत जा, रुक जा माया के संग,
डूब मरेगा कूप गहन में।।


Ram Bhajan by Dr. Ranjana Jha | Lyrics by Kabir | Music by Pawan Mishra

कबीरदास के भजन में माया की नश्वरता और राम भक्ति का चित्रण है। शरीर मर जाता है, मन और माया नहीं मरती, आशा-तृष्णा साधक को बाँधे रखती है। माया दो प्रकार की—एक राम से मिलाए, दूसरी नरक ले जाए। साधक का चंचल मन राम की शरण में स्थिर हो, जो जीवन का सच्चा साथी, मित्र और हितैषी है। जग के रिश्ते क्षणिक, पर राम जन्म-मरण में साथी। साधक ने जग में प्रेम बढ़ाया, कष्ट सहे, पर भाव-सागर पार करना कठिन। सुख-दुख का खेल खेला, पर माया के संग डूबने से कबीर रोकते हैं। यह राम भक्ति का मार्ग है, जहाँ साधक माया के बंधन छोड़, राम के नाम में डूबकर भवसागर से मुक्ति और शांति पाता है। 

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