हीर वारिस शाह हिंदी में
हीर वारिस शाह हिंदी में
वारिस शाह की "हीर" कहानी पंजाबी साहित्य का एक अमर किस्सा है। कई सौ साल पहले पंजाब के एक गाँव तख्त हजारा में राँझा नाम का एक युवक रहता था। उसका पूरा नाम धीदो राँझा था। वह एक जाट परिवार से था, जो धनी और सम्मानित था। राँझा चार भाइयों में सबसे छोटा था। वह बेहद सुंदर, हँसमुख और बाँसुरी बजाने में माहिर था। उसकी बाँसुरी की मधुर धुन सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे। लेकिन राँझा का मन खेती-बाड़ी या पारिवारिक जिम्मेदारियों में नहीं लगता था। वह बस अपनी बाँसुरी और सपनों की दुनिया में खोया रहता।
एक दिन, अपने पिता की मृत्यु के बाद, राँझा के भाइयों और भाभियों ने उसे घर से निकाल दिया। वे उसकी बेपरवाह जीवनशैली से नाराज़ थे। राँझा ने अपनी बाँसुरी उठाई और बिना किसी गंतव्य के घर से निकल पड़ा। उसका दिल उदास था, लेकिन वह जीवन के नए रास्तों की तलाश में था।
एक दिन, अपने पिता की मृत्यु के बाद, राँझा के भाइयों और भाभियों ने उसे घर से निकाल दिया। वे उसकी बेपरवाह जीवनशैली से नाराज़ थे। राँझा ने अपनी बाँसुरी उठाई और बिना किसी गंतव्य के घर से निकल पड़ा। उसका दिल उदास था, लेकिन वह जीवन के नए रास्तों की तलाश में था।
रास्ते में चलते-चलते राँझा एक गाँव में पहुँचा, जो स्याल परिवार का था। यह गाँव झंग के पास था, जहाँ चनाब नदी के किनारे खूबसूरत बाग-बगीचे थे। यहाँ चूचक स्याल नाम का एक धनी जाट रहता था, जिसकी बेटी हीर बेहद सुंदर और समझदार थी। हीर की सुंदरता की चर्चा दूर-दूर तक थी। उसका चेहरा चाँद की तरह चमकता था, और उसकी आँखें किसी को भी मोह लेती थीं।
राँझा थककर चनाब नदी के किनारे एक बगीचे में रुक गया। वहाँ उसने अपनी बाँसुरी बजानी शुरू की। उसकी धुन इतनी मधुर थी कि बगीचे में मौजूद हीर की सहेलियाँ उसे सुनकर पास आ गईं। सहेलियों ने हीर को बताया कि एक अनजान युवक बगीचे में बाँसुरी बजा रहा है। हीर उत्सुकता से राँझा को देखने गई। जैसे ही उसकी नज़र राँझा पर पड़ी, दोनों की आँखें मिलीं, और उनके दिलों में प्यार का बीज अंकुरित हो गया।
हीर ने राँझा से बात की और उसे अपने पिता के यहाँ नौकर के रूप में काम करने का प्रस्ताव दिया। राँझा को हीर का साथ इतना पसंद आया कि वह तुरंत तैयार हो गया। चूचक स्याल ने भी राँझा को भैंसें चराने का काम दे दिया। इस तरह, राँझा और हीर का साथ बढ़ने लगा। दोनों दिनभर बगीचों में मिलते, बातें करते और प्यार की मधुर धुन में खो जाते।
राँझा थककर चनाब नदी के किनारे एक बगीचे में रुक गया। वहाँ उसने अपनी बाँसुरी बजानी शुरू की। उसकी धुन इतनी मधुर थी कि बगीचे में मौजूद हीर की सहेलियाँ उसे सुनकर पास आ गईं। सहेलियों ने हीर को बताया कि एक अनजान युवक बगीचे में बाँसुरी बजा रहा है। हीर उत्सुकता से राँझा को देखने गई। जैसे ही उसकी नज़र राँझा पर पड़ी, दोनों की आँखें मिलीं, और उनके दिलों में प्यार का बीज अंकुरित हो गया।
हीर ने राँझा से बात की और उसे अपने पिता के यहाँ नौकर के रूप में काम करने का प्रस्ताव दिया। राँझा को हीर का साथ इतना पसंद आया कि वह तुरंत तैयार हो गया। चूचक स्याल ने भी राँझा को भैंसें चराने का काम दे दिया। इस तरह, राँझा और हीर का साथ बढ़ने लगा। दोनों दिनभर बगीचों में मिलते, बातें करते और प्यार की मधुर धुन में खो जाते।
लेकिन प्यार का रास्ता कभी आसान नहीं होता। हीर और राँझा का प्यार गाँव में चर्चा का विषय बन गया। हीर का भाई और गाँव के लोग इस रिश्ते के खिलाफ थे। चूचक स्याल को जब यह बात पता चली, तो वह गुस्से से आगबबूला हो गया। उसने फैसला किया कि हीर की शादी कहीं और कर दी जाए। उसने हीर का रिश्ता खेड़ा नाम के एक धनी परिवार के लड़के सैदा से तय कर दिया।
हीर ने इस शादी का विरोध किया, लेकिन परिवार के दबाव में उसे झुकना पड़ा। राँझा का दिल टूट गया। वह गाँव छोड़कर चला गया और एक जोगी बन गया। उसने अपने बाल बढ़ा लिए, भगवा वस्त्र पहने और एक गुरु के शिष्य बनकर जोग साधना शुरू की। लेकिन उसके दिल में हीर का प्यार अभी भी जिंदा था।
हीर ने इस शादी का विरोध किया, लेकिन परिवार के दबाव में उसे झुकना पड़ा। राँझा का दिल टूट गया। वह गाँव छोड़कर चला गया और एक जोगी बन गया। उसने अपने बाल बढ़ा लिए, भगवा वस्त्र पहने और एक गुरु के शिष्य बनकर जोग साधना शुरू की। लेकिन उसके दिल में हीर का प्यार अभी भी जिंदा था।
राँझा जोगी बनकर हीर के ससुराल रंगपुर खेड़ा पहुँचा। वहाँ उसने हीर की ननद सहती से मुलाकात की। सहती ने राँझा की सच्चाई और उसके प्यार को समझा और उसकी मदद करने का वादा किया। सहती ने हीर को राँझा के आने की खबर दी। हीर और राँझा फिर से मिले, और उनका प्यार पहले से भी गहरा हो गया।
लेकिन उनकी यह मुलाकात गुप्त नहीं रह सकी। गाँव वालों ने राँझा और हीर को एक साथ देख लिया। खेड़ा परिवार ने हीर को कैद कर दिया, और राँझा को गाँव से निकाल दिया गया। राँझा ने हार नहीं मानी। वह राजा के दरबार में गया और अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने मामले की जाँच की और हीर को राँझा को सौंपने का आदेश दिया।
लेकिन उनकी यह मुलाकात गुप्त नहीं रह सकी। गाँव वालों ने राँझा और हीर को एक साथ देख लिया। खेड़ा परिवार ने हीर को कैद कर दिया, और राँझा को गाँव से निकाल दिया गया। राँझा ने हार नहीं मानी। वह राजा के दरबार में गया और अपनी फरियाद सुनाई। राजा ने मामले की जाँच की और हीर को राँझा को सौंपने का आदेश दिया।
हीर और राँझा आखिरकार एक हो गए। वे गाँव की ओर लौट रहे थे, खुशी से भरे हुए। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। रास्ते में हीर के भाइयों और खेड़ा परिवार ने उन पर हमला कर दिया। उन्होंने हीर और राँझा को जहर दे दिया। दोनों प्रेमी एक-दूसरे की बाहों में दम तोड़ गए। उनकी प्रेम कहानी अधूरी रह गई, लेकिन उनका प्यार अमर हो गया।
वारिस शाह ने 1766 में हीर-राँझा की काव्य-कथा लिखी, जो पंजाबी साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक है। उनकी कविता में पंजाब की मिट्टी की खुशबू, चनाब नदी की लहरें और प्रेम की गहराई झलकती है। वारिस शाह ने इस कहानी को सिर्फ एक प्रेम कथा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे आध्यात्मिक खोज का प्रतीक बनाया। उनके लिए हीर और राँझा का प्यार इंसान की ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति का प्रतीक है।
इस कहानी में सामाजिक रूढ़ियों, परिवार की मर्यादाओं और प्रेम के बलिदान को बखूबी दर्शाया गया है। हीर की लोकप्रियता इतनी थी कि इसे "वारिस शाह की असली हीर" या "वारिस शाह की बड़ी हीर" जैसे नामों से प्रकाशित किया जाता रहा।
इस कहानी में सामाजिक रूढ़ियों, परिवार की मर्यादाओं और प्रेम के बलिदान को बखूबी दर्शाया गया है। हीर की लोकप्रियता इतनी थी कि इसे "वारिस शाह की असली हीर" या "वारिस शाह की बड़ी हीर" जैसे नामों से प्रकाशित किया जाता रहा।
हीर-राँझा सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि पंजाब की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है। वारिस शाह ने अपनी कविता के ज़रिए इस कहानी को अमर कर दिया। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा प्यार कभी हार नहीं मानता, भले ही दुनिया उसका कितना भी विरोध करे। आइए, हम इस कहानी से प्रेरणा लें और अपने जीवन में प्यार, धैर्य और बलिदान के मूल्यों को अपनाएँ।
ਅੱਵਲ ਹਮਦ ਖ਼ੁਦਾਇ ਦਾ ਵਿਰਦ ਕੀਜੇ, ਇਸ਼ਕ ਕੀਤਾ ਸੂ ਜੱਗ ਦਾ ਮੂਲ ਮੀਆਂ ।
ਪਹਿਲੇ ਆਪ ਹੈ ਰਬ ਨੇ ਇਸ਼ਕ ਕੀਤਾ, ਮਾਸ਼ੂਕ ਹੈ ਨਬੀ ਰਸੂਲ ਮੀਆਂ ।
ਇਸ਼ਕ ਪੀਰ ਫ਼ਕੀਰ ਦਾ ਮਰਤਬਾ ਹੈ, ਮਰਦ ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਭਲਾ ਰੰਜੂਲ ਮੀਆਂ ।
ਖਿਲੇ ਤਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਬਾਗ਼ ਕਲੂਬ ਅੰਦਰ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ ਹੈ ਇਸ਼ਕ ਕਬੂਲ ਮੀਆਂ ।
ਪਹਿਲੇ ਆਪ ਹੈ ਰਬ ਨੇ ਇਸ਼ਕ ਕੀਤਾ, ਮਾਸ਼ੂਕ ਹੈ ਨਬੀ ਰਸੂਲ ਮੀਆਂ ।
ਇਸ਼ਕ ਪੀਰ ਫ਼ਕੀਰ ਦਾ ਮਰਤਬਾ ਹੈ, ਮਰਦ ਇਸ਼ਕ ਦਾ ਭਲਾ ਰੰਜੂਲ ਮੀਆਂ ।
ਖਿਲੇ ਤਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਬਾਗ਼ ਕਲੂਬ ਅੰਦਰ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕੀਤਾ ਹੈ ਇਸ਼ਕ ਕਬੂਲ ਮੀਆਂ ।
सबसे पहले, भगवान की स्तुति करो, क्योंकि प्रेम ही दुनिया की जड़ है। पहले स्वयं भगवान ने प्रेम किया, और प्रेम का शिष्य है नबी-रसूल। प्रेम ही पीर-फकीर का दर्जा है, और प्रेम का भला पुरुष ऋषि है। उनके दिलों के अंदर फूलते हैं उनके बाग़, जिन्होंने प्रेम को स्वीकार किया है।
ਦੂਈ ਨਾਅਤ ਰਸੂਲ ਮਕਬੂਲ ਵਾਲੀ, ਜੈਂਦੇ ਹੱਕ ਨਜ਼ੂਲ ਲੌਲਾਕ ਕੀਤਾ ।
ਖ਼ਾਕੀ ਆਖ ਕੇ ਮਰਤਬਾ ਵਡਾ ਦਿੱਤਾ, ਸਭ ਖ਼ਲਕ ਦੇ ਐਬ ਥੀਂ ਪਾਕ ਕੀਤਾ ।
ਸਰਵਰ ਹੋਇਕੇ ਔਲੀਆਂ ਅੰਬੀਆਂ ਦਾ, ਅੱਗੇ ਹੱਕ ਦੇ ਆਪ ਨੂੰ ਖ਼ਾਕ ਕੀਤਾ ।
ਕਰੇ ਉੱਮਤੀ ਉੱਮਤੀ ਰੋਜ਼ ਕਿਆਮਤ, ਖੁਸ਼ੀ ਛੱਡ ਕੇ ਜੀਉ ਗ਼ਮਨਾਕ ਕੀਤਾ ।
