हरिनाम बिना नर ऐसा है लिरिक्स

हरिनाम बिना नर ऐसा है लिरिक्स

हरिनाम बिना नर ऐसा है मीरा भजन
हरिनाम बिना नर ऐसा है। दीपकबीन मंदिर जैसा है॥टेक॥
जैसे बिना पुरुखकी नारी है। जैसे पुत्रबिना मातारी है।
जलबिन सरोबर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥१॥
जैसे सशीविन रजनी सोई है। जैसे बिना लौकनी रसोई है।
घरधनी बिन घर जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥२॥
ठुठर बिन वृक्ष बनाया है। जैसा सुम संचरी नाया है।
गिनका घर पूतेर जैसा है। हरिनाम बिना नर ऐसा है॥३॥
कहे हरिसे मिलना। जहां जन्ममरणकी नही कलना।
बिन गुरुका चेला जैसा है। हरिनामबिना नर ऐसा है॥४॥
 
यह भजन मीराबाई की भक्ति और भगवान श्री कृष्ण के नाम की महिमा को व्यक्त करता है। पहले शेर में, मीराबाई कहती हैं कि जैसे दीपक बिना तेल के अधूरा होता है, वैसे ही हरिनाम के बिना मानव जीवन निरर्थक है। दूसरे शेर में, वह उदाहरण देती हैं कि जैसे बिना पुरुष के स्त्री का अस्तित्व अधूरा है, बिना पुत्र के माता का जीवन अधूरा है, और बिना जल के सरोवर खाली है, वैसे ही हरिनाम के बिना मनुष्य का जीवन भी अधूरा और निरर्थक है। 
 
तीसरे शेर में, मीराबाई कहती हैं कि जैसे रात्रि में चाँद के बिना अंधेरा होता है, वैसे ही रसोई बिना बर्तन के और घर बिना घरधनी के जैसे सुनसान होता है, वैसे ही हरिनाम के बिना जीवन नीरस है। चौथे शेर में, वह यह उदाहरण देती हैं कि जैसे वृक्ष बिना ठूंठ के नहीं बढ़ सकता और सुगंध बिना फूल के फैल नहीं सकती, वैसे ही जीवन बिना हरिनाम के खाली है। अंत में, मीराबाई कहती हैं कि गुरु के बिना शिष्य का जीवन अधूरा है, और हरिनाम के बिना जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।

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