कृपा खूब करी है आज तो नाथों के नाथ
कृपा खूब करी है आज तो नाथों के नाथ
सबको दर्शन देने निकले, श्री जगन्नाथ जी।
संग में बहन सुभद्रा, और हैं बलदाऊ साथ जी,
सबको दर्शन देने निकले, श्री जगन्नाथ जी।
इनके दर्शन से, भगतो, जीवन सुधार लो,
मन मोहक रूप इनका, दिल में उतार लो।
तीनों लोक में ठाठ निराले, इनके वाह क्या बात जी,
सबको दर्शन देने निकले, श्री जगन्नाथ जी।
दुनिया चलाने वाले, रथ पर सवार हैं,
इनके चरणों की धूली, भरती भंडार हैं।
कर लो स्वागत इनका, इनसे कर लो मन की बात जी,
सबको दर्शन देने निकले, श्री जगन्नाथ जी।
रखना जगदीश भगवान, हम सबका ध्यान तुम,
भक्तों के पालनहारे, हम सबके प्राण तुम।
दे दी किस्मत ने हम भक्तों को, निर्मल सौगात जी,
सबको दर्शन देने निकले, श्री जगन्नाथ जी।
कृपा खूब करी है आज तो, नाथों के नाथ जी,
सबको दर्शन देने निकले, श्री जगन्नाथ जी।
Shri Jagannaath Ji / Singer Nirmal Patel / Latest New Shri Jagannaath Rath yatra ujjain Bhajan 2022
इस सुंदर भजन में श्री जगन्नाथजी की दिव्य कृपा और भक्ति का भाव प्रकट होता है। जब प्रभु अपने भक्तों को दर्शन देते हैं, तो यह क्षण संपूर्ण आत्मा को आनंद और उल्लास से भर देता है। जगन्नाथजी का दिव्य स्वरूप भक्तों के जीवन को शुद्ध करता है और उन्हें ईश्वरीय प्रेम का अनुभव कराता है।
भक्तों के लिए प्रभु के दर्शन केवल एक आध्यात्मिक घटना नहीं, बल्कि उनकी आत्मा का परम उत्सव है। यह अनुभूति भक्त के मन को निर्मल करती है और उसे संसार के मोह से परे, प्रभु की भक्ति में लीन होने की प्रेरणा देती है। उनके चरणों की धूल तक पुण्यदायी मानी जाती है, जो समस्त बाधाओं को हरकर जीवन में शुभता का संचार करती है।
रथ यात्रा का यह दृश्य तीनों लोकों में उनकी महिमा को प्रदर्शित करता है, जहां भक्त अपने आराध्य का स्वागत करते हैं और अपने मन की समस्त प्रार्थनाएं प्रभु के चरणों में अर्पित कर देते हैं। श्री जगन्नाथजी के साथ बलरामजी और सुभद्राजी का संग भक्तों को पूर्णता का अनुभव कराता है, जहां परिवार और प्रेम की भावना ईश्वरीय स्वरूप में प्रकट होती है।
यह भाव प्रकट करता है कि श्री जगन्नाथजी भक्तों के उद्धारकर्ता हैं, उनके जीवन के आधार हैं, और उनकी कृपा से ही जीवन में सच्चा सुख और शांति प्राप्त होती है। भजन हमें सिखाता है कि प्रभु की भक्ति से ही आत्मा को निर्मलता और आनंद की अनुभूति होती है, और उनका स्मरण जीवन के समस्त कष्टों को समाप्त कर, इसे पवित्रता और दिव्यता से भर देता है। यही सच्ची भक्ति है—जहां मन केवल ईश्वर की प्रेममयी कृपा में लीन हो जाता है।