साजन घर आवो जी मिठ बोला भजन
साजन घर आवो जी मिठ बोला भजन
साजन घर आवो जी मिठबोला।।टेक।।कब की ठाढ़ी पंथ निहारूँ, थांई आयाँ होसी भला।
आवो निसंक संक मत मानो, आयो ही सुख रहला।
तन मन वार करूँ न्योछावर, दीजो स्याम मोहेला।
आतुर बहोत विलम नहीं करनाँ, आयां ही रंग रहेला।
तेरे कराण सब रंग त्यागा, काजल तिलक तमोला।
तुम देख्याँ बिन कल न परत है कर घर रही कपोला।
मीराँ दासी जनम जनम की, दिल की घुँडी खोला।।
(मिठबाला=मीठा बोलने वाला,मृदुभाषी, ठाढ़ी=खडी हुई, थांई=तुम्हारे, निसंक=शंका से रहित होकर, रहला=रहेगा, मोहेला=दर्शन, बिलम=विलम्ब,देर, रंग रहेगा=सुख रहेगा, तमोला=पान, कल=चैन, कपोला=गाल, घुँडी=गाँठ,दुख)
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रति आतुर प्रेम और समर्पण का उद्गार हृदय को व्याकुल कर देता है। जैसे प्रिय के आगमन की प्रतीक्षा में पथ निहारती आँखें थकती नहीं, वैसे ही भक्त का मन प्रभु के दर्शन को तरसता है। यह भाव धर्मज्ञान की उस सीख को प्रदर्शित करता है कि प्रभु का प्रेम ही आत्मा का सच्चा आलंबन है।
श्रीकृष्णजी के मधुर बोल हृदय में सुख की वर्षा करते हैं। उनके आगमन में कोई संदेह नहीं, केवल विश्वास का प्रकाश है। जैसे फूल बिना आशंका के सूरज की ओर मुड़ता है, वैसे ही भक्त निस्संकोच प्रभु की शरण में जाता है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि प्रभु का सहारा लेने से हर दुख हल्का हो जाता है।
तन-मन का न्योछावर करना और प्रभु के दर्शन की कामना करना भक्ति की पराकाष्ठा है। मीराबाई का हृदय प्रभु के रंग में ऐसा रंगा है कि सांसारिक आकर्षण उसके लिए अर्थहीन हो गए। यह उद्गार संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु के बिना जीवन अधूरा है।
प्रभु के दर्शन बिन मन को चैन नहीं, जैसे चाँदनी के बिना रात सूनी लगती है। यह व्याकुलता धर्मगुरु की उस शिक्षा को रेखांकित करती है कि प्रभु का स्मरण ही हृदय की हर गांठ को खोल देता है। मीराबाई की तरह जन्म-जन्म की दासी बनकर भक्त अपने प्रभु के आंगन में रमने को आतुर है।
श्रीकृष्णजी का प्रेम भक्त के हृदय को सदा रंगीन रखता है। उनकी एक झलक से सारे दुख मिट जाते हैं, जैसे सूरज की किरणें कोहरे को छांट देती हैं। यह भाव संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि प्रभु के प्रति प्रेम ही जीवन का सच्चा सुख है।
श्रीकृष्णजी के मधुर बोल हृदय में सुख की वर्षा करते हैं। उनके आगमन में कोई संदेह नहीं, केवल विश्वास का प्रकाश है। जैसे फूल बिना आशंका के सूरज की ओर मुड़ता है, वैसे ही भक्त निस्संकोच प्रभु की शरण में जाता है। यह चिंतन की गहराई से उपजता है, जो मानता है कि प्रभु का सहारा लेने से हर दुख हल्का हो जाता है।
तन-मन का न्योछावर करना और प्रभु के दर्शन की कामना करना भक्ति की पराकाष्ठा है। मीराबाई का हृदय प्रभु के रंग में ऐसा रंगा है कि सांसारिक आकर्षण उसके लिए अर्थहीन हो गए। यह उद्गार संत की वाणी की तरह निर्मल है, जो कहती है कि प्रभु के बिना जीवन अधूरा है।
प्रभु के दर्शन बिन मन को चैन नहीं, जैसे चाँदनी के बिना रात सूनी लगती है। यह व्याकुलता धर्मगुरु की उस शिक्षा को रेखांकित करती है कि प्रभु का स्मरण ही हृदय की हर गांठ को खोल देता है। मीराबाई की तरह जन्म-जन्म की दासी बनकर भक्त अपने प्रभु के आंगन में रमने को आतुर है।
श्रीकृष्णजी का प्रेम भक्त के हृदय को सदा रंगीन रखता है। उनकी एक झलक से सारे दुख मिट जाते हैं, जैसे सूरज की किरणें कोहरे को छांट देती हैं। यह भाव संत, चिंतक और धर्मगुरु के विचारों का संगम है, जो कहता है कि प्रभु के प्रति प्रेम ही जीवन का सच्चा सुख है।
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Author - Saroj Jangir
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