सहेलियाँ साजन घर आया हो

सहेलियाँ साजन घर आया हो

सहेलियाँ साजन घर आया हो।
बहोत दिनां की जोवती बिरहिण पिव पाया हो।।
रतन करूँ नेवछावरी ले आरति साजूं हो।
पिवका दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूं हो।।
पांच सखी इकठी भई मिलि मंगल गावै हो।
पिया का रली बधावणा आणंद अंग न मावै हो।
हरि सागर सूं नेहरो नैणां बंध्या सनेह हो।
मरा सखी के आगणै दूधां बूठा मेह हो।।
सहेलियां साजन घर आया हो।।टेक।।
बहोत दिना की जोवती, बिरहिन पिव पाया हो।
रतन करूँ नेछावरी, ले आरति साजुँ हो।
पिया का दिया सनेसड़ा ताहि बहोत निवाजूँ हो।
पांच सखी इकट्ठी भई, मिलि मंगल गावै हो।
पिय की रती बधावणां आणन्द अंगि न मावै हो।
हरि सागर सू नेहरो, नैणा बाँध्यो सनेह हो।
मीरां सखी के आंगणै, दूधां बूँठा मेह हो।।


(जोबती=प्रतीक्षा करती, सनेसड़ा=सन्देश, निवाजूँ=कृतज्ञ होना, पाँच सखी=पाँचों इन्द्रियाँ, मावै हो=समाती, नेहरो=स्नेह, दूधाँ बूँठा मेह हो=दूध की वर्षा से भर गया,उत्साह और आनन्द से परिपूर्ण हो गया)

सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के आगमन से उपजे हर्ष और प्रेम का उद्गार हृदय को आनंद से भर देता है। जैसे लंबे समय की प्रतीक्षा के बाद प्रिय का दर्शन मिलने से मन झूम उठता है, वैसे ही भक्त का हृदय प्रभु के आगमन पर उल्लास से नाच उठता है। यह भाव धर्मज्ञान की उस सीख को प्रदर्शित करता है कि प्रभु का सान्निध्य ही आत्मा का सच्चा सुख है।

प्रभु के स्वागत में रत्नों की न्योछावर और आरती सजाने की उत्सुकता मन की शुद्ध भक्ति को दर्शाती है। जैसे दीपक की लौ हवा में भी स्थिर रहती है, वैसे ही भक्त का प्रेम प्रभु के प्रति अडिग रहता है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि प्रभु का हर संदेश हृदय को कृतज्ञता से भर देता है।

पाँचों इंद्रियाँ एकत्र होकर प्रभु के मंगल गीत गाती हैं, जैसे सखियाँ मिलकर उत्सव मनाती हैं। यह आनंद इतना गहन है कि हृदय में समा नहीं पाता। यह उद्गार संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु के प्रेम में ही जीवन का रस है।

श्रीकृष्णजी के प्रति स्नेह नेत्रों में प्रेम की धारा बनकर बहता है। जैसे सागर की लहरें किनारे से मिलने को व्याकुल रहती हैं, वैसे ही भक्त का मन प्रभु से एकाकार होने को आतुर है। धर्मगुरु की यह शिक्षा हृदय में बसती है कि प्रभु का प्रेम हर बंधन को तोड़ देता है।

मीराबाई के आंगन में प्रभु का आगमन दूध की वर्षा सा है, जो हृदय को प्रेम और उल्लास से सराबोर कर देता है। यह भाव संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि प्रभु के दर्शन से मिला आनंद ही जीवन का परम धन है।

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