हरि गुन गावत नाचूंगी लिरिक्स
हरि गुन गावत नाचूंगी॥टेक॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥
यह भजन भक्त मीराबाई की भक्ति और प्रेम को दर्शाता है। पहले शेर में, मीराबाई भगवान के गुनगान करने की बात करती हैं, और साथ ही नृत्य करते हुए उनके गुणों को गाने का संकल्प व्यक्त करती हैं। दूसरे शेर में, मीराबाई कहती हैं कि वह मंदिरों में बैठकर गीता और भागवत का पाठ करेंगी, जो भगवान के शरण में रहने का एक महत्वपूर्ण साधन है। तीसरे शेर में, मीराबाई ज्ञान और ध्यान की गठरी बांधकर हरी और हर की संगति में रहने का संकल्प करती हैं, अर्थात वह भगवान के ध्यान में लीन होकर उनकी भक्ति में समर्पित हो जाएंगी। चौथे शेर में, मीराबाई अपने प्रभु गिरिधर नागर से प्रेमरस चखने का आह्वान करती हैं, जो उनके दिल में भगवान के प्रति सच्चे प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। इस भजन के माध्यम से मीराबाई भगवान के साथ अपने अडिग प्रेम और भक्ति का एक उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।