पायो जी मैंने राम रतन धन पायो लिरिक्स Payo Ji Maine Ram Ratan Dhan Lyrics

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो लिरिक्स Payo Ji Maine Ram Ratan Dhan Lyrics

मीरा के प्रसिद्ध पद
“पायो जी मैंने”
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरू, किरपा कर अपनायो॥
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो।
खरच न खूटै चोर न लूटै, दिन-दिन बढ़त सवायो॥
सत की नाँव खेवटिया सतगुरू, भवसागर तर आयो।
‘मीरा’ के प्रभु गिरिधर नागर, हरख-हरख जस पायो॥

“सुण लीजो बिनती मोरी”
सुण लीजो बिनती मोरी,
मैं शरण गही प्रभु तेरी।
तुम (तो) पतित अनेक उधारे,
भव सागरसे तारे॥
मैं सबका तो नाम न जानूँ,
कोइ कोई नाम उचारे।
अम्बरीष सुदामा नामा,
तुम पहुँचाये निज धामा॥
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक,
तुम दरस दिये घनस्यामा।
धना भक्त का खेत जमाया,
भक्त कबिरा का बैल चराया॥
सबरी का जूंठा फल खाया,
तुम काज किये मन भाया।
सदना औ सेना नाईको,
तुम कीन्हा अपनाई॥
करमा की खिचड़ी खाई,
तुम गणि का पार लगाई।
मीरा प्रभु तुमरे रँग राती,
या जानत सब दुनियाई॥

“कृष्ण मंदिरमों मिराबाई नाचे”
कृष्ण मंदिर में मिराबाई नाचे तो ताल मृदंग रंग चटकी।
पाव में घुंगरू झुमझुम वाजे। तो ताल राखो घुंगटकी॥१॥
नाथ तुम जान है सब घटका मीरा भक्ति करे पर घटकी॥टेक॥
ध्यान धरे मीरा फेर सरनकुं सेवा करे झटपटको।
सालीग्रामकूं तीलक बनायो भाल तिलक बीज टब की॥२॥
बीख कटोरा राजाजी ने भेजो तो संटसंग मीरा हट की।
ले चरणामृत पी गईं मीरा जैसी शीशी अमृत की॥३॥
घरमेंसे एक दारा चली शीरपर घागर और मटकी।
जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं।।
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं।।
तन मन सुरति संजो सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं।।
सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोडी छोडी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ।।
हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये।।३।।

“मीरा के होली पद”
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥

“हरि तुम हरो जन की भीर”
हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी,
तुरत बढ़ायो चीर॥
भगत कारण रूप नर हरि,
धरयो आप सरीर॥
हिरण्याकुस को मारि लीन्हो,
धरयो नाहिन धीर॥
बूड़तो गजराज राख्यो,
कियौ बाहर नीर॥
दासी मीरा लाल गिरधर,
चरण-कंवल पर सीर॥
 
 
इस भजन में मीरा बाई अपने सद्गुरु के द्वारा प्राप्त हुए राम रूपी रत्न धन की महिमा का वर्णन करती हैं। वह कहती हैं कि यह धन अमूल्य है, और यह जन्म-जन्मांतरों की पूँजी है। यह धन खर्च करने पर घटता नहीं, और चोर इसे नहीं लूट सकता। यह दिन-दिन बढ़ता ही जाता है। यह धन सच्चाई के नाम रूपी नाव है, जो भवसागर से पार लगाती है।

मीरा बाई के अनुसार, यह धन किसी सांसारिक वस्तु नहीं है। यह ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग है। जो व्यक्ति इस धन को प्राप्त करता है, वह भवसागर से पार हो जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है।

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