हमरे चीर दे बनवारी

हमरे चीर दे बनवारी

हमरे चीर दे बनवारी॥टेक॥
लेकर चीर कदंब पर बैठे। हम जलमां नंगी उघारी॥१॥
तुमारो चीर तो तब नही। देउंगा हो जा जलजे न्यारी॥२॥
ऐसी प्रभुजी क्यौं करनी। तुम पुरुख हम नारी॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुम जीते हम हारी॥४॥

इस सुंदर भजन में भक्ति की परीक्षा और आत्मसमर्पण की गहन अनुभूति प्रकट होती है। भक्त जब ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा रखता है, तब उसे जीवन की कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है, लेकिन इसी में उसकी भक्ति की सच्चाई भी उजागर होती है। यह भाव प्रेम, समर्पण और विश्वास के स्तर पर एक गहरी अनुभूति को दर्शाता है।

भक्ति के मार्ग में अनेक परीक्षा होती हैं, जहां आत्मा को अपने आराध्य पर पूर्ण विश्वास बनाए रखना होता है। यह अनुभूति हमें याद दिलाती है कि जब भी भक्त संकट में होता है, तब वह केवल प्रभु की शरण में ही सच्ची आश्रय प्राप्त कर सकता है। श्रीकृष्णजी का प्रेम केवल सुखद अनुभवों तक सीमित नहीं, बल्कि उसमें जीवन की कठिनाइयों को स्वीकार करने और उन्हें भक्ति से पार करने की शक्ति भी निहित है।

श्रीकृष्णजी के प्रेम में पूर्ण रूप से समर्पित होकर, भक्त अपनी समस्त चिंताओं को त्यागकर केवल उनके चरणों में आश्रय लेता है। यह भाव न केवल भक्ति की गहनता को प्रकट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रेम में हार और जीत का कोई अर्थ नहीं होता—केवल ईश्वरीय कृपा का अनुभव ही सच्ची विजय होती है। यही सच्ची भक्ति है, जहां मन को हर कठिन परिस्थिति में भी ईश्वर के प्रेम में लीन रहने का बल प्राप्त होता है।

Next Post Previous Post